By अभिनय आकाश | Jul 01, 2025
कंबोडिया और थाइलैंड के विवाद की जड़ क्या है, लीक कॉल रिकार्ड में ऐसा क्या था कि थाईलैंड की पीएम की कुर्सी खतरे में आ गई। इस विवाद का अंत कैसे हो सकता है। भारत के दो पड़ोसी देशों के बीच तनाव चरम पर है। लड़ाई की स्थिति बन रही है, जैसे एक देश में इन दो में से हालत इतने खराब हो गए हैं कि हालत सरकार बदलने तक जा रही है। सबसे रोचक बात ये है कि इस लड़ाई के केंद्र में एक मंदिर है। इस मंदिर का नाम प्रियविहार टेंपल है। दरअसल, बात यहां थाइलैंड और कंबोडिया की हो रही है। पिछले महीने दोनों देशों की सेना बॉर्डर के पास भिड़ गई। इस भिड़ंत में एक कंबोडियाई सैनिक की जान भी चली गई। इससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया। बॉर्डर सीज कर दी गई। कंबोडिया और थाइलैंड दोनों ही छोटी अर्थव्यवस्था वाले देश हैं। बहुत सी जरूरतों के लिए एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। अब झगड़े की वजह से बॉर्डर बंद हो गई है। अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर दिखने लगा है। इसी बात को ध्यान में रखने हुए थाइलैंड की प्रधानमंत्री पेतोंगतार्न शिनावात्रा कम्बोडिया के पूर्व पीएम हुन सेन को फोन मिलाया। हुन सेन लगभग 38 साल कंबोडिया के प्रधानमंत्री रहे हैं। इस समय इनके बेटे प्रधानमंत्री हैं। लेकिन असल ताकत हुन सेन के पास मानी जाती है।
पेतोंगतार्न शिनावात्रा के पिता भी हुन सेन के अच्छे दोस्त थे और दोनों परिवारों का कंबोडिया व थाइलैंड की राजनीति पर गहरा प्रभाव है। इसलिए थाईलैंड की पीएम पेतोंगतार्न शिनावात्रा और कम्बोडिया के पूर्व पीएम हुन सेन के बीच फोन पर बात हुई। 17 मिनट की बातचीत की 9 मिनट की कॉल रिकार्डिंग लीक हो गई या कर दी गई। जिसकी वजह से बाद थाईलैंड में राजनीतिक संकट गहरा गया है। पेतोंगतार्न की कुर्सी खतरे में है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार फोन कॉल पर पेतोंगतार्न भी हुन सेन को अंकल कहकर संबोधित कर रही हैं। थाइलैंड की सेना के लेफ्टिनेंट जनरल की बुराई कर रही हैं। एक ऐसे देश के फौजी की बुराई जहां पर सेना के पास सत्ता की असल चाबी है। कॉल में शिनावात्रा ने सेना के जनरल बून्सिन पड़क्लांग की आलोचना करते हुए उन्हें 'कूल दिखने वाला' कहा और मजाक में खुद को 'कम्बोडिया का पीएम बनने योग्य' बताया।
भारत से हजारों किलोमीटर दूर स्थित प्रिय विहार के शिव मंदिर को दोनों देश अपने-अपने देश का हिस्सा बताते है। मंदिर को लेकर थाईलैंड और कंबोडिया के बीच काफी विवाद हो चुका है और ये विवाद अभी भी जारी है। व मंदिर को लेकर हाल ही में दोनों देशों के बीच फायरिंग भी हो चुकी है। दरअसल फरवरी माह में कंबोडिया की एक सैन्य टुकड़ी ने मंदिर में पहुंचकर अपना राष्ट्रगान गाया था। जहां थाईलैंड की सेना ने इसको विरोध किया। धीरे-धीरे हालात इतने गंभीर हो गए कि 28 मई को दोनों देश के बीच फायरिंग शुरु हो गई। चोंग बुक की पहाड़ियों पर विवाद के चलते आज तक दोनों देशों की सीमाएं यहां स्पष्ट नहीं हैं।
देश के उत्तर-पूर्व में थाई सेना कमांडर को अपना प्रतिद्वंद्वी बताती है, इस टिप्पणी की सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना हुई। थाई विदेश मंत्रालय ने पिछले सप्ताह कंबोडियाई राजदूत को कॉल के लीक होने की शिकायत करने वाला एक पत्र देने के लिए बुलाया था। थाईलैंड की पीएम पेतोंगतार्न शिनावात्रा और कम्बोडिया के पूर्व पीएम हुन सेन के बीच 15 जून को हुई एक फोन कॉल लीक होने के बाद थाईलैंड में राजनीतिक संकट गहरा गया है। कॉल में शिनावात्रा ने सेना के जनरल बून्सिन पड़क्लांग की गठबंधन सहयोगी भुमजैथाई पार्टी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिससे बहुमत संकट में आ गया है। बैंकॉक के विक्ट्री मॉन्युमेंट और गवर्नमेंट हाउस के बाहर 28 जून को करीब 20 हजार लोग प्रदर्शन में शामिल हुए और इस्तीफे की मांग की। हालांकि, शिनावात्रा के कार्यालय ने कॉल को 'संपादित और भ्रामक' बताया है।
जानकर कहते हैं कि आने वाले वक्त में पेतोंगतार्न का फौज के द्वारा तख्तापलट हो सकता है। या सत्ताधारी गठबंधन टूट जाएगा और सरकार गिर जाएगी। लेकिन अब खबर है कि थाईलैंड की प्रधानमंत्री पैतोंगतार्न शिनावात्रा को संवैधानिक न्यायालय ने लीक हुए फोन कॉल की जांच के लिए पद से निलंबित कर दिया। न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से उन पर नैतिकता के उल्लंघन का आरोप लगाने वाली याचिका पर विचार किया और उन्हें ड्यूटी से निलंबित करने के लिए 7 से 2 मतों से मतदान किया।
रूढ़िवादी सीनेटरों के एक समूह द्वारा कंबोडिया के साथ सीमा विवाद के दौरान पैतोंगटार्न पर मंत्री पद की नैतिकता का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किए जाने के बाद, एक बयान में कहा गया कि संवैधानिक न्यायालय, 7-2 के बहुमत से प्रतिवादी को 1 जुलाई से प्रधानमंत्री पद के कार्य से निलंबित करता है, जब तक कि संवैधानिक न्यायालय अपना फैसला नहीं सुना देता। रूढ़िवादी सांसदों ने उन पर कंबोडिया के सामने झुकने और सेना को कमज़ोर करने का आरोप लगाया, और आरोप लगाया कि उन्होंने मंत्रियों के बीच "स्पष्ट ईमानदारी" और "नैतिक मानकों" की आवश्यकता वाले संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया।
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