क्या महामारी के समय जान हथेली पर रखकर मतदान करने के लिए निकलेंगे लोग?

By अशोक मधुप | Jan 13, 2022

पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में चुनाव की घोषणा होने के साथ ही देश में तेजी से बढ़ते कोरोना के केस चिंता बढ़ा रहे हैं। मन में भय पैदा कर रहे हैं। सरकार और चिकित्सक कह रहे हैं कि नया वायरस ज्यादा गंभीर नहीं है। इस सबके बावजूद कोई इन पर यकीन करने को तैयार नहीं। महाराष्ट्र और दिल्ली में तेजी से बढ़े केस के बाद सरकार द्वारा लागू की गई सख्ती और दिल्ली में लगे वीकेंड लॉकडाउन से जनता में भय व्याप्त है। श्रमिक पलायन कर रहे हैं। सब डरे सहमे हैं।

इसे भी पढ़ें: वर्चुअल रैली क्या होती है? इसका क्या भविष्य है? इससे राजनीतिक दलों को कितना लाभ मिलेगा?

जिस तेजी से केस बढ़ रहे हैं ऐसे में लगता है कि हो सकता है कि मतदान के दिन चुनाव ड्यूटी पर तैनात अधिकाशं कर्मी कोरोना पॉजिटिव होकर पृथक वास में हों। मतदाता बूथ से गायब हों। राजनैतिक दल, चुनाव आयोग और सरकार ही बूथ की निगहबानी करती नजर आए। आम जनता चाहती है कि पांच राज्यों में होने वाले चुनाव न हों। कोरोना के बढ़ते केस को लेकर अधिकतर लोग चिंतित हैं, किंतु राजनैतिक दल नहीं चाहते कि चुनाव टलें। सरकार भी इस पर चुप्पी साधे है। ऐसे में चुनाव आयोग ने चुनाव कराने की घोषणा कर दी। कोरोना महामारी के काल में आयोग को प्रदेश में मतदाताओं और मतदान में लगने वाले कर्मियों की राय लेनी चाहिए थी। क्या वह भी इसके लिए तैयार हैं? जिन्हें वोट डालने हैं, उनसे पूछा नहीं गया और तय कर दिया कि चुनाव तो होंगे ही।


कोरोना की हालत यह है कि मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं वह दिल दहलाने वाले हैं। कोराना केस बढ़ने की ये ही हालत रही तो मतदान के दिन तक देश में कोरोना के मामलों की संख्या करोड़ों में होगी। अस्पताल में बैड नहीं होंगे। दूसरी लहर की तरह दवा और बैड को लेकर मारामारी होगी। इस बार तो बड़े-बड़े वीआईपी कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। दिल्ली पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी चिन्मय बिस्वाल समेत 1000 सिपाही कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इससे पहले संसद के 400 कर्मचारी कोरोना के संक्रमण के शिकार हो चुके हैं।


रिपोर्टों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पिछले पंचायत चुनाव में तैनात 1600 के आसपास कर्मचारी डयूटी के दौरान कोरोना से मरे थे। इस चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में कोराना बुरी तरह फैला था। सबसे ज्यादा खराब हालत गांवों की थी। एक एक गांव में एक–एक दिन में कई−कई मौत हो रहीं थी। सरकार असहाय बनी देख रही थी। शहरों के मरीजों को ही अस्पताल में बेड और दवाई उपलब्ध नही थीं। गांव की सोचने की किसे पड़ी थी।

इसे भी पढ़ें: विधानसभा चुनावों में वर्चुअल चुनाव प्रचार के लिए राजनीतिक दल कितने हैं तैयार?

चुनाव आयोग ने रैली, सभा और बाइक रैली आदि निकालने पर रोक लगाई है। काफी बंदिशें रखीं हैं। इन सबके बावजूद चुनाव सरकारी कर्मचारी, पुलिस, पैरा मिलिट्री फोर्स को कराना है। वोट प्रदेश के मतदाता को डालना है। चुनाव की घोषणा के बाद से सबसे ज्यादा चिंतित सरकारी कर्मचारी और उनके परिवारजन हैं। डरे हुए हैं। वैसे ही कर्मचारी स्वेच्छा से चुनाव ड्यूटी नहीं करना चाहता। अब तो कोरोना की आफत सिर पर मौजूद है। सब सकते में हैं। पहले ही वह कोई ना कोई बहाना बनाकर चुनाव ड्यूटी कटवाना चाहता था। अब तो कोरोना जैसी महामारी में कोई बिरला ही ड्यूटी करना चाहेगा। जो करना चाहेगा, उसे उसके परिवारजन रोकेंगे। कहेंगे पहले परिवार की सोचो। इन कर्मचारियों को चुनाव तक लंबी प्रक्रिया से गुजरना है। चुनाव सामग्री और ईवीएम की व्यवस्था में ही बड़ा स्टाफ लगता है। इस दौरान बहुतों के संपर्क में आना होता है। मतदान और मतगणना तो बहुत बाद की बात है।


लोकतंत्र में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मतदाता बताया गया है। कहा गया है कि वह सरकार बनाता और बिगाड़ता है। कोरोना महामारी के दौरान वह मतदान करेगा या नहीं, उससे नहीं पूछा गया। कहा जा रहा है कि कोरोना से बचना है तो घर में रहो। अनावश्यक रूप से बाहर न निकलो। अब यह इन पांच प्रदेश के मतदाताओं को सोचना है कि उसे जान प्यारी है या मतदान। क्या उसे जान की सुरक्षा की कीमत पर मतदान करने घर से निकलना है।


-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

प्रमुख खबरें

Modi के 400 पार के नारे के साथ दिखी Mumbai की जनता, जताया जीत का विश्वास

अंगदान दर में सुधार के लिए ICU में मस्तिष्क मृत्यु के मामलों की निगरानी करें : केंद्र

BJP ने पैसे के बल पर संदेशखालि का ‘झूठ’ फैलाया, Mamata Banerjee ने कहा- घड़ियाली आंसू बहाना बंद करें Modi

Lok Sabha Election : तीसरे चरण के लिए प्रचार का शोर थमा, 7 मई को होगा मतदान