Shaurya Path: Xi Jinping का Europe दौरा, Israel-Hamas, America और Russia-Ukraine से जुड़े मुद्दों पर चर्चा

By अंकित सिंह | May 09, 2024

प्रभा साक्षी के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह भी हमने विश्व में मचे उथल-पुथल पर चर्चा की। हमेशा की तरह इस कार्यक्रम में मौजूद रहे ब्रिगेडियर डीएस त्रिपाठी जी। हमारे इस कार्यक्रम में आज भी रूस-यूक्रेन वार और इसराइल-हमास युद्ध चर्चा का हिस्सा रहा। लेकिन इसके साथ ही हमने ब्रिगेडियर त्रिपाठी से पूछा की सुरक्षा दृष्टिकोण से चीन के राष्ट्रपति का यूरोप दौरा कितना महत्वपूर्ण है और आप इसे कैसे देखते हैं? इसके अलावा हमारे सवालों का सिलसिला अमेरिका और सऊदी अरब के बीच हो रहे बड़े डील पर भी पहुंचा। हमने सवाल पूछा कि आखिर सऊदी अरब और अमेरिका के बीच इतनी बड़ी डील क्यों हो रही है? राफा को लेकर इजराइल के आक्रामक रवैये पर भी हमने ब्रिगेडियर त्रिपाठी से सवाल पूछा और यह जानना चाहा कि आखिर सीजफायर पर बात क्यों नहीं बन पा रही है? सभी सवालों पर ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने खुलकर जवाब दिया। 

 

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1. चीन के प्रधानमंत्री ने अभी हाल में यूरोपियन यूनियन का दौरा किया है खासकर फ्रांस, उसके बाद सर्बिया और हंगरी। उनके इस दौर से क्या हासिल होने वाला है? 

- चीन के राष्ट्रपति के यूरोप दौरे को लेकर ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि लगभग 5 सालों के बाद ही आया है। उन्होंने कहा कि बाकी यूरोप के देशों की तुलना में फ्रांस के राष्ट्रपति एक तरीके का झुकाव चीन के पक्ष में रहा है। उन्होंने कहा कि चीन के राष्ट्रपति का फ्रांस दौरा पूरी तरह से व्यापार पर केंद्रित था। दोनों देशों को व्यापारिक दृष्टिकोण से इसमें फायदे की उम्मीद थी। लेकिन बहुत बड़ा डील नहीं हो पाया। फ्रांस के राष्ट्रपति और चीन के राष्ट्रपति के बीच मुलाकात भी हुई। लेकिन इस मुलाकात का बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। दोनों देशों के राष्ट्रीय अध्यक्षों का मुख्य उद्देश्य ट्रेड को बैलेंस करना था। हालांकि कोई अनाउंसमेंट नहीं की गई। फ्रांस इस बात की उम्मीद कर रहा है कि चीन यूक्रेन मामले को लेकर रूस को समझने की कोशिश करेगा। इसके अलावा फ्रांस यह चाहता है कि ओलंपिक के दौरान ग्लोबल सीजफायर की स्थिति रहे। इसमें चीन की भूमिका काफी अहम हो सकती है। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने बताया कि चीन के राष्ट्रपति का हंगरी और सर्बिया का दौरा फायदेमंद रहा। दोनों देशों का झुकाव चीन और रूस के प्रति रहा है। दोनों देशों को बड़े ट्रेड और इन्वेस्टमेंट की जरूरत है। इसको लेकर चीन के राष्ट्रपति से बातचीत भी हुई है। 


2. इसराइल ने आखिरकार राफा के इलाके में आक्रमण कर ही दिया है। जबकि शांति विराम की बात भी जारी है और हमास ने तो सहमति भी जाता दी थी। इसको कैसे देखते हैं आप?

- इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सीजफायर के साथ-साथ शांति वार्ता हो रही थी। बंधकों को दोनों ओर से छोड़ने की भी तैयारी थी। लेकिन नेतन्याहू के मन में कुछ और चल रहा है। इस युद्ध के साl महीने होने वाले हैं। इसराइल ने अब तक कुछ खास हासिल नहीं किया है। यही कारण है कि नेतन्याहू पर भी राइट विंग का प्रेशर है। इसलिए इसराइल फिलहाल पीछे हटने को तैयार नहीं है। वह आक्रामक रवैया अपनाए हुए हैं। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने दावा किया कि राफा में हमास के ज्यादा लोग हैं। ऐसा इसराइल को लगता है। यही कारण है कि इसराइल राफा को टारगेट कर रहा है। लेकिन वहां आम लोग भी भारी तादाद में है। ऐसे में उन्हें भी नुकसान हो सकता है। इसराइल पूरी तरीके से हमास को खत्म किए बिना नहीं रहना चाहता है। इजराइल को लगता है कि सबसे ज्यादा हमास के लोग राफा में ही रहते हैं। राफा को इसराइल टेररिस्ट हब बता रहा है। उन्होंने कहा कि राफा हमास का आखरी स्ट्रांग होल्ड है जहां इसराइल अब आक्रमण करने की तैयारी में है। 



3 गाजा युद्ध के बीच सऊदी अरब और अमेरिका के बीच ऐतिहासिक सुरक्षा समझौता हो सकता है जिसकी बातचीत अंतिम दौर में है। इससे मध्य पूर्व एशिया में क्या प्रभाव पड़ेगा? 

- ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि अमेरिका और सऊदी अरब के बीच लगातार बातचीत हो रही है। वर्तमान में जो वैश्विक स्थिति है, उसमें हर देश अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित है। यही कारण है कि अमेरिका जैसे पावरफुल राष्ट्र के साथ समझौता करना कई राष्ट्रों के लिए मजबूरी और जरूरी दोनों है। सऊदी अरब भी इस बात को भली भांति समझ रहा है इसलिए अमेरिका से लगातार बातचीत की कोशिश हो रही है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि अरब देशों में वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती है। सऊदी अरब खुद को इसमें ऊपर करने की कोशिश कर रहा है। ईरान चीन और रूस नजदीक आ रहा हैं। इसलिए अमेरिका के पास सऊदी अरब का विकल्प है जहां वह खुद को मजबूत कर सकता है। हालांकि यह डील इजरायल की सहमति के बाद ही होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सऊदी अरब के लिए बेहद जरूरी है जिसमें अमेरिका उसकी मदद कर सकता है। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि सऊदी अरब चीन के करीब हो रहा था जिससे अमेरिका की टेंशन बढ़ी थी। इसलिए अमेरिका ने अरब पर डोरे डालने की शुरुआत की थी। सऊदी अरब से डील के बाद अमेरिका को तेल यूरेनियम के क्षेत्र में फायदा होगा। इसके अलावा मिडल ईस्ट में खुद को अमेरिका मजबूत कर पाएगा। अमेरिका के लिए ईरान को काउंटर करना भी आसान हो सकता है। वहीं सुरक्षा के लिहाज से सऊदी अरब को अमेरिका से आश्वासन मिलता रहेगा।

 

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4 रूस के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पुतिन ने अपना पांचवा कार्यकाल प्रारंभ कर दिया है। उन्होंने यूक्रेन के ऊपर हमले और तेज कर दिए हैं तथा यूरोप को और अमेरिका को भी युद्ध की धमकी दी है इसको कैसे देखते हैं आप? 

- इस सवाल के जवाब में ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि पुतिन मजबूत हुए हैं। वह एक बार फिर से 6 साल के लिए राष्ट्रपति बन गए हैं। इसलिए वह अपना आक्रामक रवैया जारी रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि रूस की यूक्रेन से भले ही डायरेक्ट लड़ाई है। लेकिन पुतिन यूक्रेन के जरिए अमेरिका और पश्चिमी देशों को बड़ा संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। वर्तमान में देखें तो रूस अपनी रणनीति बदल चुका है। वह यूक्रेन में मिलिट्री टारगेट की जगह एनर्जी प्लेस को टारगेट कर रहा है। रूस का फोकस अब यूक्रेन के बड़े शहरों पर है। पुतिन को यह बात अच्छे तरीके से पता है कि दो-तीन महीने के बाद यूक्रेन को कुछ मदद मिल सकती हैं। इसलिए वह अभी से ही एग्रेसिव हो चुके हैं और फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि यूक्रेन के पास फिलहाल जवाब देने की स्थिति नहीं है। उसके पास हथियार की कमी है। मैनपावर की कमी है। इंफ्रास्ट्रक्चर डैमेज हो चुके हैं। ऐसे में देखना यह होगा कि जब मदद मिलने के बाद यूक्रेन किस तरीके से वापसी कर पता है।

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