By अनन्या मिश्रा | Dec 01, 2025
दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में सर्दियां बढ़ते ही घना धुंध, वायु प्रदूषण और ठंडी हवा का घातक मिश्रण एक गंभीर सेहत संकट पैदा करता है। प्रदूषण का लेवल बढ़ने और गिरते तापमान की वजह से अस्थमा, सांस की समस्याएं, सीओपीडी और ब्रोंकाइटिस के मरीजों की मुश्किलें काफी बढ़ जाती हैं। वहीं वातावरण में मौजूद PM2.5 जैसे सूक्ष्म कण श्वसन मार्ग में स्थायी सूजन की समस्या पैदा करते हैं। बता दें कि इस जानलेवा वातावरण में हमारी रोजमर्रा की लापरवाहियां स्थिति को बदतर बना देती हैं और गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकती हैं।
इसलिए यह समझना बेहद जरूरी है कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से न सिर्फ हमारे फेफड़े बल्कि रक्त वाहिकाएं और हृदय भी प्रभावित होता है। हालांकि इन गंभीर सेहत संबंधी समस्याओं को कम करने के लिए आप कुछ आम और खतरनाक लापरवाहियों को फौरन सुधारना जरूरी है। यह छोटे-छोटे सुधार आपकी सेहत में बड़ा और सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
अधिक AQI वाले वातावरण में बाहर मॉर्निंग वॉक करना या फिर एक्सरसाइज करना सबसे बड़ी लापरवाही है। एक्सरसाइज के दौरान हम तेज और गहराई से सांस लेते हैं। जिस कारण फेफड़ों तक पहुंचने वाले PM2.5 कणों की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है। फिर यह कण खून में मिलकर सूजन पैदा करते हैं और हृदय पर भी दबाव डालते हैं।
घर के अंदर धूम्रपान करना या धूपबत्ती/मच्छर कॉइल जलाना इनडोर प्रदूषण को बढ़ा देता है। बंद कमरे में इन चीजों का धुआं आसानी से बाहर नहीं निकल पाता है। जिस कारण PM2.5 कणों का लेवल तेजी से बढ़ता है और सांस की नली में जलन पैदा करता है।
जब AQI 'बहुत खराब' या 'गंभीर' श्रेणी में हो, तब N99 या N95 मास्क न पहनना खतरनाक साबित हो सकता है। यह मास्क ही एक ऐसा प्रभावी तरीका है, जो सूक्ष्म PM2.5 कणों को फेफड़ों तक पहुंचने से रोकता है। बिना मास्क पहने घर से बाहर निकलना हृदय और फेफड़ों को सीधे नुकसान पहुंचाता है।
सर्दियों में कम प्यास लगने की वजह से लोग कम पानी पीते हैं। जिस कारण शरीर में डिहाइड्रेशन हो जाता है। इससे श्वसन मार्ग की श्लेष्मा झिल्ली सूख जाती है। सूखी झिल्ली प्रदूषकों और वायरस को फिल्टर करने में कम प्रभावी होती है। जिस कारण सांस की समस्याएं और संक्रमण का खतरा अधिक बढ़ जाता है।