यदि अफगानिस्तान बगराम एयरबेस को अमेरिका को नहीं देता, तो लेने के देने पड़ सकते हैं?

By कमलेश पांडे | Sep 29, 2025

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दिए अपने एक बयान में साफ़ कहा है कि उनका प्रशासन अफगानिस्तान स्थित बगराम हवाई अड्डे को फिर से अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश कर रहा है। दरअसल, ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस और सोशल मीडिया पर बयान देते हुए तालिबान को चेतावनी दी है कि यदि अफगानिस्तान ने यह एयरबेस अमेरिका को वापस नहीं दिया तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इससे सवाल उठता है कि यदि अफगानिस्तान बगराम एयरबेस को अमेरिका को नहीं देता, तो अफगानिस्तान को लेने के देने पड़ सकते हैं? 


दरअसल, दुनिया के थानेदार ट्रंप ने तर्क दिया है कि बगराम एयरबेस की भौगोलिक स्थिति अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान, भारत, तजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, चीन और रूस आदि पूर्व एशियाई, मध्य एशियाई और दक्षिण एशियाई देशों से नजदीकी के कारण अमेरिका की सुरक्षा और निगरानी के लिए अत्यंत जरूरी है। यही वजह है कि ट्रंप ने तर्कसम्मत तरीके से कहा कि, "हम इसे वापस लेने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें भी हमसे चीजें चाहिए। इसलिए हम उस बेस को वापस चाहते हैं।" उनका तर्क है कि यह एयरबेस न सिर्फ अफगानिस्तान के लिए नहीं, बल्कि चीन व रूस आदि के गठजोड़ की वजह से भी उनके लिए जरूरी है, क्योंकि यह चीन के परमाणु प्रतिष्ठानों के नजदीक है। उनके मुताबिक, बगराम एयरबेस चीन की मिसाइल बनाने वाली जगह से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर है।

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उल्लेखनीय है कि बगराम का भू-राजनीतिक स्थान अफगानिस्तान के उत्तर में, काबुल से लगभग 40-60 किमी दूर पारवान प्रांत में है, जो मध्य, दक्षिण और पश्चिम एशिया के संगम पर बैठता है। इसका स्थान इसे क्षेत्रीय "ग्रैंड चेसबोर्ड" यानी सामरिक संतुलन की चाबी बना देता है—जहाँ से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, चीन (विशेषकर शिंजियांग क्षेत्र), और मध्य एशिया के देशों (जैसे ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान) तक निगरानी और पहुंच बनाना बहुत आसान है।


इसकी भू-राजनीतिक स्थान की विशेषता अहम है। सलांग दर्रे और टनल के करीब होने से यह आधार अफगानिस्तान के उत्तर-दक्षिण गलियारे और मध्य एशिया तक रणनीतिक पहुँच प्रदान करता है। यहाँ से पश्चिम में ईरान, पूर्व में पाकिस्तान, उत्तर में मध्य एशिया, और उत्तर-पूर्व में चीन तक अमेरिकी या किसी भी ताकत की त्वरित कार्रवाई मुमकिन हो जाती है। वहीं, चीन के शिंजियांग क्षेत्र की दूरी बगराम से एक घंटे की फ्लाइट में तय होती है, जहाँ चीन की न्यूक्लियर सुविधाएँ और बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट्स केंद्रित हैं।


जहां तक इस जगह से पड़ोसी देशों पर प्रभाव डालने का सवाल है तो यह कहा जा सकता है कि बगराम का अमेरिकी या किसी विरोधी शक्ति के पास होना चीन के लिए सुरक्षा संबंधी खतरा बन जाता है, खासकर शिंजियांग और लोप नूर न्यूक्लियर साइट्स तक इसकी पहुँच के कारण। इससे चीन-अमेरिका संबंधों में तनाव भी बढ़ सकता है। वहीं, पाकिस्तान के हिसाब से यहाँ से ड्रोन या निगरानी अभियानों की आशंका बढ़ती है और पाकिस्तान के रणनीतिक गहरे प्रभाव क्षेत्र पर अमेरिकी हस्तक्षेप संदेहास्पद बन जाता है।


वहीं, बगराम के कारण अमेरिका को ईरानी गतिविधियों और उसके पश्चिमी बॉर्डर पर निगरानी में बड़ी सहूलियत मिलती है, जिससे क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धा तेज हो सकती है। जबकि मध्य एशियाई देशों- उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, और तुर्कमेनिस्तान जैसे देश बगराम बेस के कारण क्षेत्रीय शक्ति संतुलन, आतंकवाद दमन, और पश्चिमी सुरक्षा छत्र के दबाव में रहते हैं।


जहां तक भारत की बात है तो भारत के लिए बगराम सामरिक दृष्टि से लाभकारी है क्योंकि यहाँ से अमेरिकी सहयोग से क्षेत्रीय आतंकवाद और पाक समर्थित नेटवर्क्स पर निगरानी संभव है। वहीं, अफगानिस्तान और मध्य एशिया में रूसी हित भी इससे प्रभावित होते हैं क्योंकि रूस का पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र यहाँ तक है। संक्षिप्त रूप में, बगराम का स्थान विश्व राजनीति के शक्ति संघर्ष में, खासकर चीन, रूस, ईरान, पाकिस्तान और भारत के पारस्परिक समीकरण में प्रमुख भूमिका निभाता है। क्योंकि बगराम के नियंत्रण से इन देशों के रणनीतिक फैसलों और क्षेत्रीय स्थिरता पर गहरा असर पड़ता है।


उल्लेखनीय है कि अपने चुनाव अभियान और कैबिनेट मीटिंग में भी ट्रंप ने कई बार कहा है कि बगराम एयरबेस अमेरिका को मिलना चाहिए क्योंकि इसे अमेरिकी सेना ने बनाया और विकसित किया था। यही वजह है कि ट्रंप ने सोशल मीडिया पर तालिबान को सीधे तौर पर धमकी दी है: "अगर अफगानिस्तान बगराम एयरबेस को अमेरिका को नहीं देता, तो बुरी चीजें होने वाली हैं।" वहीं, जवाबी प्रतिक्रिया देते हुए तालिबान प्रशासन ने ट्रंप के दावों और मांगों को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा है कि अफगानिस्तान अपनी एक इंच जमीन भी किसी को नहीं देगा और बगराम हवाई अड्डे पर केवल अफगानिस्तानी नियंत्रण है और रहेगा।


तालिबान सरकार की ओर से प्रतिक्रिया देते हुए उनके अधिकारी और प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने ट्रंप की मांग को पूरी तरह ठुकरा दिया और कहा कि, "हम अपनी एक मीटर जमीन भी अमेरिका को नहीं देंगे। ट्रंप को 'यथार्थवादी और विवेकपूर्ण' नीति अपनानी चाहिए।" इससे पहले तालिबान की कंधार में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई जिसमें सभी सैन्य और कैबिनेट अधिकारी शामिल थे, और यह तय किया गया कि यदि अमेरिका ने बगराम पर कब्जे की कोशिश की तो तालिबान नए सिरे से युद्ध शुरू करने के लिए तैयार है।


वहीं, तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने भी स्पष्ट कहा कि इतिहास में अफगानों ने कभी भी विदेशी सेना की मौजूदगी स्वीकार नहीं की है और अमेरिकी सैनिकों को दुबारा अफगान जमीन पर आने नहीं दिया जाएगा। वहीं, अफगान विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के बयान की कड़ी निंदा की और स्पष्ट किया कि बगराम एयरबेस तालिबान के नियंत्रण में है तथा इसे वापस लौटाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। मंत्रालय ने कहा कि अफगान विदेश नीति अब आर्थिक विकास और सभी देशों से रचनात्मक संबंधों पर केंद्रित है, तथा अमेरिका को अफगान जमीन के प्रति कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए। तालिबान और अफगान विदेश मंत्रालय दोनों ने अमेरिकी मांगों को पूरी तरह से खारिज करते हुए आक्रामक जवाब दिया और देश की संप्रभुता तथा स्वतंत्रता का संरक्षण करने का संकल्प दोहराया।


इस तरह से, ट्रंप ने अफगानिस्तान और विशेष रूप से तालिबान पर दबाव बनाया है कि अमेरिका को बगराम एयरबेस लौटाया जाए, क्योंकि इसकी अहमियत चीन की परमाणु नीति और अमेरिका की सामरिक नीति से जोड़ी जा रही है। यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बगराम एयरबेस को वापस लेने के पीछे कई प्रमुख वजहें बताईं हैं, जिनमें सामरिक और क्षेत्रीय नियंत्रण प्रमुख हैं। ट्रंप का कहना है कि बगराम एयरबेस पर कब्जा करके अमेरिका पूरे क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर सकता है। यह एयरबेस सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है और क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को बढ़ाता है। 


ट्रंप ने साफ कहा कि अफगानिस्तान के काबुल के पास बना यह एयरबेस चीन के परमाणु प्रतिष्ठानों के बेहद करीब है, जिससे चीन के परमाणु हथियार कार्यक्रम और सैन्य गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। ट्रंप ने इससे पहले बाइडेन प्रशासन की अदूरदर्शिता की तीखी आलोचना की और कहा कि अमेरिकी सेना ने बगराम एयरबेस छोड़ कर एक सामरिक आपदा को जन्म दिया। वे कहते हैं कि इसे अमेरिका ने बनाया था और यह उनके पास ही रहना चाहिए। ताकि क्षेत्रीय सुरक्षा व प्रतिरक्षा सम्बन्धी अमेरिकी हित सध सके। उन्होंने कहा कि वह अपने दोनों विरोधियों—चीन और ईरान—पर नजर रखने के लिए यह जगह सामरिक रूप से अमेरिका के लिए खास है।


इन सभी वजहों को आधार बनाकर ट्रंप जोर दे रहे हैं कि बगराम एयरबेस को अमेरिका को लौटाया जाए, जिससे अमेरिका की सैन्य, निगरानी और रणनीतिक क्षमता क्षेत्र में मजबूत हो सके। जबकि तालिबान और अफगान विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बगराम एयरबेस को लौटाने संबंधी मांग और धमकी का सख्त विरोध किया है।


जहां तक बगराम हवाई अड्डा सम्बन्धी अमेरिकी लालसा  का सवाल है तो अंतरराष्ट्रीय कानूनी निहितार्थ के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि बगराम एयरबेस के पुनः कब्जे के ट्रंप के दावे और तालिबान के सख्त विरोध के कुछ मुख्य पहलू इस प्रकार हैं, जिनकी कतई अनदेखी नहीं की जा सकती है। अंतरराष्ट्रीय विधि के तहत प्रत्येक राज्य की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान जरूरी होता है। किसी अन्य देश के बिना अनुमति के क्षेत्राधिकार में प्रवेश या कब्जा गैरकानूनी माना जाएगा, जो अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का कारण बन सकता है। 


तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान को एक संप्रभु राज्य माना जाता है, इसलिए बगराम एयरबेस पर जबरन कब्जा अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा। बेहतर होगा कि ट्रंफ अफगानिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का ख्याल रखते हुए अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षा को तिलांजलि दें। उन्हें यह पता होना चाहिए कि किसी भी सैन्य घुसपैठ या कब्जे को लेकर जेनेवा कन्वेंशन्स और अन्य युद्ध विधि की संधियां लागू होती हैं। जब तक विवाद को शांतिपूर्ण बातचीत से हल नहीं किया जाता, तब तक सैन्य कब्जा अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिषद या संयुक्त राष्ट्र के अधीन विचारणीय होगा।


अलबत्ता, इस तरह के दावे से क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकते हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। उक्त कार्रवाई पर अन्य देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण होगी। वहीं, ट्रंफ के इस दावे के कारण दो राष्ट्रों के बीच कानूनी और कूटनीतिक विवाद उत्पन्न होगा, जिसे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय या मध्यस्थता के जरिये हल करने की कोशिश हो सकती है। हालांकि, यह मामला क्षेत्रीय सुरक्षा और राजनीतिक ताकत के आधार पर भी प्रभावित होगा। संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि ट्रंप के बगराम एयरबेस के दावे पर अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत यह माना जाएगा कि किसी राज्य की संप्रभु जमीन पर कब्जा गैरकानूनी है और ऐसी कार्रवाई से अंतरराष्ट्रीय विवाद उत्पन्न हो सकता है, जिसे शांतिपूर्ण या कानूनी माध्यमों से सुलझाना आवश्यक होगा।


समझा जाता है कि दुनिया के थानेदार अमेरिका ने अपनी थानेदारी को मिल रही चीनी चुनौतियों के दृष्टिगत नया दावा पेश किया है। खुद ट्रंप ने बगराम एयरबेस से संबंधित अपने दावे में चीन की मौजूदगी का हवाला कई कारणों से दिया है। उनका तर्क इस बात पर केंद्रित है कि बगराम एयरबेस स्थित क्षेत्र चीन के परमाणु हथियार निर्माण और सैन्य गतिविधियों के लिए अत्यंत संवेदनशील इलाका है।

ट्रंप का कहना है कि बगराम एयरबेस काबुल के नजदीक है और यह चीन के परमाणु प्रतिष्ठानों से मात्र करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर है, जिससे चीन की सैन्य और परमाणु गतिविधियों पर नजर रखने के लिए यह एयरबेस अमेरिकी सुरक्षा हितों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वहीं, उनका आरोप है कि चीन अफगानिस्तान में अपने प्रभाव को बढ़ा रहा है, जहां वे राजनीतिक और आर्थिक रूप से भी जगह बना रहे हैं, जिससे अमेरिका की एशिया की सामरिक स्थिति खतरे में पड़ सकती है।


लिहाजा, अब यह साफ हो चुका है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपने वैश्विक प्रतिद्वंद्वी चीन को संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक प्रमुख रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी मानते हैं और उनके अनुसार, बगराम एयरबेस को वापस लेकर अमेरिका चीन की विस्तारवादी गतिविधियों को रोक सकता है। इसके अलावा, ट्रंप चीन की आर्थिक और सैन्य शक्ति को लेकर भी कड़ी चेतावनी देते रहे हैं, और बगराम एयरबेस की वापसी उन्हें इस रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में बढ़त दिला सकती है।


इसलिए ट्रंप की बातों में चीन की मौजूदगी का हवाला एक रणनीतिक कारण के तौर पर दिखता है, जो अमेरिकी सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव को बनाए रखने से जुड़ा है। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी डॉनल्ड ट्रंप के बगराम एयरबेस को लेकर किए गए आरोप और दावे पर अपनी अपनी विविध प्रतिक्रियाएं दी हैं, जिनमें मुख्य रूप से संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर जोर दिया गया है।


वहीं, अधिकांश देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने यह स्पष्ट किया है कि किसी भी संप्रभु राष्ट्र की जमीन पर बिना उसकी अनुमति के कब्जा करना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा और यह क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र और कई दूसरे वैश्विक मंचों ने अफगानिस्तान की संप्रभुता की रक्षा पर बल दिया है और किसी भी सैन्य कार्रवाई का विरोध किया है जो इस संतुलन को बिगाड़ सकती है।


अफगानिस्तान के वर्तमान तालिबान नेतृत्व के समर्थन में भी कई देशों ने उनके संप्रभु अधिकारों की पुष्टि की है, जिससे ट्रंप के दावे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक स्वीकृति नहीं मिली। वहीं, ट्रंप के चीन पर शक और आरोप को लेकर कुछ देशों ने इसे क्षेत्रीय तनाव बढ़ाने वाला माना है, जबकि कुछ ने इस पर स्पष्ट टिप्पणी से बचते हुए कूटनीतिक वार्ता पर जोर दिया है। इसी समय, संयुक्त राष्ट्र में भारत ने पाकिस्तान के आतंकवाद से जुड़े दावों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है जो दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय सुरक्षा और आतंक के विषयों को गंभीरता से देख रहा है, हालांकि अफगानिस्तान मामले में स्थिति भिन्न है लेकिन संप्रभुता के मुद्दे एक समान हैं।


संक्षेप में, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने बगराम एयरबेस को लेकर किए गए दावे पर सतर्कता और शांति बनाए रखने की अपील की है, साथ ही किसी भी तरह के बल प्रयोग या जबरदस्ती कब्जे को कानूनी और कूटनीतिक रूप से अस्वीकार्य माना है। बता दें कि  बगराम हवाई अड्डा अफगानिस्तान में स्थित एक अत्यंत रणनीतिक एयरबेस है, जिसका महत्व इसके भू-राजनीतिक स्थान और सैन्य बुनियादी ढाँचे के कारण है। अमेरिका इसे दोबारा हासिल करना चाहता है क्योंकि यह बेस दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और पश्चिम एशिया के संगम पर स्थित है, जिससे अमेरिका को इस क्षेत्र में शक्ति प्रक्षेपण, खुफिया निगरानी, और प्रतिस्पर्द्धी ताकतों (विशेषकर चीन, रूस, ईरान) पर नजर रखने में अपार लाभ मिलता है.


जहां तक इसके रणनीतिक महत्व का सवाल है तो बगराम, अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से लगभग 60 किमी उत्तर में, एक ऐसे स्थान पर है जहाँ से ईरान, पाकिस्तान, चीन (विशेषकर शिंजियांग क्षेत्र), और मध्य एशिया तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। यहाँ से अमेरिकी वायुसेना लगभग हर दिशा में कार्रवाई के लिए तैयार रह सकती है।

इसकी विशाल रनवे, उन्नत मेडिकल सुविधाएँ, इंटेलिजेंस और सिग्नल सर्विलांस सेंटर, तथा बड़े पैमाने पर सैन्य लॉजिस्टिक्स ने इसे अफगान युद्ध के दौरान अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य केंद्र बनाया था। यहाँ से आतंकवाद विरोधी अभियानों के साथ-साथ पूरे क्षेत्र पर निगरानी रखी जाती थी।


सवाल है कि आखिर अमेरिका इसे क्यों वापस चाहता है? तो जवाब होगा कि चीन के खिलाफ अपनी रणनीति को धार देने के लिए, क्योंकि यह बेस चीन के शिंजियांग प्रांत से करीब एक घंटे की फ्लाइट दूरी पर अवस्थित है, जहाँ चीन अपने न्यूक्लियर मिसाइल और सैन्य निर्माण को बढ़ा रहा है। अमेरिका इस आधार से चीन की गतिविधियों और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स (जैसे बेल्ट एंड रोड) पर निगरानी बढ़ाना चाहता है। वहीं, रूस और ईरान की गतिविधियों की निगरानी तथा मध्य एशिया में अमेरिकी प्रभाव बनाए रखना इसकी प्राथमिकता है। अफगानिस्तान के खनिज भंडार, नए व्यापारिक रास्ते तथा क्षेत्रीय सामरिक स्थिति नियंत्रण में अमेरिका के लिए बगराम काफी अहम है। क्षेत्रीय आतंकवाद और उग्रवादी गतिविधियों पर प्रतिक्रिया की क्षमता यहाँ से सबसे सशक्त रहती है।


वहीं, मित्र देशों (जैसे भारत) के साथ इंटेलिजेंस साझा करना और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना भी इस बेस का मुख्य उद्देश्य है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि बगराम एयरबेस क्षेत्रीय शक्ति संतुलन, सैन्य पहल, खुफिया कार्य, तथा चीन-रूस जैसे देशों के प्रभाव को संतुलित करने के लिए अमेरिका के लिए एक अपर्याप्त सामरिक संपत्ति है।


खास बात यह है कि अफगानिस्तान स्थित बगराम हवाई अड्डे को अमेरिका द्वारा पुनः पाने की कोशिशों के मुद्दे पर साथ पाकिस्तान, चीन, रूस और ईरान परस्पर साथ आए हैं और दो टूक कहा है कि ताजा अमेरिकी पहल वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा है। यहां पाकिस्तान का ईरान, रूस और चीन के साथ खड़ा होना अमेरिका के लिए किसी बुरे स्वप्न की तरह है, क्योंकि अमेरिका ने भारत को नाराज करके पाकिस्तान व बंगलादेश को साधने की जो कोशिश की है, वह दांव भी उल्टा पड़ गया है। इससे एशिया में अमेरिकी पांव उखड़ने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं।


दरअसल, पाकिस्तान, चीन, ईरान और रूस ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य ठिकाने बनाने का विरोध किया और ऐसा होने पर आतंकवाद और नशीले पदार्थों के खतरे सम्बन्धी चिंता जताई है। इसमें एक महत्वपूर्ण एशियाई किरदार भारत भले ही शामिल नहीं है, लेकिन आतंकवाद और नशीले पदार्थों पर रोक लगाने सम्बन्धी उसकी मौलिक चिताओं को भी शामिल कर लिया गया है ताकि भविष्य में इस रूसी-ईरानी-अफगानी मित्र को भी साधा जा सके।


हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ में अफगानिस्तान की स्थिति पर पाकिस्तान, चीन, ईरान और रूस ने अपना संयुक्त बयान  जारी करते हुए कहा कि क्षेत्र में किसी भी सैन्य ठिकाने की स्थापना का वे कड़ा विरोध करते हैं। इन चारों देशों की यह राय अमेरिका को खुली नसीहत समझी जा रही है। क्योंकि उसके ही देश न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र के दौरान हुई चौथी क्वाड्रीपार्टिट (Quadripartite) बैठक में इन चार देशों के विदेश मंत्रियों ने एक बयान देते हुए कहा कि अफगानिस्तान की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए। अमेरिकी-यूरोपीय नेतृत्व वाले नाटो देशों को मौजूदा संकट के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा गया कि अब उन्हें अफगानिस्तान की आर्थिक बहाली और विकास के अवसर पैदा करने चाहिए।


चारों देशों ने आरोप लगाते हुए कहा कि अफगानिस्तान में आईएसआईएल, अलकायदा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और मजीद ब्रिगेड जैसी आतंकी गतिविधियां अभी भी क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बनी हुई हैं। इसलिए अफगान अधिकारियों को ठोस कदम उठाकर इन संगठनों को खत्म करना होगा। इसके साथ ही, अफगान शरणार्थियों की सुरक्षित और समयबद्ध वापसी सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय और दानदाताओं को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करनी चाहिए। साथ ही लौटने वालों के पुनर्वास और सामाजिक-राजनीतिक जीवन में शामिल करने की जिम्मेदारी अफगान सरकार को उठानी होगी। 


चार देशों ने इस बात पर भी जोर दिया कि अफगानिस्तान में एक समावेशी और व्यापक शासन प्रणाली बने जो समाज के सभी वर्गों की आकांक्षाओं और हितों को दर्शाए। इसमें महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा, कामकाज और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी को शांति और स्थिरता के लिए अहम बताया गया। चारों देशों ने दो टूक कहा है कि मॉस्को फॉर्मेट, अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों की बैठक और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) जैसे क्षेत्रीय ढांचे राजनीतिक समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

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