दुनिया बदल जाये पर परिवारवादी दल नहीं बदलेंगे ! लगातार तीसरी बार अखिलेश यादव ने ही क्यों संभाला साइकिल का हैंडल?

By नीरज कुमार दुबे | Sep 29, 2022

परिवारवादी पार्टियां भी गजब हैं। बात लोकतंत्र की करती हैं लेकिन पार्टी के पदों पर परिजनों का ही कब्जा रहता है। यही नहीं जब चुनावों के समय टिकट देने की बात आती है तब भी पहले परिजन फिर पार्टीजन का फार्मूला अपनाया जाता है। अब समाजवादी पार्टी को ही लीजिये। अक्टूबर 1992 में इस पार्टी का गठन किया गया। उसके बाद से पहले मुलायम सिंह यादव पार्टी के अध्यक्ष रहे और 2017 से यह पद उनके बेटे अखिलेश यादव संभाल रहे हैं। अब तो यह पद उनके पास पांच साल के लिए और आ गया है क्योंकि उन्हें लगातार तीसरी बार समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव अधिकारी और सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में उन्हें निर्विरोध पार्टी अध्यक्ष चुने जाने का ऐलान किया। देखा जाये तो वैसे भी यह पहले से ही तय था कि अखिलेश को ही राष्ट्रीय अधिवेशन में लगातार तीसरी बार पार्टी अध्यक्ष चुना जायेगा क्योंकि किसी और ने इस पद के लिए आवेदन ही नहीं किया था।


हम आपको याद दिला दें कि समाजवादी पार्टी में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव से गतिरोध के कारण पार्टी के झंडे और चुनाव निशान को लेकर अदालती लड़ाई जीतने के बाद अखिलेश यादव को एक जनवरी 2017 को आपात राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर पहली बार पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव के स्थान पर दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। उसके बाद अक्टूबर 2017 में आगरा में हुए विधिवत राष्ट्रीय अधिवेशन में उन्हें एक बार फिर सर्वसम्मति से पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था। उस वक्त पार्टी के संविधान में बदलाव कर अध्यक्ष के कार्यकाल को तीन साल से बढ़ाकर पांच वर्ष कर दिया गया था।

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सपा का यह राष्ट्रीय अधिवेशन वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी की लगातार चुनावी शिकस्तों के बाद आयोजित हो रहा है जिसमें एक दिन पहले ही नरेश उत्तम पटेल को यूपी की सपा इकाई का दोबारा अध्यक्ष चुना गया था। अखिलेश तीसरी बार पार्टी के अध्यक्ष तो बन गये हैं लेकिन उनके नेतृत्व में जितने भी चुनाव हुए उनमें पार्टी को करारी शिकस्त ही झेलनी पड़ी है। यही नहीं, उत्तर प्रदेश में आने वाले चुनावों को देखते हुए भाजपा की जोरदार तैयारियां हैं जिससे अखिलेश के सामने अब चुनौतियां पहले से अधिक होंगी। उनके सामने आगामी नवम्बर-दिसम्बर में सम्भावित नगर निकाय के चुनाव और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व को पिछली गलतियों से सीख लेते हुए संगठन को नए सिरे से सक्रिय करते हुए उसमें नयी ऊर्जा भरनी होगी।


बहरहाल, तीसरी बार अध्यक्ष बनने के बाद अखिलेश ने पार्टी को जीत का विश्वास दिलाया है और योगी सरकार पर निशाना भी साधा है। लेकिन उन्हें यह ध्यान रखना होगा कि दूसरे दलों पर हमलावर रहने भर से काम नहीं चलने वाला। जिस तरह से अपने ही गठबंधन के साथी उन पर आरोप लगाते हुए छोड़कर जा रहे हैं उसको देखते हुए अखिलेश को बहुत संभल कर चलना होगा।


-नीरज कुमार दुबे

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