By उमेश चतुर्वेदी | Sep 09, 2025
संविधान का 130वां संशोधन विधेयक 2025 संसद के मानसून सत्र के दौरान 20 अगस्त दिन बुधवार को लोकसभा में जब पेश किया गया, तब सदन में अभूतपूर्व हंगामा दिखा। कह सकते हैं कि अराजक दृश्यों के बीच संक्षिप्त चर्चा के बाद इसे संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया गया। अब इस विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति सुझाव मांगेगी और अपने संशोधनों के साथ सदन में भेजेगी। तब कहीं जाकर चर्चा होगी और विधेयक पास हो पाएगा। लेकिन जिस तरह विपक्ष इस विधेयक की राह में अड़ंगे डाल रहा है, उससे लगता नहीं कि संयुक्त समिति में भी इसे आसानी से वह आम राय बनाने देगा और भ्रष्टाचार के खात्मे की दिशा में मील का पत्थर माना जाने वाला यह विधेयक पास हो पाएगा।
अव्वल तो होना यह चाहिए कि भ्रष्टाचार को रोकने, सर्वोच्च स्तर तक के लोगों को जवाबदेह बनाने वाले विधेयक पर पक्ष ही नहीं, विपक्ष को भी साथ होना चाहिए। लेकिन विपक्ष इस पर हंगामा मचाए हुए है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इस विधेयक के प्रावधान क्या हैं। जिन पाठकों को संसद की संयुक्त समिति की जानकारी नहीं है, उनके लिए यह भी बताना जरूरी हो जाता है कि यह समिति आखिर है क्या और इसका क्या अधिकार है?
इस संविधान संशोधन विधेयक में कहा गया है कि जो भी मंत्री, किसी गंभीर अपराध के लिए 30 दिनों तक जेल में रहेगा, वह अपना पद खो देगा। इस कानून के तहत 0कोई मंत्री, पद पर रहते हुए लगातार तीस दिनों की अवधि के दौरान, किसी ऐसे कानून के तहत किसी अपराध के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है या हिरासत में रखा जाता है, जिसके तहत पांच वर्ष या उससे अधिक जेल हो सकती है, उसे हिरासत में लिए जाने के इकतीसवें दिन तक मुख्यमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा उसे उसके पद से हटा दिया जाएगा। इस विधेयक में कहा गया है कि, "यदि ऐसे मंत्री को हटाने के लिए मुख्यमंत्री की सलाह इकतीसवें दिन तक राष्ट्रपति को नहीं दी जाती है, तो वह उसके बाद खुद-ब-खुद मंत्री नहीं रह पाएगा।"
विपक्षी निशाने पर आया यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 75 में संशोधन करेगा, जो मुख्य रूप से प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद की नियुक्ति और जिम्मेदारियों से संबंधित है। इस विधेयक में मंत्री के जेल से वापस आने के बाद को लेकर स्पष्टता तो नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि जब मंत्री जेल से रिहा हो जाएंगा तो क्या होगा? वैसे माना जा रहा है कि विधेयक के प्रावधानों के तहत, सैद्धांतिक रूप से यह संभव हो सकेगा कि संबंधित मंत्री जेल से बाहर आने के बाद पुनः नियुक्त किया जा सकृता है।
इस विधेयक की उपधारा एक का प्रावधान कहता है कि कोई बात ऐसे मुख्यमंत्री या मंत्री को हिरासत से रिहा होने पर राष्ट्रपति द्वारा बाद में मुख्यमंत्री या मंत्री नियुक्त किए जाने से नहीं रोकेगी।” विपक्ष को लगता है कि केंद्र सरकार जानबूझकर विपक्षी मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को निशाना बनाने के लिए यह विधेयक लेकर आई है। वैसे माना जा रहा है कि शराब नीति घोटाले में जब अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया, तब भी उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। इसकेपहले तक होता रहा है कि जब किसी मंत्री या मुख्यमंत्री पर आरोप लगते हैं तो गिरफ्तारी के पहले ही वे इस्तीफा देते रही हैं। 1997 में चारा घोटाले में जब लगा कि लालू यादव की गिरफ्तारी हो जाएगी तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसी तरह 2024 में जब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने को लगा कि वे गिरफ्तारी से नहीं बच पाएंगे तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया और इस्तीफा देते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया गया था। लेकिन केजरीवाल ने तब इस्तीफा दिया,जब उन्हें जेल में रहते किसी फाइल पर हस्ताक्षर करने या जमानत मिलने के बाद भी मुख्यमंत्री के दफ्तर ना जाने की शर्त सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। विपक्ष का तर्क है कि केंद्र सरकार अक्सर बदले की भावना के साथ काम करती है और उसके निर्देशन में काम करने वाला प्रवर्तन निदेशालय. आयकर विभाग और सीबीआई जब चाहे किसी भी मंत्री, मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर सकते हैं। गिरफ्तारी के बाद ये एजेंसियां ऐसे आरोप लगा सकती हैं. जिनके तहत उन्हें महीनों तक जमानत नहीं मिल सकती। तब इस विधेयक के जरिए किसी भी विपक्षी सरकार को गिराया जा सकता है। यही वजह है कि जब गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक पेश किया तो संसद में विपक्ष ने ज़ोरदार विरोध किया। कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने 2010 में सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में गृह मंत्री की गिरफ़्तारी का मुद्दा उठाया। हालाँकि, शाह ने जवाब दिया कि गिरफ़्तारी से पहले ही उन्होंने गुजरात के गृह मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। अब जानते हैं कि संसद की संयुक्त समिति क्या है?
संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी संसद द्वारा किसी विशेष उद्देश्य के लिए, जैसे किसी विषय या विधेयक की विस्तृत जाँच के लिए गठित की जाती है। इसमें दोनों सदनों के सदस्य होते हैं और इसका कार्यकाल समाप्त होने या इसका कार्य पूरा होने के बाद इसे भंग कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, संविधान के 130वां संशोधन विधेयक, 2025 को विपक्षी हंगामे और मांग के बाद लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा चुने गए 31 सदस्यों वाली एक संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है। वैसे तो समिति से रिपोर्ट हासिल करने की कोई मियाद तय नहीं है,लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने मांग की है कि समिति संसद के अगले यानी शीत सत्र के पहले दिन से पहले ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दे।
संसदीय नियमों के अनुसार, जेपीसी का कार्यक्षेत्र उसके गठन के प्रस्ताव पर निर्भर करता है। हालाँकि इसकी सिफ़ारिशें प्रभावशाली होती हैं, लेकिन वे सरकार पर बाध्यकारी नहीं होतीं। इस बीच बीजेपी ने 25 अगस्त, 2025 को विपक्षी हंगामे के खिलाफ कड़ा बयान दिया। पार्टी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लाया गया 130 वां संविधान संशोधन विधेयक “राजनीति में नैतिकता और सुशासन को मजबूत करेगा” और “भ्रष्टाचार और अपराधीकरण को खत्म करने के लिए एक प्रभावी हथियार” के रूप में काम करेगा। बीजेपी ने विपक्षी दलों पर आरोप लगाते हुए कहा कि जहां एक ओर समूचा राष्ट्र इस पहल का स्वागत कर रहा है, वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे दल “केवल भ्रष्टाचार को बचाने के लिए” इसका विरोध कर रहे हैं। बीजेपी विपक्ष को "बहिष्कार ब्रिगेड" बताते हुए यह भी कहने से नहीं हिचकी कि विपक्ष यानी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की लोकतंत्र में नहीं, अपने परिवार और सत्ता की रक्षा में ही दिलचस्पी है। बीजेपी का मानना है कि कि यह विधेयक सुशासन की सबसे बड़ी बाधाओं - भ्रष्टाचार और अपराध - को दूर करने के लिए संसद में पेश किया गया है। यहां ध्यान दिया जाना चाहिए कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत कानून के सामने सबको बराबर का दर्जा हासिल है। फिर भी हकीकत यह है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी दो दिन भी जेल में रहा, तो उसे सेवा नियमों के तहत स्वतः ही निलंबित कर दिया जाता है। जबकि महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर बैठे लोगों पर यह प्रावधान नहीं लागू होते। बीजेपी का तर्क है कि प्रस्तावित कानून के दायरे में मंत्री,मुख्यमंत्री ही नहीं, प्रधानमंत्री भी आएंगे।
बीजेपी का कहना है कि सामाजिक न्याय और समानता का पाठ पढ़ाने वाले दलों के लोग चाहते हैं कि उच्च पदों पर बैठे मंत्री या मुख्यमंत्री सलाखों के पीछे से सरकार चलाएँ। बीजेपी का तंज है कि यह समानता और सामाजिक न्याय का उपहास है।वैसे ध्यान रखना होगा कि लिली थॉमस मामले के बाद नियम बनाया गया कि अगर किसी सांसद को दो साल से ज़्यादा की सज़ा होती है, तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाएगी। बीजेपी का तर्क है कि उसकी सरकार एक तरह से इसी नियम को सार्वजनिक जीवन में शुचिता के लिए और आगे बढ़ा रही है। जिसका विपक्ष विरोध कर रहा है।
भारतीय समाज में भ्रष्टाचार गहरे तक जड़ें जमा चुका है। राजनीति का आज दूसरा अर्थ ही भ्रष्टाचार हो गया है। पड़ोसी चीन जैसे देश में भ्रष्टाचार की सजा मौत तक है। अमेरिका, ब्रिटेन आदि जिन देशों के लोकतंत्र और संसदीय परंपरा की हम खूब दुहाई देते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि उन देशों में भी भ्रष्टाचार को लेकर नो टालरेंस की नीति है। संविधान का 130 वां संशोधन उसी दिशा में प्रयास कहा जा सकता है। देखना होगा कि संयुक्त संसदीय समिति अपनी जांच के बाद क्या रिपोर्ट देती है और यह विधेयक फिर से संसद में कब प्रस्तुत हो पाता है?
-उमेश चतुर्वेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं