By रितिका कमठान | Dec 01, 2022
अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा वालकर की हत्या के आरोपी आफताब अमीन पूनावाला का नार्को टेस्ट सफल रहा है। दिल्ली को रोहिणी स्थित अंबेडकर अस्पताल में आफताब का नार्को टेस्ट लगभग दो घंटे तक चला जिसमें उसने कबूल किया है उसने ही श्रद्धा की हत्या की है।
ये जानकारी FSL के असिस्टेंट डायरेक्टर संजीव गुप्ता ने मीडिया को दी है। आफताब ने नार्को टेस्ट में ये भी कबूल किया है कि उसने हत्या के बाद श्रद्धा के कपड़ों और उसका मोबाइल कहां ठिकाने लगाया था। पुलिस को जिन जिन सवालों के जवाब नहीं मिल रहे थे उन सभी सवालों का जवाब आफताब ने दिया है।
आफताब ने नार्को टेस्ट की जांच में बताया कि उसने श्रद्धा के शव के टुकड़े करने में जिस हथियार का इस्तेमाल किया था उसे कहां ठिकाने लगाया है। बता दें कि नार्को टेस्ट की रिपोर्ट को कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता है मगर इस जांच में सामने आए सुरागों की मदद से पुलिस की टीम सबूत खोज सकती है।
आफताब ने नार्को टेस्ट के दौरान जिन जगहों के बारे में जानकारी दी है अगर पुलिस उन जगहों पर जाकर श्रद्धा के कपड़े और मोबाइल को बरामद करती है तो ये चीजें श्रद्धा हत्याकांड मामल में अहम सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश की जा सकेंगी। कोर्ट में इ सबूतों को पेश करना दिल्ली पुलिस की टीम के लिए बड़ी सफलता होगी।
जानकारी के मुताबिक आफताब पूनावाला को एक दिसंबर की सुबह आठ बजकर 40 मिनट पर रोहिणी के ड़ॉ. बाबा साहेब अंबेडकर अस्पताल में लाया गया था। इसी अस्पताल में सात डॉक्टरों की टीम ने आफताब का नार्को टेस्ट किया है। आफताब की जांच सुबह 10 बजे शुरू हुई थी। जांच के बाद भी आफताब को चिकित्सीय निगरानी में रखा गया है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नार्को जांच से पहले पूनावाला की रक्तचाप, नाड़ी की गति, शरीर का तापमान और दिल की धड़कन की जांच समेत अन्य सामान्य जांच की गयी। उन्होंने बताया कि प्रक्रिया के तहत, पूनावाला और उसकी जांच कर रही नार्को टीम की पूरी जानकारी के साथ एक सहमति फॉर्म उसके समक्ष पढ़ा गया।
फॉर्म पर उसके हस्ताक्षर करने के बाद नार्को जांच की गयी। नार्को जांच में सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम एमिटल जैसी दवा दी जाती है जो व्यक्ति को एनेस्थीसिया के विभिन्न चरणों तक लेकर जाती है। सम्मोहन (हिप्नोटिक) चरण में व्यक्ति पूरी तरह होश हवास में नहीं रहता और उसके ऐसी जानकारियां उगलने की अधिक संभावना रहती है जो वह आमतौर पर होश में रहते हुए नहीं बताता है। जांच एजेंसियां इस जांच का इस्तेमाल तब करती हैं जब अन्य सबूतों से मामले की साफ तस्वीर नहीं मिल पाती है।