विनायक चतुर्थी पर भगवान गणेश का पूजन कर पाएं मनवांछित लाभ

By शुभा दुबे | Jun 26, 2017

विघ्नहर्ता भगवान गणेश एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमशः पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चंदन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा−महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिक रूप तथा प्रणव स्वरूप हैं। उनके अनन्त नामों में सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र तथा गजानन− ये बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह−नगरों में प्रवेश तथा गृह नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है।

 

आज भगवान विनायक की चतुर्थी है। वैसे प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी होती हैं और चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की ही मानी जाती हैं। माना जाता है कि इस दिन जो भगवान गणेश का सच्ची श्रद्धा के साथ व्रत रखता है और पूजन करता है उसको सभी मनोवांछित लाभ प्राप्त होते हैं। गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड में उल्लेख है कि कृतयुग में गणेशजी का वाहन सिंह है। वे दस भुजाओं वाले, तेज स्वरूप तथा सबको वर देने वाले हैं और उनका नाम विनायक है। त्रेता में उनका वाहन मयूर है, वर्ण श्वेत है तथा तीनों लोकों में वे मयूरेश्वर नाम से विख्यात हैं और छह भुजाओं वाले हैं। द्वापर में उनका वर्ण लाल है। वे चार भुजाओं वाले और मूषक वाहन वाले हैं तथा गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं। कलियुग में उनका धूम्रवर्ण है। वे घोड़े पर आरुढ़ रहते हैं, उनके दो हाथ हैं तथा उनका नाम धूम्रकेतु है। भगवान श्रीगणेश का जप का मंत्र 'ओम गं गणपतये नमः' है। भगवान को मोदक बेहद पसंद हैं।

 

गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है। इस कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थे। वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड़ का खेल खेलने को कहा। भगवान शंकर चौपड़ खेलने के लिये तैयार तो हो गये, परन्तु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा? इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बनाकर, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि- "बेटा हम चौपड़ खेलना चाहते है, परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिये तुम बताना कि हम में से कौन हारा और कौन जीता।"

 

भगवान शंकर के यह कहने के बाद चौपड़ का खेल प्रारम्भ हो गया। खेल तीन बार खेला गया और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गईं। खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता से माफ़ी मांगी और कहा- "मुझसे अज्ञानता वश ऐसा हुआ, मैंने किसी द्वेष में ऐसा नहीं किया।" बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा- "यहाँ गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे। यह कहकर माता पार्वती भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं।

 

ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं। नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा देखकर भगवान गणेश प्रसन्न हो गए और उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा। बालक ने कहा- "हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों।" बालक को यह वरदान देकर भगवान गणेश अर्न्तध्यान हो गए। बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और वहाँ पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई। उस दिन से पार्वती जी, शिवजी से विमुख हो गईं। देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया। इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई।

 

यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दूर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है।

 

- शुभा दुबे

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