भगवान परशुराम की आराधना करने से अगले जन्म में बनेंगे राजा

By प्रज्ञा पाण्डेय | Apr 18, 2018

भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाता है। परशुराम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। तो आइए परशुराम जयंती के बारे में रोचक बातें बताते हैं।

जन्म से जुड़ी कथाएं

 

परशुराम का जन्म वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसे परशुराम द्वादशी भी कहा जाता है। परशुराम महर्षि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे। यह अपने माता-पिता की पांचवीं संतान थे। इनके पिता जमदग्नि सप्तऋषियों में से एक थे।  

 

विष्णु के अवतार हैं परशुराम

 

भगवान परशुराम के जन्म के विषय में एक अन्य मान्यता प्रचलित है कि परशुराम के जन्म से पहले जमदग्नि और रेणुका ने भगवान शिव की आराधना की। इससे प्रसन्न हो कर शिव ने आशीर्वाद दिया और भगवान विष्णु ने स्वयं रेणुका के गर्भ से परशुराम के रूप में अवतार लिया।

 

धरती के पापों के नाश हेतु लिया अवतार

 

जब परशुराम का धरती पर जन्म हुआ तब उस समय दुष्ट प्रवृत्ति के राजाओं का बोलबाला था। उन्हीं में से एक राजा ने उनके पिता जमदग्नि को मार दिया था। इससे परशुराम बहुत कुपित हुए और उन्होंने उस दुष्ट राजा का वध किया। यही नहीं उस समय समाज में कुछ राक्षसी प्रवृत्ति के राजाओं का वर्चस्व था। उन राजाओं का वध कर परशुराम ने उन्हें समाज को भयमुक्त किया।   

 

फरसे से बनाया मंदिर 

 

ऐसी मान्यता है कि राजस्थान में एक ऐसा मंदिर है जिसे परशुराम ने अपने फरसे के वार से बनाया है। यह मंदिर अरावली की पहाड़ियों में स्थित है। इस मंदिर में एक गुफा है जिसमें शिवलिंग है। इसी मंदिर में परशुराम ने तपस्या की थी। उनकी तपस्या से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें धनुष, फरसा और अक्षय तरकश दिया था। अक्षय तरकश के तीर कभी भी खत्म नहीं होते थे। 

 

परशुराम जयंती की महत्ता

 

हिन्दू पंचांग में परशुराम जयंती की बहुत महत्ता है। इस दिन प्रातः स्नान कर सूर्योदय तक मौन व्रत धारण करें। साथ ही भगवान परशुराम की मूर्ति के सामने ध्यान लगाएं। ऐसा करने से मनुष्य के पाप खत्म होते हैं और वह पुण्य का भागी बनता है। इस दिन हिन्दूओं द्वारा बड़े-बड़े जुलूस निकाले जाते हैं। साथ ही भगवान परशुराम के मंदिरों में हवन-पूजन भी किया जाता है। इसके अलावा भक्तगण इस दिन भंडारे का भी आयोजन करते हैं। वराह पुराण के अनुसार परशुराम जयंती के दिन उपवास रखने और परशुराम की मूर्ति की पूजा करने से अगले जन्म में राजा बनने की सम्भावना होती है। 

 

परशुराम से जुड़ी रोचक बातें

 

भगवान शिव के द्वारा दिए परशु अर्थात फरसे को धारण करने का कारण उनका नाम परशुराम पड़ा। ऐसा माना जाता है परशुराम का एक दूसरा अवतार धरती पर कल्कि अवतार के रूप में होगा। इसके बाद कलियुग की समाप्ति हो जाएगी। परशुराम अपने माता-पिता के बहुत बड़े भक्त थे। साथ ही उन्हें वीरता का अद्भुत उदाहरण माना जाता है। परशुराम अस्त्र-शस्त्र के परम ज्ञाता थे। वह केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायटुट के संस्थापक आचार्य माने जाते हैं। भगवान परशुराम की तपस्या से प्रसन्न होकर कई देवी-देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र दिए थे। परशुराम के शिष्यों में भीष्म, द्रोण, कौरव और पांडव प्रमुख थे। 

 

-प्रज्ञा पाण्डेय

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