भारतीय संसदीय इतिहास के काले अध्याय के 50 साल

By आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी | Jun 25, 2025

आपातकाल क्या है?

यह किसी देश के संविधान या कानून के अंतर्गत कानूनी उपायों और धाराओं को संदर्भित करता है जो सरकार को असाधारण स्थितियों, जैसे युद्ध, विद्रोह या अन्य संकटों, जो देश की स्थिरता, सुरक्षा या संप्रभुता तथा भारत के लोकतंत्र के लिये खतरा पैदा करते हैं, पर त्वरित एवं प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने में सक्षम बनाता है।


50 साल पहले क्या थी परिस्थितियां:- 

मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं। यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।

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संसद में भारी बहुमत की सरकार रही:- 

1967 और 1971 के बीच, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सरकार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के साथ ही संसद में भारी बहुमत को अपने नियंत्रण में कर लिया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बजाय, प्रधानमंत्री के सचिवालय के भीतर ही केंद्र सरकार की शक्ति को केंद्रित किया गया।


उच्च न्यायालय द्वारा 6 साल के लिए बेदखल:- 

12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दोषी पाया और छह साल के लिए पद से बेदखल कर दिया। इंदिरा गांधी पर वोटरों को घूस देना, सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल, सरकारी संसाधनों का गलत इस्तेमाल जैसे 14 आरोप सिद्ध हुए लेकिन आदतन श्रीमती गांधी ने उन्हें स्वीकार न करके न्यायपालिका का उपहास किया। राज नारायण ने 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दाखिल कराया था। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने यह फैसला सुनाया था। इंदिरा गांधी जी के अपील पर 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी ।1975 की तपती गर्मी के दौरान अचानक भारतीय राजनीति में भी बेचैनी दिखी। यह सब हुआ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फ़ैसले से जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। 


25 जून 1975 को आपातकाल घोषित:- 

इंदिरा गांधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 25 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।


21 महीने रहा ये काला आपात काल:- 

25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी।


आपातकाल की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकता था:- 

38वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1975: इसके द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को न्यायिक समीक्षा से मुक्त कर दिया गया।


प्रेस पर सेंसरशिप:- 

1975 के आपातकाल के दौरान, सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया, राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार किया, और जबरन नसबंदी जैसे कई मनमाने फैसले लिए। सरकार ने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं पर सेंसरशिप लगा दी, जिससे वे सरकार की आलोचना नहीं कर पा रहे थे. 


गिरफ्तारियां:

सरकार ने राजनीतिक विरोधियों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को बिना किसी आरोप के गिरफ्तार कर लिया। राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कर लिया, और नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया। यह भारत के इतिहास में एक काला अध्याय माना जाता है। 


जबरन नसबंदी:

1976 में, संजय गांधी के नेतृत्व में, सरकार ने बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया, जिसमें लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध देश भर में अनिवार्य पुरुष नसबंदी का आदेश दिया। इस पुरुष नसबंदी के पीछे सरकार की मंशा देश की आबादी को नियंत्रित करना था। इसके अंतर्गत लोगों की इच्छा के विरुद्ध नसबंदी कराई गयी। कार्यक्रम के कार्यान्वयन में संजय गांधी की भूमिका की सटीक सीमा विवादित है। रुखसाना सुल्ताना एक समाजवादी थीं जो संजय गांधी के करीबी सहयोगियों में से एक होने के लिए जानी जाती थींऔर उन्हें पुरानी दिल्ली के मुस्लिम क्षेत्रों में संजय गांधी के नसबंदी अभियान के नेतृत्व में बहुत कुख्याति मिली थी।


संविधान का दुरुपयोग:- 

आपातकाल लगाने के लिए संविधान के कुछ प्रावधानों का दुरुपयोग किया गया, जिससे नागरिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ। नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, जिससे सरकार को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के लोगों को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने की अनुमति मिल गई।


मीसा और डीआईआर का दुरुपयोग:- 

आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) और रक्षा और आंतरिक सुरक्षा नियम (डीआईआर) जैसे कानूनों का दुरुपयोग किया गया ताकि लोगों को बिना किसी आरोप के गिरफ्तार किया जा सके और उन्हें हिरासत में रखा जा सके।


लोकतंत्र का दमन:- 

आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र को गहरा आघात पहुंचाया और सरकार की आलोचना करने वाली आवाजें दबा दी गईं। आपातकाल के दौरान हुई इन मनमानीयों के कारण, इसे भारत के इतिहास में एक काला अध्याय माना जाता है।


- आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

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