Parshuram Janmotsav 2024: परशुराम जन्मोत्सव व्रत से सभी दुख होते हैं दूर

By प्रज्ञा पाण्डेय | May 10, 2024

आज परशुराम जन्मोत्सव है, इस दिन न्याय के देवता परशुराम का जन्म हुआ था। इस दिन भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है तो आइए हम आपको परशुराम जन्मोत्सव की व्रत विधि एवं महत्व के बारे में बताते हैं।  


जानें परशुराम जन्मोत्सव के बारे में 

विष्णुजी के छठे अवतार और सात चिरंजीवी में से एक भगवान परशुराम को न्याय का देवता माना जाता है। भगवान परशुराम का अक्षय तृतीया के दिन जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस साल 10 मई को वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया है। अतः परशुराम जन्मोत्सव 10 मई को मनाई जाएगी। इस दिन अक्षय तृतीया भी है। अक्षय तृतीया पर सोने की खरीदारी की जाती है। साथ ही धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। वहीं, वैष्णव समाज के अनुयायी भगवान विष्णु के पष्ठ (छठे) अवतार परशुराम जी की पूजा-उपासना करते हैं। पंडितों का मानना है कि परशुराम जन्मोत्सव पर भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक को मृत्यु लोक में ही स्वर्ग समान सुखों की प्राप्ति होती है।

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अगर आप भी भगवान परशुराम की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को स्नान-ध्यान कर विधि-विधान से जगत के संचालनकर्ता की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय भगवान परशुराम के 108 नामों का मंत्र जप करें। भगवान परशुराम के नाम मंत्र जप से सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं। पंडितों का मानना है कि परशुराम जन्मोत्सव पर भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक को मृत्यु लोक में ही स्वर्ग समान सुखों की प्राप्ति होती है। अगर आप भी भगवान परशुराम की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को स्नान-ध्यान कर विधि-विधान से जगत के संचालनकर्ता की पूजा करें।


परशुराम जन्मोत्सव का शुभ मुहूर्त 

अक्षय तृतीया तिथि पर भगवान विष्णु और भोलेनाथ के संयुक्त अवतार भगवान परशुराम का जन्म हुआ। इस कारण से हर वर्ष अक्षय तृतीया के पर्व के मौके पर भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार परशुराम जन्मोत्सव 10 मई, शुक्रवार को है। इस दिन भगवान परशुराम के साथ-साथ भोलेनाथ और भगवान विष्णु की उपासना का महत्व है।  


गणेश जी को एकदंत परशुराम ने ही बनाया 

परशुराम अत्यन्त क्रोधी थे। इनके क्रोध से भगवान गणेश भी नहीं बच पाये थे। परशुराम ने अपने फरसे से वार कर भगवान गणेश के एक दांत को तोड़ दिया था जिसके कारण से भगवान गणेश एकदंत कहलाए जाते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो कुछ दान किया जाता है वह अक्षय रहता है यानी इस दिन किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता है। 

परशुराम कहे जाने के पीछे ये भी हैं कारण 

भगवान परशुराम का जन्म एक खास प्रकार के यज्ञ के समापन के पश्चात हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ। यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र ने महर्षि की पत्नी को वरदान दिया। इस वरदान से उनकी  पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को एक बालक का जन्म हुआ था। यह बालक कोई समस्या बालक नहीं थे बल्कि वह भगवान विष्णु का अवतार माने जाते हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण करने के कारण वह परशुराम कहलाए।


कर्ण के श्राप की कहानी भी है रोचक 

भगवान परशुराम बहुत वीर तथा गुणवान थे। एक बार महाभारत काल में कुंती पुत्र कर्ण ने भगवान परशुराम से झूठ बोलकर उनसे शिक्षा ग्रहण की। भगवान परशुराम को जब यह बात पता चली तो वह क्रुद्ध हुए और उन्होंने कर्ण को श्राप दिया। भगवान परशुराम ने कर्ण को कहा कि उसने झूठ बोलकर जो भी विद्या सीखी वह भूल जाए। इसका असर यह हुआ कि कर्ण ने अब जो भी विद्या सीखी थी वह भूल गया। इसी कारण अस्त्र-शस्त्र नहीं चला पाने के कारण कर्ण की मृत्यु हुई। 


अस्त्र दिया था भगवान शिव ने 

भगवान परशुराम के अस्त्र परशु को बहुत खास माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं उन्हें यह अस्त्र किसने दिया था तो आइए हम आपको इससे जुड़ी कथा के बारे में बताते हैं। भगवान परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा मानकर अपनी माता की हत्या कर दी। इस हत्या के कारण परशुराम जी पर मातृहत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने शिव जी की उपासना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पाप से मुक्त कर दिया तथा मृत्यलोक के कल्याण के लिए परशु नाम का अस्त्र प्रदान किया। परशु नाम का अस्त्र रखने के कारण ही उनका नाम परशुराम पड़ा। 


क्यों मनाई जाता है परशुराम जन्मोत्सव?

धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु के कुल 10 अवतार हैं, जिनमें से छठा अवतार महर्षि परशुराम हैं। इसलिए हिंदू धर्म में परशुराम जन्मोत्सव को बहुत ही धूमधाम और पूरे विधान के साथ मनाया जाता है। दक्षिण भारत के उड़ुपी के पास भगवान परशुराम का बहुत बड़ा मंदिर है। परशुराम जन्मोत्सव के दिन भगवान परशुराम का पूजन करने से व्यक्ति को पराक्रम और बलशाली बनने का आशीर्वाद मिलता है।


त्रेता और द्वापर दोनों युगों में रहें मौजूद

भगवान परशुराम के साथ त्रेता और द्वापर दोनों युग में मौजूद रहें। महाभारत में उन्होंने भगवान कृष्ण की लीला देखी तो वहीं त्रेता युग में भगवान राम की भी लीला देखी। भगवान श्री राम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र सौंपा था। वही सुदर्शन चक्र परशुराम जी ने द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण को वापस किया।


- प्रज्ञा पाण्डेय

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