AIMIM फिर से यूपी टेस्ट में फेल, सपा के वोटों में नहीं लगा पाए कोई सेंध

By अभिनय आकाश | Mar 10, 2022

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी आक्रामक तरीके से अपनी पार्टी को हैदराबाद से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ओवैसी हिंदी भाषी क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रहे हैं। उनकी पार्टी ने 2017 के मुकाबले इस बार के विधानसभा चुनाव में तीन गुना से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन राज्य में अपना खाता खोलने में फिर से विफल रही है। 

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2017 में एआईएमआईएम ने राज्य की 403 सीटों में से 38 पर चुनाव लड़ा और लगभग 2 लाख वोट हासिल किए जो कि वोटशेयर का लगभग 0.2 प्रतिशत है। इस बार 2022 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 97 सीटों पर चुनाव लड़ा और सीटों की संख्या में कोई इजाफा नहीं हुआ लेकिन पार्टी का वोट शेयर जरूर बढ़कर 0.46 प्रतिशत हो गया। 

मुसलमानों को साधने में नाकाम

यूपी चुनावों के लिए पार्टी बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी और भारत मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन में थी। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक यूपी विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम को लगभग 3.4 लाख वोट मिले हैं। एआईएमआईएम के खराब प्रदर्शन से संकेत मिलता है कि ओवैसी यूपी के मुसलमानों को यह समझाने में नाकाम रहे कि वह भाजपा के लिए एक मजबूत विकल्प हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज में राजनीतिक विश्लेषक और सहायक प्रोफेसर अजय गुडावर्ती का कहना है कि मुसलमानों ने बहुत सावधानी से मतदान किया और उनका एकमात्र ध्यान किसी ऐसे व्यक्ति को चुनना रहा जो भाजपा का मुकाबला कर सके। ओवैसी इस रूप में उभरने में विफल रहे। गुडावर्ती के अनुसार मुसलमानों को यह विश्वास नहीं था कि एआईएमआईएम ने "काउंटर पोलराइजेशन" के अलावा क्षेत्रीय दलों को "वैकल्पिक एजेंडा" की पेशकश की। उन्होंने कहा कि कई मुसलमान समाजवादी पार्टी से मुस्लिम वोटों को काटने के लिए भाजपा की बी टीम के रूप में काम कर रहे हैं। 

सपा के वोटों में कोई बड़ा सेंध नहीं

उत्तर प्रदेश में 19 प्रतिशत मुस्लिम आबादी का एक बड़ा वर्ग अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के समर्थन में है, जिसके वोटशेयर में एआईएमआईएम के सेंध लगाने की उम्मीद थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​​​है कि प्रभाव सबसे कम रहा है और ओवैसी सपा के वोट काटने में सफल नहीं हो पाए। मुस्लिम वोटर साइलेंट वोटर माने जाते हैं और 73 विधानसभा क्षेत्रों में 30 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व रखते हैं। वे सिर्फ उस पार्टी को वोट देना चाहते हैं जो बीजेपी को हराने में सक्षम हो। 

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