By उमेश चतुर्वेदी | Dec 27, 2025
राष्ट्रमंडल खेलों के शताब्दी वर्ष के आयोजन की जिम्मेदारी अहमदाबाद को मिलने के बाद एक बार फिर उसका नाम बदलकर कर्णावती करने को लेकर सोशल मीडिया पर मांग तेज हो गई है। तर्क दिया जा रहा है कि राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन यानी साल 2030 तक गुजरात की पहली राजधानी को कर्णावती के नाम से जाना चाहिए। यह पहला मौका नहीं है, जब इस शहर का नाम बदलने की मांग हो रही है। जब साल 2018 में गुजरात के सहोदर राज्य महाराष्ट्र की तत्कालीन सरकार ने कई शहरों के नाम बदले, तब भी यह मांग उठी थी। लेकिन तब इसे अस्वीकार कर दिया गया था। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी का जोर भारत के प्राचीन रूप और नाम पर रहा है, फिर गुजरात की सत्ता पर भाजपा तकरीबन तीन दशक से काबिज है, इसकी वजह से शहर को पुराने नाम की पहचान दिलाने की चाहत रखने वाले रह-रहकर मांग करते रहे हैं।
गुजरात के इस प्रमुख नगर को पहले कर्णावती के ही नाम से जाना जाता था। दस्तावेजों के मुताबिक, इसकी स्थापना 11वीं सदी में सोलंकी शासक कर्णदेव ने की थी। उसी के नाम के चलते इसे कर्णावती कहा जाता था। लेकिन बाद में वहां सुल्तान अहमद शाह ने आक्रमण किया और कब्जे के बाद उसने इस शहर के बगल में 1411 में 'अहमदाबाद' बसाया। कर्णावती नाम करने की मांग के पीछे इस शहर को उसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जड़ों से फिर से जोड़ने की चाहत से प्रेरित है। कुछ वैसे ही, जैसे उत्तर प्रदेश में फैजाबाद को बदलकर अयोध्या, मुगलसराय को बदलकर दीनदयाल उपाध्याय नगर, इलाहाबाद को बदलकर प्रयागराज कर दिया गया है।
केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद गौरवशाली अतीत से जुड़ने और उसकी संज्ञाओं को बहाल करने का दौर तेज हो गया है। अयोध्या में राममंदिर, वाराणसी में काशी-विश्वनाथ कॉरीडोर और उज्जैन में महाकाल कॉरीडोर बनने के बाद पुनरूत्थानवादी सोच और प्रक्रिया को और बल मिला है। ऐसे में अहमदाबाद को पुराने कर्णावती नाम से जानने-पुकारने की इच्छा होना अचरज की बात नहीं है। कर्णावती नाम करने को लेकर कभी इसी शहर के एलिसब्रिज से विधायक और अब गांधीनगर से सांसद गृहमंत्री अमित शाह और अहमदाबाद पूर्व से लोकसभा सदस्य रहे हंसमुख भाई पटेल नकार चुके हैं। यह बात और है कि कभी हसमुख पटेल खुद भी कर्णावती नाम करने के लिए अभियान चला चुके थे। उन्होंने खुद 1995 और 2000 में नाम बदलने के लिए आवेदन भी दिया था, लेकिन इसे नकार दिया गया था। बाद में उन्होंने ही 2005 में शहर को हेरिटेज सिटी यानी विरासत शहर का दर्जा देने की मांग की थी। इसके बाद वे कर्णावती नाम किए जाने की मांग से पीछे हट गए थे। तब उन्होंने कहा था कि अब अगर अहमदाबाद शहर का नाम बदलकर कर्णावती किया गया तो उसे वर्ल्ड हेरीटेज सिटी का दर्जा मिलना मुश्किल हो जाएगा।
साल 2018 में गुजरात के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने कहा था कि राज्य सरकार अहमदाबाद का नाम बदलकर कर्णावती करने पर विचार कर रही है। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रुपाणी भी ऐसा कहते रहे। तब उनकी राय सामने आने के बाद अहमदाबाद के इतिहास को लेकर नई बहस छिड़ गई थी। इसी तरह जब से अहमदाबाद को 2030 के राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन का जिम्मा मिला है, एक बार फिर यही बहस तेज हो गई है।
अहमदाबाद ही कर्णावती था, इसकी जानकारी कई ऐतिहासिक पुस्तकों में मिलती है। ऐसी ही एक पुस्तक है, गुजरात विश्वविद्यालय में फ़ारसी के प्रमुख रहे छोटूभाई नायक की किताब 'हिस्ट्री ऑफ़ इस्लामिक सल्तनत इन गुजरात'। इसमें छोटू भाई नायक ने बताया है कि गुजरात के पहले स्वतंत्र शासक मुज़फ़्फ़रशाह ने अपने चार लड़कों को दरकिनार करते हुए अपने पोते अहमद शाह को अनहिलवाद के सिंहासन पर बैठा दिया था। जिसे आज हम पाटन के नाम से जानते हैं। इसी मुज़फ़्फ़र शाह के पांच बेटे थे, फ़िरोज़ ख़ान, हैबत ख़ान, सादत ख़ान, तातार ख़ान और शेर ख़ान। जिस अहमद शाह ने अहमदाबाद बसाया, वह तातार ख़ान का बेटा था। अहमद शाह के चाचाओं को इस बात का मलाल रहा कि राज्य में उन्हें हिस्सा नहीं मिला। गुजरात के इतिहास पर अंग्रेज लेखक एडवर्ड क्लाइव बेले की मशहूर किताब है, 'द लोकल मौह्मडन डायनेस्टीज़: गुज़रात'। इसमें उन्होंने मुजफ्फरशाह परिवार के संघर्ष पर प्रकाश डाला है। इस पुस्तक में बताया गया है कि फ़िरोज़ ख़ान का बेटा और अहमद शाह का चचेरा भाई मौदूद तब बड़ोदा का गवर्नर था। मौदूद ने अपने पिता फ़िरोज़ ख़ान के साथ मिलकर अहमद शाह के ख़िलाफ़ बग़ावत छेड़ने की तैयारी की और अपने साथ अमीर मुसलमानों को मिलाना शुरू किया। इस पुस्तक के मुताबिक, तत्कालीन दो हिंदू सरदारों, जीवनदास खत्री और प्रयागदास ने भी फ़िरोज़ ख़ान का साथ दिया। छोटू भाई शाह की पुस्तक के अनुसार, मालवा के सुल्तान हुशांग शाह ने भी अहमद शाह के ख़िलाफ़ बग़ावत में फ़िरोज़ ख़ान का साथ दिया था। अहमद शाह के ख़िलाफ़ खड़ी हो रही सेना की अगुआई मौदूद के हाथ थी, उसने जीवनदास को अपना वज़ीर घोषित कर दिया। जीवनदास ने पाटन पर हमले की सलाह दी। लेकिन कई ने इसका विरोध किया। कुछ लोग ऐसे भी रहे, जिन्होंने समझौते का प्रस्ताव रखा था। लेकिन दोनों पक्षों में विवाद इतना बढ़ा कि कुछ लोगों ने पलट कर अहमद शाह से मिल गए। बहरहाल बाद में संघर्ष हुआ, जिसमें जीवनदास खत्री मारा गया।
इसके बाद मौदूद को मजबूरी में खंबात का रूख करना पड़ा। वहां सूरत के शेख मलिक और रेंडर से उसकी मुलाकात हई। इस बीच अहमद शाह उसका पीछा करता रहा और उसने जल्द ही मौदूद को गिरफ्तार करके भरूच किले को घेर लिया। बाद में सुल्तान को मौदूद पर दया आ गई और उसने मौदूद को रिहा करके वापस लौट गए। पाटन लौटते वक्त अहमदशाह ने साबरमती के किनारे असावल नामक कस्बे के पास डेरा डाला था। जिसके प्रमुख आशा भील थे। इसका जिक्र फारसी भाषा में लिखी अली मुहम्मद ख़ान की किताब मिरात-ए-अहमदी में जिक्र मिलता है। छोटूभाई नायक भी अपनी किताब में यही बात लिखते हैं। जहां सुल्तान रुका था, वहीं उसने नया शहर बसाने का फ़ैसला किया।
इसके बाद सुल्तान अपनी सेना लेकर आए जिसके बाद असावल के सरदार आशा भील को अपना क़स्बा छोड़कर भागना पड़ा। लेकिन आशा भील इसका विरोध कर रहे थे। लेकिन अहमदशाह की सेना के सामने वह टिक नहीं पाए और उन्हें पलायन करना पड़ा। फिर अहमदाबाद शहर की नींव 1411 के फरवरी-मार्च महीने में रखी गई। एक दावा यह भी है कि अहमद शाह ने अपने पीर हज़रत शेख़ अहमद खट्टू गंज बख़्श की सलाह पर अहमदाबाद शहर बसया। लेकिन एक और लेखक खान बहादुर ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ़ गुजरात' में लिखा है कि अहमद शाह ने चार अहमदों, जिनमें एक उनके गुरू भी थे, के नाम पर शहर का नाम अहमदाबाद रखा।
गुजरात के जाने-माने पत्रकार अच्युत याज्ञनिक और उनकी साथी सुचित्रा सेठ ने अपनी किताब 'अहमदाबाद फ्रॉम रॉयल सिटी टू मेगा सिटी' में अहमदाबाद, कर्णावती और असावल की चर्चा की है। अहमदाबाद को अरबी और फ़ारसी इतिहासकारों ने इसे असावल कहा है, जबकि संस्कृत और प्राकृत साहित्य में इसे आशापल्ली कहा गया है। दसवीं सदी में भारत आए ईरानी इतिहासकार अल-बरूनी ने भी असावल नाम की जगह का जिक्र किया है। इसी तरह 1039 में लिखी जैन आचार्य जिनेश्वरसुरी की पुस्तक 'निर्वाणलीलावतीकथा' में अशापल्ली का ज़िक्र है।साफ है कि अहमदाबाद के पहले वहां आशापल्ली या असावल नाम की जगह थी या शहर था। इसके करीब 1304-05 में लिखी अपनी पुस्तक 'प्रबंधचिंतामणि' में जैन आचार्य मेरुतुंडाछय ने कर्णावती का उल्लेख किया है। इसी किताब में जिक्र मिलता है कि पाटन के राजा कर्णदेव ने आशापल्ली पर कब्जा आशा भील को हराने के बाद किया और यहां पहले कोछराब देवी का मंदिर स्थापित करके यहां रहना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने यहां कर्णेश्वर महादेव का मंदिर बनाया भी बनाया। इसके बाद उन्होंने कर्णा सागर बनवाया और कर्णावती पुरी को बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।
इन्हीं ऐतिहासिक साक्ष्यों के ही आधार पर अहमदाबाद को कर्णावती करने की मांग उठती रही है। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के बहाने एक बार फिर यह मांग उठ रही है। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन की तैयारी में यह शहर सजेगा, उसकी गरिमा में चार-चांद लगेगा। इसी बहाने अगर उसका इतिहास लौट आए तो इसे कम से कम इतिहास, संस्कृति और गौरवपूर्ण अतीत से स्नेह करने वाले लोगों को भला क्यों एतराज होगा। देखना यह है कि गरिमा और गौरव पूर्ण अतीत की ओर लौटने की यह यात्रा कब तक पूरी हो पाती है।
-उमेश चतुर्वेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं