असंगठित क्षेत्र में आधी आबादी की बड़ी हिस्सेदारी
असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की अपनी समस्या है। काम मिले तो मिल गया और नहीं मिला तो नहीं मिला। यानी असंगठित क्षेत्र में रोजगार व आय की स्थिरता नहीं होती। यही कारण है कि दूसरे दिन भी काम मिलेगा या नहीं, इसकी कोई गॉरन्टी नहीं होती।
असंगठित क्षेत्र में श्रम शक्ति की बागड़ोर महिलाओं ने ही संभाल रखी है। देश की आर्थिक गतिविधियों के संचालन में असंगठित क्षेत्र की अपनी भूमिका है और इसमें कोई दो राय नहीं कि असंगठित क्षेत्र में श्रम शक्ति को भले ही मेहनत का पूरा पैसा नहीं मिलता हो पर असंगठित क्षेत्र में सर्वाधिक रोजगार के अवसर है। बहुत बड़े वर्ग की रोजी रोटी असंगठित क्षेत्र पर ही टिकी हुई है। हांलाकि असंगठित क्षेत्र की अपनी समस्याएं हैं। इसमें रोजगार की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, नियमित आय का ना होना, स्वास्थ्य सुरक्षा सहित बहुत सी समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। हांलाकि सरकार असंगठित क्षेत्र की समस्याओं के निराकरण के लिए समय समय पर योजनाएं लाती है और ई-श्रम पोर्टल पर पंजीयन कराकर उनकी वास्तविक संख्या व आवश्यक जानकारी जुटाते हुए योजनाओं को अंतिम रुप दिया जाता रहा है। खैर बात भले ही थोड़ी अजीब लगे पर वास्तविकता तो यही बयां करती हैं कि आज देश में असंगठित क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबलें महिलाओं की हिस्सेदारी अधिक हो गई है। केन्द्र सरकार के ई-श्रम पोर्टल पर देश में 29 करोड़ 56 लाख श्रमिकों का पंजीकरण हो चुका है जिसमें से महिला श्रमिकों की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक है। असंगठित क्षेत्र में आज महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी आधी से भी ज्यादा हो चुकी है। केन्द्र सरकार के ई-श्रम पोर्टल की ही बात करे तो इसमें पंजीकृत 29 करोड़ 56 लाख श्रमिकों में से 53 फीसदी से भी अधिक महिला श्रमिक रजिस्टर्ड हैं जबकि पुरुष श्रमिकों की संख्या यही कोई 46 फीसदी से कुछ ही अधिक है। दरअसल बात भले ही कुछ भी की जाती हो पर तस्वीर तो यही है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक श्रम कर रही थी और कर रही है। भले ही व्हाईट कालर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में कम हो पर आज संगठित व असंगठित क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं है।
भारत सरकार के ई-श्रम पोर्टल के आंकड़ों की ही भाषा में बात करें तो केरल में सबसे अधिक 59.79 प्रतिशत महिला श्रमिक असंगठित क्षेत्र में है तो आंध्रप्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और पश्चिम बंगाल आदि सभी जगह पुरुषों की तुलना में महिला श्रमिक अधिक है। दरअसल देखा जाएं तो खेती और पशुपालन तो महिलाओं के भरोसे ही चल रहा है। शहरों में घरेलू कामकाज और रियल स्टेट क्षेत्र में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की हिस्सेदारी सर्वाधिक है। करीब 15 करोड़ श्रमिक खेती किसानी क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। इसका अर्थ साफ साफ यह हुआ कि खेती किसानी से आधे से भी अधिक श्रमिक जुड़े हुए हैं और इसमें भी कोई दो राय नहीं कि पुरातन काल से ही पशुपालन तो महिलाओं के भरोसे ही चलता आया है। खेती किसानी में भी महिलाओं की प्रमुख भागीदारी होती है।
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गली कुचें में बनिये की दुकान, चाय-पानी की स्टॉल या इसी तरह की किसी दुकान में काम करने वाले, चौकटियों में कारीगारी-बेलदारी के काम की प्रतीक्षा करने वाले, खेतों में जुताई, कटाई व इसी तरह के काम करने वाले, छोटे दस्तकारों, कारीगरों, हस्तशिल्पियों, गली मोहल्ले में घूमने वाले वेण्डर्स और अस्थाई काम करने वाले लोग असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की श्रेणी में आते हैं। डेली वेजेज के आधार पर काम करने वाले लोगों को भी इसी श्रेणी में रखा जाएगा। इनमें महिला और पुरुष श्रमिक दोनों ही शामिल है।
असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की अपनी समस्या है। काम मिले तो मिल गया और नहीं मिला तो नहीं मिला। यानी असंगठित क्षेत्र में रोजगार व आय की स्थिरता नहीं होती। यही कारण है कि दूसरे दिन भी काम मिलेगा या नहीं, इसकी कोई गॉरन्टी नहीं होती। इसके लिए रोजगार व आय की सुरक्षा व नियमितता की बात भी नहीं की जा सकती। इसका अर्थ यह हुआ कि सामाजिक आर्थिक सुरक्षा की बात करना तो बेमानी होगी। मोटे रुप से रोजगार, सुरक्षा और स्वास्थ्य व आवश्यक सुविधाओं की सुलभता असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए दूर की कोड़ी ही मानी जा सकती है। हांलाकि असंगठित क्षेत्र की श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सरकार गंभीर होने लगी है। पहली बात यह कि श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड होने से सरकार के सामने वास्तविक तस्वीर सामने आने लगी है। सरकार ने प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, श्रम योगी मान धन योजना, अटल पेंशन योजना और इसी तरह की अन्य योजनाओं से जोड़कर असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा देने के प्रयास किये गये हैं।
अब देश दुनिया में श्रमिक आंदोलन का समय तो करीब-करीब समाप्त ही हो चुका है। ऐसे में इस क्षेत्र में कार्य कर रहे गैरसरकारी व सामाजिक संगठनों को आगे आते हुए असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की आवाज बनना होगा। अब तो चूंकि असंगठित क्षेत्र में पुरुषों की अपेक्षा महिला श्रमिक अधिक है तो फिर और भी अधिक जिम्मेदारी हो जाती है। इसके साथ ही महिलाओं की समस्याओं को भी समझना होगा। सरकार को भी इस क्षेत्र के श्रमिकों की समस्याओं के समधान के लिए फोकस करना ही होगा।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
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