By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Sep 01, 2025
ट्रंप के टैरिफ वार के दौरान ही 2025 वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के जीडीपी के परिणाम इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाते है कि ट्रंप द्वारा हमारी अर्थव्यवस्था को मृत अर्थव्यवस्था करार देने के बावजूद चीन से भी हमारी जीडीपी विकास दर अधिक रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन एनएसओ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार जीडीपी 7.8 प्रतिशत रही है। यह पिछले एक साल यानी कि अप्रैल-जून 2024, जुलाई-सितंबर 2024, अक्टूबर-दिसंबर 2024 और जनवरी-मार्च 2025 की तुलना में भी अधिक है। सबसे खासबात यह है कि जीडीपी में बढ़ोतरी का श्रेय कृषि और सर्विस सेक्टर को जा रहा है। कृषि सेक्टर ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह अर्थ व्यवस्था का प्रमुख स्तंभ है और तेजी से विकसित होती भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। निश्चित रुप से इसका श्रेय अन्नदाता को तो जाता ही है इसके साथ ही सरकार की किसानोन्मुखी और कृषिनोन्मुखी नीति को भी जाता है। कृषि और संबंध क्षेत्र जिसमें कृषि के साथ ही पशुपालन, वानिकी और मत्स्य पालन शामिल है। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का 14 प्रतिशत योगदान है तो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से 50 प्रतिशत से अधिक लोगों की आजीविका एग्रीकल्चर सेक्टर पर आज भी निर्भर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को पूरा करने में कृषि क्षेत्र में भी पीछे नहीं रहने वाला है। देश में करीब 51 प्रतिशत यानी कि 159 मिलियन हैक्टेयर भूमि में खेती हो रही है। इसमें से 50 प्रतिशत से कुछ अधिक भूमि ही सिंचित है जबकि बहुत बड़ा क्षेत्र मानसून की मेहरबानी पर निर्भर है। यह एक सकारात्मकता है कि इस साल अभी तक मानसूनी बरसात औसत से अधिक और अच्छी बरसात हुई है। पिछले सालों में भी मानसून अनुकूल रहने से कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है।
कृषि और अन्नदाता की महत्ता को कोरोना काल ने बेहतर तरीके से समझा दिया है। कोरोना काल में कृषि सेक्टर ने दो तरह से सहभागिता निभाई। एक तो जहां सब कुछ लॉक डाउन की भेंट चढ़ रहा था यहां तक कि घर में कैद होकर रह गए थे तब भी कृषि सेक्टर अपनी प्रभावी भूमिका निभाता रहा वहीं दूसरी और अन्नदाता की मेहनत से देश के गोदामों में भरे खाद्यान्नों के भण्डारों ने देश में खाद्यान्न की उपलब्धता बनाये रखी। आज भी करीब 80 करोड़ देशवासियों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है। यह अपने आप में बड़ी बात है। योजनाबद्ध तरीके से एक और किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं वहीं खासतौर से दलहन-तिलहन में भी देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास जारी है। किसान सम्मान निधि किसानों के लिए बड़ा सहारा बनती जा रही हैं वहीं ब्याजमुक्त कृषि ऋण, केसीसी का बढ़ता दायरा और ई नाम मण्डी, प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा, स्टोरेज सुविधा बढ़ाने के साथ ही समय पर खाद-बीज आदि की उपलब्धता का प्रभाव सामने हैं। एनएसओ की रिपोर्ट के अनुसार कृषि क्षेत्र की जीडीपी में भागीदारी 3.7 प्रतिशत रही है जबकि साल भर पहले यह 1.5 थी। ऐसे में यह अपने आप में आशा का संचार है। निर्यात के क्षेत्र में भी कृषि सेक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। दरअसल अमेरिका और ट्रंप का निशाना हमारा कृषि क्षेत्र और डेयरी क्षेत्र प्रमुखता से हैं। अमेरिका के आगे सरेण्डर होने के स्थान पर हमारी सरकार ने ट्रंप के टैरिफ से निपटने का संकल्प लिया है यह अपने आप में बड़ी बात है। हो सकता है कि आने वाली तिमाही में ट्रंप टैरिफ का असर दिखाई दे पर जिस तरह से सरकार द्वारा वैकल्पिक प्रयास आरंभ किये जा रहे हैं उससे लगता है कि अर्थ व्यवस्था पर नकारात्मक असर नहीं होगा या होगा भी तो देश इससे निपटने को तैयार है। 50 प्रतिशत टैरिफ की चुनौती को आज समूचा देश निपटने को तैयार है। हालांकि ट्रंप ने सोचा था कि हम सरेण्डर कर देंगे, ड़र जाएंगे पर अब गीदड़ भभकी बेअसर होती देखकर ट्रंप की खीज अवश्य बढ़ने लगी है। पर यह नहीं भूलना चाहिए कि ट्रंप को अपने देश में ही अपनी तुगलकी नीति के कारण देर सवेर मुंह की खानी पड़ेगी। हालांकि अमेरिकी कोर्ट ने ट्रंप के टैरिफ निर्णय को अनुचित करार दे दिया है। आने वाले दिनों में इसके प्रभाव अमेरिका में और अधिक दिखाई देंगे क्योंकि हम और हमारी सरकार ट्रंप की चुनौती से निपटने के लिए मानसिक रुप से तैयार हो चुकी है।
खैर यह विषयांतर होगा। कहने का अर्थ है कि यह और आने वाले साल भी खेती-किसानी के लिए सकारात्मक ही होंगी। रबी के अच्छे परिणाम आये हैं। चालू खरीफ में अच्छे मानसून के चलते अच्छी बुवाई हुई है। बुवाई क्षेत्र बढ़ा है। सरकार भी बड़े लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है। हालांकि यह कटु सत्य है कि ग्रामीण रहवासियों की आजीविका का प्रमुख माध्यम खेती ही है तो समूचे देश की खाद्य सुरक्षा की जिम्मेदारी भी इसी क्षेत्र के पास है। अमेरिकी नीति के कारण निर्यात पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को भी अन्य देशों को निर्यात बढ़ाकर पूर्ति करने की बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही खेती किसानी की अपनी चुनौतियां बरकरार है। आज भी कुल कृषि उत्पादन का 10 से 15 प्रतिशत उत्पादन फसलोत्तर सुविधाओं की कमी के कारण बर्बाद हो जाता है। कृषि जोत कम होती जा रही है। बढ़ते शहरीकरण का प्रभाव भी पड़ रहा है। कृषि क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज, परिवहन की कोल्ड चेन और भण्डारण की बेहतर व्यवस्थाओं की दरकार है। कृषि प्रसंस्करण क्षेत्र और फूड पार्क जिस तरह से आकार लेने चाहिए थे वे ले नहीं पाये है। बीमा क्षेत्र में भी बहुत किया जाना अपेक्षित है तो कृषि उपज की खरीद व्यवस्था और एमएसपी खरीद को लेकर भी तेजी से काम किया जाना है। सरकार को एक बात समझनी चाहिए कि खेती क्षेत्र में जो भी सब्सिडी देय है उसे उत्पादकता से जोड़ा जाये यथा कृषि इनपुट या यों कहे कि खाद-बीज, कीटनाशक आदि के किट के रुप में उपलब्ध कराया जाये तो उसका लाभ अनुदानित राशि के स्थान पर इनपुट मिलने से उसका उपयोग खेती किसानी में ही होने से उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में ही होगा। इसी तरह से खरीद व्यवस्था में बहुत सुधार के बावजूद अभी भी बहुत करते हुए बिचौलियों को व्यवस्था से दूर करना होगा। खैर यह सब दीर्घकालीन सुधार कार्य है पर बेहतर जीडीपी प्रदर्शन और कृषि क्षेत्र की उल्लेखनीय हिस्सेदारी को प्रोत्साहित करते हुए सराहना की जानी चाहिए।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा