Yes Milord: जाति या वंश के आधार पर मंदिर...CJI के बाद अब पुजारियों पर क्या बोला हाई कोर्ट?

By अभिनय आकाश | Oct 25, 2025

अभी कुछ ही हफ्ते पहले की बात है सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई पर हमला करने की कोशिश की। यह घटना तब घटी जब सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ वकीलों द्वारा मामलों की सुनवाई कर रही थी। बाहर निकलते समय वकील को यह कहते सुना गया कि सनातन का अपमान नहीं सहेंगे। दरअसल, वकील सीजेआई गवई मध्य प्रदेश के खजुराहो स्थित जवारी मंदिर में भगवान विष्णु की सात फुट लंबी सिर कटी हुई मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए की गई अपनी टिप्पणी  को लेकर नाराज था। हालांकि तब जज ने ये भी साफ किया था कि उनके कहने का मतलब वो नहीं था जो की निकाला गया, वो एक अलग बात है। लेकिन अब केरल हाई कोट ने भी मंदिर के पुजारियों को लेकर एक टिप्पणी की है। क्या है पूरा मामला और किस मौके पर ये टिप्पणी की गई है। आज आपको बताते हैं। 

इसे भी पढ़ें: मतदान के अधिकार पर आंच नहीं: मद्रास HC के निर्देश पर EC एक हफ्ते में करेगा सूची का सत्यापन

जिस तरीके से सीजेआई वाले प्रकरण में बहुत ज्यादा विवाद देखने को मिला था। उसमें कहीं न कहीं चीजें बहुत ज्यादा ही अलग हो गई थी। हालांकि वो एक अलग मामला है, लेकिन कुछ ऐसा ही मामला अगर  केरल से निकल कर सामने आया। केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि मंदिरों में पुजारी की नियुक्ति जाति या वंश के आधार पर नहीं हो सकती। यह काम योग्यता और प्रशिक्षण के आधार पर होना चाहिए। यह मामला अखिल केरल थंथ्री समाजम की याचिका से जुड़ा है। यह संगठन उन परिवारों का प्रतिनिधित्व करता है जो पीढ़ियों से मंदिरों में पूजा करते आए हैं। संगठन ने कोर्ट में कहा कि पूजा का अधिकार सिर्फ पारंपरिक थंथी परिवारों को ही मिलना चाहिए। लेकिन केरल देवस्वम बोर्ड और देवस्वम भर्ती बोर्ड ने नया नियम बनाया। इसके तहत किसी भी जाति या वंश का व्यक्ति, अगर उसने मान्यता प्राप्त थंध्रा विद्यालय से पूजा की ट्रेनिंग ली है, तो वह पुजारी बन सकता है।

इसे भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट में AI डीपफेक रेगुलेशन पर जनहित याचिका, निजता व राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा

थंथी समाज ने इस नियम का विरोध किया। उनका कहना था कि मंदिर में पूजा कौन करेगा, यह धार्मिक मामला है। सरकार या कोई बोर्ड इसमें दखल नहीं दे सकता। उन्होंने कहा कि यह नियम धार्मिक परंपराओं और ग्रंथों के खिलाफ है। कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया। कहा कि पुजारी की नियुक्ति धार्मिक नहीं, प्रशासनिक विषय है। पूजा करना धार्मिक काम हो सकता है, लेकिन यह तय करना कि कौन पुजारी बनेगा, यह मंदिर प्रबंधन का अधिकार है।

इसे भी पढ़ें: प्रधानमंत्री मोदी को 'युद्ध अपराधी' कहने वाले Zohran Mamdani दिवाली पर फिर बरसे, बोले- बहुलवादी भारत में पला-बढ़े...

कोट ने ये भी साफ किया कि किसी को सिर्फ इसलिए मंदिर में पूजा करने से नहीं रोका जा सकता कि वो किसी खास जाती या फिर परिवार से नहीं आता है। ये साफतोर पर कहा गया है। मतलब परिवार वाली बात जो है, उसको खारिज कर दिया गया। तो खासतोर पर यही है कि कोट रूम में हमेशा कई बार ये होता कि पुराने केसेज का भी हवाला लिया जाता है जो नए फैसले दिये जाते हैं। लेकिन जो ताजा मामला हुआ, इसमें जाती और वंश की जो बात कही गई है केरल हाई कोर्ट की ओर से कि वो उसकी अनिवारिता नहीं है।

 

प्रमुख खबरें

Messi Event Chaos: साल्ट लेक स्टेडियम में हंगामे की जांच शुरू, समिति ने किया निरीक्षण

U19 Asia Cup: भारत ने पाकिस्तान को 90 रन से हराकर ग्रुप-ए में बढ़त बनाई

CUET PG 2026: सीयूईटी पीजी एग्जाम के लिए आवेदन हुए स्टार्ट, मार्च में आयोजित होगी परीक्षा

Sydney Terror Attack । बॉन्डी बीच पर बच्चों समेत 12 की मौत, यहूदी उत्सव था निशाना