By कमलेश पांडे | Jan 21, 2025
दुनियावी चक्रब्यूह में निरंतर घिरते जा रहे अमेरिका ने जब यौद्धिक 'चंद्रायण व्रत' की बात कही तो सहसा विश्वास नहीं हुआ! वहीं, दुनिया के थानेदार की मजबूरी, दूरदर्शिता और खुदगर्जी भी स्पष्ट महसूस हुई। क्योंकि लगातार किसी न किसी सांसारिक संघर्ष में उलझकर थक-हार चुके देश अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी विक्ट्री रैली में विक्ट्री स्पीच देते हुए जो कुछ संकेत दिया, उसका सार-सत्य यही है कि अपने लोगों के बेहतर भविष्य के लिए अमेरिका अब तीसरा विश्व युद्ध नहीं लड़ना चाहता है और इसकी बची-खुची संभावनाओं को भी जल्द खत्म करने की हिमायत करेगा।
इसलिए सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिका के स्वर्णिम दौर में शेष विश्व को तीसरे विश्वयुद्ध से मुक्ति मिल पाएगी? या फिर यह किसी अन्य देश यथा- चीन या रूस के मार्फ़त अन्य देशों पर थोपी जाएगी, जिससे प्रथम विश्वयुद्ध की भांति अमेरिका दूर रहेगा। यूं तो दूसरे विश्वयुद्ध के शुरुआती चरण में भी अमेरिका इस महायुद्ध से दूर ही रहा था, लेकिन जब मजबूरी वश उसमें शामिल हुआ तो युद्ध के परिणामों को अपने गुट पक्ष में बदल दिया।
वहीं, उसकी मौजूदा साफगोई से भी इसी बात का पता चलता है कि अभी भले ही वह तीसरा विश्वयुद्ध नहीं लड़ना चाहता हो, लेकिन यदि उस पर तीसरा विश्वयुद्ध थोपा गया तो इसके भी परिणाम बदलने की क्षमता उसमें है और रही-सही कसर को पूरा करने के लिए ही वह 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' पर फोकस करना चाहता है। कहा भी गया है कि अग्र सोची, सदा सुखी। इसलिए डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने अपना नया रास्ता चुन लिया है। अब शेष विश्व को यह तय करना है कि वह आगे क्या करेगा। इस नजरिए से भारत की राह भी स्पष्ट है। जो अमेरिका से अब एक हद तक मिलती जुलती है।
कहना न होगा कि समकालीन विश्व में कभी जल के सवाल पर, कभी तेल के प्रश्न पर, कभी रूसी कीप एंड बैलेंस की नीतियों से, तो कभी चीनी विस्तारवादी रणनीतियों से और कभी दुनिया के देशों पर शासन करने की इस्लामिक देशों की सामूहिक महत्वाकांक्षा से अभिप्रेरित तृतीय विश्वयुद्ध की अमूमन दस्तक देता रहता है। जानकार बताते हैं कि यूएसए और यूएसएसआर के बीच शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भले ही अमेरिका ने दुनिया की थानेदारी की, लेकिन अमेरिकी नेतृत्व वाले 'नाटो' को अब जिस तरह से रूस और चीन मिलकर 'ब्रिक्स देशों' के मार्फ़त घेर रहे हैं, उससे तीसरा विश्वयुद्ध अवश्यम्भावी प्रतीत होता है।
आपने देखा होगा कि कभी मिडिल-ईस्ट देशों में, तो कभी क्वाड देशों के अगुवा के तौर पर अमेरिका की भूमिका अक्सर संदेह के घेरे में रही है। वहीं, रूस-यूक्रेन विवाद के युद्ध में तब्दील हो जाने के बाद अमेरिकी दुविधा को लेकर और उसकी नवपरिवर्तित आर्थिक नीतियों को लेकर यूरोपीय संघ के कुछ देशों, यथा- जर्मनी-फ्रांस-इंग्लैंड आदि के द्वारा जिस तरह से उसके नेतृत्व पर सवाल उठाए जाने लगे हैं, इससे अमेरिकी चिंता बढ़नी स्वाभाविक है।
वहीं, ग्रीन लैंड द्वीप को खरीदने, पनामा नहर पर पुनः अमेरिकी प्रभुत्व स्थापित करने, मेक्सिको के समीप दीवार खड़ा करने, कनाडा को अमेरिका में मिलाने आदि को लेकर जो अमेरिकी सक्रियता दिखी है, उससे अमेरिकी-यूरोपीय महाद्वीपों में हलचल स्वाभाविक हैं। यदि एशिया महाद्वीप की बात करें तो यहां चीन-रूस की जोड़ी अमेरिका पर हावी है। भारत को साथ लेकर अमेरिका यहां संतुलन साधना चाहता है, लेकिन भारत-रूस की पुरानी मित्रता यहां आड़े आ जाती है। वहीं, अफगानिस्तान-पाकिस्तान-बंगलादेश-म्यांमार-श्रीलंका आदि भारत के पड़ोसी देशों को लेकर और जम्मूकश्मीर से तिब्बत तक के विवादों को सुलझाने की दिशा में अमेरिका की 'क्षुद्र रणनीतियों' की वजह से भारत भी उस पर पूरी तरह से भरोसा नहीं कर पा रहा है।
वहीं, उत्तर कोरिया, ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान, दक्षिण चीन सागर से जुड़े देशों और आशियान देशों के प्रति अमेरिका की जो ढुलमुल रणनीति रही है, उससे भी भारत चिंतित रहता है। या फिर अरब देशों पर आधिपत्य को लेकर जो अमेरिकी रणनीति रही है, उससे भी भारत परेशान रहता है। भारत इजरायल के निकट है, लेकिन अरब देशों को भी नाराज करने की स्थिति में वह नहीं है। जबकि ईरान से लेकर यूक्रेन तक में अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो की जो भूमिका रही है, सीरिया से लेकर यूक्रेन तक जो अमेरिकी रणनीति रही है, इससे भारतीय कूटनीति भी प्रभावित होती आई है।
यही वजह है कि यदि अमेरिका अपनी पुरानी शस्त्र व्यापार कूटनीति पर अडिग रहता है तो तीसरा विश्वयुद्ध अवश्यम्भावी है। वहीं, इधर देखा जा रहा है कि जर्मनी-फ्रांस, भारत-जापान, ईरान-तुर्किये, ऑस्ट्रेलिया-ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका-इंग्लैंड, कनाडा-मैक्सिको आदि पर नाटो का प्रभाव जहां कम हुआ है, वहीं ब्रिक्स देशों के नेतृत्वकर्ता चीन-रूस का रणनीतिक दबाव बढ़ा है। ऐसे में अमेरिकी महत्वाकांक्षाओं को काबू में रखने में ही अमेरिका की भलाई है। शायद दुनिया के विभिन्न देशों की बढ़ती वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के चलते ही अमेरिका ने अब अपने को कछुए की भांति निज कवच में ही महफूज रहने की रणनीति अपना ली है, जो उसका दूरदर्शिता भरा कदम है।
वहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध, चीन-ताइवान विवाद आदि के बाद सम्भावित तीसरे विश्व युद्ध की अलग-अलग उठ रही शंकाओं/संभावनाओं को हतोत्साहित करने के लिए अपनी ओर से जो प्रतिबद्धता जताई है, वह काबिलेतारीफ है।
अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद दिए अपने भाषण में ट्रंप ने कहा कि 'अमेरिका का स्वर्णिम काल अभी से शुरू हो गया है। हम अपनी संप्रभुता बनाए रखेंगे। दुनिया हमारा इस्तेमाल नहीं कर सकेगी। अमेरिका में अब घुसपैठ नहीं होगी।' इस दौरान एक बार फिर ट्रंप ने 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' का नारा दोहराया।
इस दौरान ट्रंप ने साफ कहा कि अमेरिका में अब सेंसरशिप नहीं होगी। आज की तारीख अमेरिकियों के लिए आजादी का दिन है। अब हमारे देश का कोई भी इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। जो भी इस देश का इस्तेमाल करेगा उसे सबक सिखाया जाएगा। ट्रंप ने अपने ऊपर चुनाव प्रचार के दौरान हुए हमले का जिक्र करते हुए कहा कि वह इसलिए ही बच गए क्योंकि उन्हें अमेरिका को बहुत आगे ले जाना है।
ट्रंप ने आगे यह भी कहा कि, 'आज से, हमारा देश फिर से समृद्ध होगा और पूरी दुनिया में हमारा सम्मान किया जाएगा। हम किसी देश को खुद का अब और फायदा उठाने की अनुमति नहीं देंगे। हमारी संप्रभुता को दोबारा हासिल किया जाएगा। हमारी सुरक्षा बहाल की जाएगी। हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता एक ऐसा राष्ट्र बनाना होगा जो गौरवान्वित, समृद्ध और स्वतंत्र हो।'
इसके अलावा, राष्ट्रपति ट्रंफ ने कहा, 'हम अपनी दक्षिणी सीमा पर नेशनल इमरजेंसी की घोषणा करते हैं। उन्होंने मेक्सिको के साथ लगती अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर घुसपैठ को रोकने के लिए सेना भेजने का भी ऐलान किया और कहा कि अवैध प्रवासियों को वहीं छोड़कर आएंगे जहां से वो आए हैं।
दुनियादारी पर ट्रंप ने दो टूक कहा कि, अंतरिक्ष में अमेरिका का परचम लहराएगा। मेरी शपथ से पहले इजराइली बंधक छूटे। मिडिल ईस्ट में शांति बहाली के लिए कोशिश करेंगे। मेक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर अमेरिका की खाड़ी करेंगे। अमेरिका के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। मंगल ग्रह पर अंतरिक्ष यात्री भेजेंगे। सेना अपने मिशन के लिए आजाद होगी। डोनाल्ड ट्रंप ने फिर कहा, दूसरे की जंग में अमेरिका सेना नहीं जाएगी। मैं चाहता हूं कि दुनिया मुझे शांति दूत के तौर पर जाने।
वहीं, चीन को चुनौती देते हुए उन्होंने कहा कि पनामा कैनाल से चीन का अधिपत्य खत्म करेंगे। पनामा कैनाल को वापस लेंगे। ट्रंप ने यह भी कहा कि, मैं देशों को जोड़ने की कोशिश करूंगा। शांति स्थापित करना मेरी प्राथमिकता है। विरोधियों के खिलाफ बदले की कार्रवाई नहीं होगी। अमेरिका सैनिकों के अधिकार बढ़ाए जाएंगे। मैं युद्ध रोकने की कोशिश करूंगा।
वहीं, ट्रंप ने आगे कहा कि दूसरे देशों पर टैक्स और टैरिफ बढ़ाएंगे। हम देश की कानून व्यवस्था को पटरी पर लाएंगे। अमेरिका के लोगों को बोलने की स्वतंत्रता होगी। अमेरिका के दुश्मनों को हराकर रहेंगे। उन्होंने अमेरिका में ड्रग तस्करों को आंतकी घोषित करने का भी ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा, अमेरिकी न्याय विभाग का क्रूर और अनुचित हथियारीकरण खत्म हो जाएगा। उन्होंने अमेरिका को लेकर अपनी नीतियों का भी खाका देश और दुनिया के सामने रख दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका फिर से मैन्युफैक्चरिंग हब बनेगा। अमेरिका से तेल और गैस का निर्यात बढ़ेगा।
ट्रंप ने कहा, मेक्सिको बॉर्डर पर दीवार बनाने का काम होगा। संगठिक अपराध के खिलाफ आज से ही काम शुरू होगा। हम महंगाई कम करने के लिए काम करेंगे। लोगों ने मुझे बदलाव के लिए चुना है। इसलिए अब अमेरिका में तेजी से बदलाव आएगा। सारी व्यवस्था आज बदलने वाली है। उन्होंने आरोप लगाया कि, बाइडेन ने समाज का ताना-बाना तोड़ा। वो ग्लोबल इंवेंट्स को हैंडल नहीं कर पाए। बाइडेन के राज में अपराधियों को शरण मिली। सीमाओं की सुरक्षा पर वो कुछ नहीं कर सके। बाइडेन ने न्यायापालिका का गलत इस्तेमाल किया। इसलिए ट्रंफ ने लोगों को आश्वासन दिया कि ट्रंप शासन में अमेरिका फर्स्ट पर फोकस होगा। हमारा मकसद सम्रद्ध अमेरिका बनाना है। हमारी संप्रभुता बरकरार रहेगी। इस प्रकार से ट्रंप ने शपथ लेते ही अमेरिका के अंदर और अमेरिका से बाहर के लिए अपनी नीतियां खुलकर सामने रख दी हैं।
राष्ट्रपति ट्रंफ ने ठीक ही कहा है कि, "मैं यूक्रेन में जंग खत्म कराऊंगा, मिडिल ईस्ट में अराजकता को बंद करूँगा और तीसरे विश्वयुद्ध को होने से भी रोक दूंगा। आपको शायद पता नहीं है कि हम इसके कितने करीब हैं।" वहीं, राष्ट्रपति ट्रंप ने जिस तरह से इजरायल-हमास के बीच जंग थमने का भी श्रेय लिया और इसे ट्रंफ इफेक्ट बताया, उससे उनकी संगठित ताकत का भी एहसास होता है। उन्होंने स्पष्ट लहजे में कहा कि "मेरे चुनाव जीतने के महज तीन महीने के भीतर ही गाजा में सीज फायर हो गया। इसी तरह से यूक्रेन में जारी जंग और मध्य-पूर्व (मिडिल ईस्ट) के देशों में फैली 'अराजकता' भी रोकी जाएगी।"
अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्पष्ट कहा कि अमेरिका के सामने आने वाले हर संकट को दूर करने के लिए वह ऐतिहासिक तेजी और ताकत के साथ काम करेंगे। साथ ही साथ अमेरिका को महान और मजबूत बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। बता दें कि अमेरिका की राजनीति में व्हाइट हाउस छोड़ने के 4 साल बाद वापसी कर पाना लगभग असंभव माना जाता है, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप इस नामुमकिन लक्ष्य को मुमकिन बनाकर इतिहास रच दिया है। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दोबारा शपथ ग्रहण कर पूर्व राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है। उल्लेखनीय है कि ग्रोवर क्लीवलैंड पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे, जिन्होंने व्हाइट हाउस से 4 साल बाहर होने के बाद जोरदार वापसी का 131 साल पहले रिकॉर्ड बनाया था। ग्रोवर क्लीवलैंड 1885 से 1889 और 1893-1897 तक अमेरिका के दो बार राष्ट्रपति रहे। उनके बाद डोनाल्ड ट्रंप दूसरे ऐसे नेता हैं, जिन्होंने 4 साल के अंतराल के बाद सत्ता में वापसी की है
वहीं, जब अमेरिकी पूंजीवादी लोकतंत्र ने मशहूर कारोबारी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रूप में अपना अगला मुकाम तय कर लिया है, तो फिर सहज ही सवाल पैदा हुआ कि अब शेष विश्व का क्या होगा, क्या उनको भी देर-सबेर चुनिंदे पूंजीवादियों की शरण में ही जाना पड़ेगा, यक्ष प्रश्न बना हुआ है।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक