वीर सावरकर को लेकर इतना विवाद क्यों ? कब खत्म होगी Selective राजनीति ?

By अंकित सिंह | Oct 16, 2021

त्योहारों के बीच इस सप्ताह वीर सावरकर को लेकर लगातार चर्चा होती रही। भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने रही। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर वीर सावरकर को लेकर इतना विवाद क्यों है? इसी पर हमने चाय पर समीक्षा में चर्चा की। वीर सावरकर पर राजनाथ सिंह के बयान को लेकर हो रही राजनीति के बीच प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने साफ तौर पर कहा कि आजादी की लड़ाई में सबका अपना अपना योगदान है। सबने अपनी-अपनी तरह से आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया है। ऐसे में हमें सबको साथ लेकर और सब के योगदान की सराहना करनी चाहिए। इसको लेकर सिलेक्टिव होना सही नहीं है। 


नीरज दुबे ने साफ तौर पर कहा कि वीर सावरकर संबंधी तथ्यों को लेकर जिस तरह से राजनीतिक वाद-विवाद हो रहा है उससे बचा जाना चाहिए। यह सही है कि लोकतंत्र में सभी को अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन इसका उपयोग भारत की आजादी के संघर्ष में योगदान देने वालों का अपमान करने में नहीं करना चाहिए। किसने माफी मांगी या किसने नहीं मांगी, किसने ज्यादा योगदान दिया या किसने कम दिया, इस बहस में पड़ने की बजाय हमें स्वतंत्रता संग्राम के सभी (नामी और गुमनाम) सेनानियों का समान रूप से सम्मान करना चाहिए। यदि इसी तरह की बहसें चलती रहेंगी तो आने वाली पीढ़ियां भी स्वतंत्रता सेनानियों को अलग-अलग गुटों में देखेंगी।


छत्तीसगढ़ और राजस्थान के हनुमानगढ़ में हुई घटना पर भी हमने कांग्रेस के सिलेक्टिव राजनीति पर चर्चा की। नीरज दुबे ने कहा कि लखीमपुर हिंसा को लेकर कांग्रेस द्वारा हो-हल्ला मचाया जा रहा है परंतु उनके शासित राज्यों में क्या हो रहा है, वह उन्हें नहीं दिख रहा। इसके अलावा, संभव है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से की गयी आलोचना से वह लोग व्यथित हों जोकि मानवाधिकारों की ‘चयनित तरीके से व्याख्या’ करते हैं तथा इन्हें राजनीतिक नफा नुकसान के तराजू से तौलते हैं। लेकिन यह सत्य है कि हाल के वर्षों में मानवाधिकार की व्याख्या अपने-अपने हितों को देखकर होने लगी है। पिछले कुछ दिनों में ही देखें तो मानव अधिकारों के कथित हनन के नाम पर देश की छवि को जो नुकसान पहुँचाया गया है या पहुँचाने का प्रयास हो रहा है, उससे देश को सतर्क रहने की जरूरत है।

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किसान आंदोलन पर भी नीरज दुबे ने कहा कि जिस तरीके से किसान आंदोलन संबंधित राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है। वह काफी दुखद है। अपनी सुविधा के लिए आप दूसरों को असुविधा में नहीं डाल सकते हैं। हमने देखा है कि पहले कैसे जम्मू कश्मीर में अलगाववादी लोग कैलेंडर निकालते थे, अब देश में जो किसान आंदोलन के नाम पर प्रदर्शन कर रहे हैं वह कैलेंडर निकाल रहे हैं जो कि गलत है। 


सावरकर के योगदान की उपेक्षा करना, अपमानित करना, क्षमा योग्य और न्यायसंगत नहीं: राजनाथ सिंह

भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि राष्ट्र नायकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में वाद प्रतिवाद हो सकते हैं लेकिन विचारधारा के चश्मे से देखकर वीर सावरकर के योगदान की उपेक्षा करना और उन्हें अपमानित करना क्षमा योग्य और न्यायसंगत नहीं है। राजनाथ सिंह ने उदय माहूरकर और चिरायु पंडित की पुस्तक ‘‘वीर सावरकर हु कुड हैव प्रीवेंटेड पार्टिशन’’ के विमोचन कार्यक्रम में यह बात कही। इसमें सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी हिस्सा लिया। सिंह ने कहा कि एक खास विचारधारा से प्रभावित तबका वीर सावरकर के जीवन एवं विचारधारा से अपरिचित है और उन्हें इसकी सही समझ नहीं है, वे सवाल उठाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्र नायकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में वाद प्रतिवाद हो सकते हैं लेकिन उन्हें हेय दृष्टि से देखना किसी भी तरह से उचित और न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है। राजनाथ सिंह ने कहा कि वीर सावरकर महान स्वतंत्रता सेनानी थे, ऐसे में विचारधारा के चश्मे से देखकर उनके योगदान की अनदेखी करना और उनका अपमान करना क्षमा योग्य नहीं है। उन्होंने अंग्रेजों के समक्ष दया याचिका के बारे में एक खास वर्ग के लोगों के बयानों को गलत ठहराते हुए यह दावा किया कि महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने याचिका दी थी।


विपक्षी नेताओं ने निशाना साधा

के कुछ नेताओं ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा महात्मा गांधी और वीर सावरकर के संदर्भ में की गई एक टिप्पणी को लेकर बुधवार को उन पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि वह ‘इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रहे हैं।’ सिंह ने मंगलवार को कहा था कि महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने अंग्रेजी शासन को दया याचिकाएं दी थीं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश, भूपेश बघेग और एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन औवैसी ने महात्मा गांधी द्वारा से 25 जून, 1920 को सावरकर के भाई को एक मामले में लिखे गए पत्र की प्रति ट्विटर पर साझा की और आरोप लगाया कि भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह गांधी द्वारा लिखी गई बात को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं। रमेश ने कहा कि राजनाथ सिंह जी मोदी सरकार की कुछ गंभीर और शालीन लोगों में से एक हैं। परंतु लगता है कि वह भी इतिहास के पुनर्लेखन की आरएसएस की आदत से मुक्त नहीं हो सके हैं। उन्होंने महात्मा गांधी ने 25 जनवरी, 1920 को जो लिखा था, उसे अलग रूप से पेश किया है। ओवैसी ने कहा कि सावरकर की ओर से पहली दया याचिका 1911 में जेल जाने के छह महीनों बाद दी गई थी और उस समय महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे। इसके बाद सावरकर ने 1913-14 में दया याचिका दी। बघेल ने कहा कि मुझे एक बात बताइए। महात्मा गांधी उस समय कहां वर्धा में थे, और ये (वीर सावरकर)कहां सेल्युलर जेल में थे। इनका संपर्क कैसे हो सकता है। जेल में रहकर ही उन्होंने दया याचिका मांगी और एक बार नहीं आधा दर्जन बार उन्होंने मांगी। एक बात और है सावरकर ने माफी मांगने के बाद वह पूरी जिंदगी अंग्रेजों के साथ रहे। उसके खिलाफ एक शब्द नहीं बोले। बल्कि जो अंग्रेजों का एजेंडा है ‘फूट डालो राज करो’। उस एजेंडे पर काम करते रहे।’’ भाजपा की सहयोगी जद (यू) के नेता केसी त्यागी ने कहा कि गांधी और सावरकर के बीच आदान-प्रदान किए गए पत्रों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।


सावरकर की प्रतिबद्धता पर शक करने वालों को कुछ शर्म करनी चाहिए: शाह

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारत और इसके स्वतंत्रता संग्राम के लिए वी डी सावरकर की प्रतिबद्धता पर संदेह करने वाले लोगों पर पलटवार करते हुए कहा कि स्वतंत्रता सेनानी की देशभक्ति और वीरता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को ‘‘कुछ शर्म’’ करनी चाहिए। गृह मंत्री ने यहां राष्ट्रीय स्मारक सेलुलर जेल में सावरकर के चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद कहा कि इस जेल में तेल निकालने के लिए कोल्हू के बैल की तरह पसीना बहाने वाले और आजीवन कारावास की दो सजा पाने वाले व्यक्ति की जिंदगी पर आप कैसे शक कर सकते हैं। शर्म करो। इस जेल में भारत के लंबे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों को कैद किया गया था। शाह ने कहा कि सावरकर के पास वह सब कुछ था, जो उन्हें अच्छे जीवन के लिए चाहिए होता, लेकिन उन्होंने कठिन रास्ता चुना, जो मातृभूमि के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत की आजादी के 75 साल के उपलक्ष्य में सरकार ‘‘आजादी का अमृत महोत्सव’’ मना रही है और इसी के तहत एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि इस सेल्युलर जेल से बड़ा तीर्थ कोई नहीं हो सकता। यह स्थान एक ‘महातीर्थ’ है, जहां सावरकर ने 10 साल तक अमानवीय यातना सहन की, लेकिन अपना साहस, अपनी बहादुरी नहीं खोई।

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भाजपा ने दलितों पर अत्याचार को लेकर कांग्रेस पर साधा निशाना

कांग्रेस शासित राज्यों में दलितों पर हो रहे अत्याचार को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मंगलवार को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा की चुप्पी को लेकर उन पर तीखा हमला बोला। राजस्थान, महाराष्ट्र और झारखंड में अनुसूचित जाति (एससी) समुदायों के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार की कथित घटनाओं का हवाला देते हुए, भाजपा ने कहा कि जो लोग खुद को दलित अधिकारों के पैरोकार के रूप में पेश करते हैं, वे ऐसी घटनाओं की अनदेखी कर रहे हैं।  भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा दोनों खुद को दलित अधिकारों के समर्थक के रूप में पेश करते हैं, लेकिन वे राजस्थान और अन्य राज्यों में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार पर चुप क्यों हैं? उन्होंने आश्चर्य जताया कि लखीमपुर खीरी में हुई घटना के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में “राजनीतिक पर्यटन” पर जाने वाले विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता कांग्रेस शासित राज्यों का दौरा क्यों नहीं करते हैं जब उन राज्यों से दलितों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं सामने आती हैं।


लखीमपुर हिंसा मामले की जांच से हम संतुष्ट नहीं : टिकैत

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की जांच पर असंतोष जताते हुए कहा कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के खिलाफ कार्रवाई न होने तक पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सकता। टिकैत ने आरोप लगाया कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा लखीमपुर खीरी मामले की जांच को प्रभावित कर रहे हैं। जिस तरह से इस मामले की जांच हो रही है उससे हम पूरी तरह असंतुष्ट हैं। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया यह समझती है कि जब तक गृह राज्य मंत्री को नहीं हटाया जाएगा तब तक न्याय नहीं हो सकता। टिकैत ने कहा कि लखीमपुर खीरी कांड में गिरफ्तार किए गए मामले के मुख्य आरोपी और केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा की रेड कारपेट गिरफ्तारी की गई है और उसके साथ वीआईपी जैसा व्यवहार किया जा रहा है। इससे किसानों की नाराजगी और बढ़ गई है। उन्होंने दोहराया कि केंद्रीय मंत्री की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी होने तक किसानों का आंदोलन जारी रहेगा।


सिंघू बॉर्डर पर धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी के आरोप में व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या, एक गिरफ्तार

दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर किसानों के कुंडली स्थित प्रदर्शन स्थल के नजदीक एक व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई और उसका हाथ काट दिया गया। उसके शरीर पर धारदार हथियार से हमले के करीब 10 जख्म बने थे और उसकेशव को अवरोधक से बांधा गया था। इस घटना के लिए कथित रूप से निहंगों के एक समूह को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इस नृशंस हत्या के घंटों बाद सिखों की निहंग परंपरा के तहत नीले लिबास में एक व्यक्ति मीडिया के समक्ष आया और दावा किया कि उसने पीड़ित को पवित्र ग्रंथ की ‘बेअदबी’ करने की ‘सजा’ दी है। अन्य निहंगों ने दावा किया कि उसने पुलिस के समक्ष ‘आत्मसमर्पण’ कर दिया है, जबकि पुलिस का कहना है कि उक्त व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है और उससे पूछताछ की जा रही है। पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि कश्मीर सिंह के बेटे सरबजीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है जो पंजाब के गुरदासपुर जिले के विटवहा का रहने वाला है। अधिकारी ने कहा कि प्रारंभिक पूछताछ में सरबजीत ने दावा किया कि वह “पवित्र धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी” बर्दाश्त नहीं कर सका। सरबजीत के “आत्मसमर्पण” से पहले निहंगों ने उसे सम्मानित करते हुए एक वस्त्र दिया और कहा कि उसने ऐसे व्यक्ति को सजा दी जिसने कथित तौर पर पवित्र ग्रंथ की बेअदबी की।


- अंकित सिंह

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