आईपीओ से जुटाई गई राशि 2022 में हुई आधी, अगले साल और गिरावट की आशंका

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Dec 19, 2022

सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर मूल्य में गिरावट आने और भू-राजनीतिक तनाव के कारण आई अस्थिरता से प्राथमिक बाजारों में धारणाएं प्रभावित हुईं जिससे आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के जरिये वर्ष 2022 में महज 57,000 करोड़ रुपये ही जुटाए जा सके। नए वर्ष में इन गतिविधियों में और भी सुस्ती आने का अनुमान है। इस साल आईपीओ के जरिये जुटाए गए कोष में से 20,557 करोड़ रुपये यानी 35 फीसदी हिस्सेदारी अकेले एलआईसी के आईपीओ की थी। अगर इस साल एलआईसी का आईपीओ नहीं आया होता तो आरंभिक शेयर बिक्री से होने वाला कुल संग्रह और भी कम होता।

बढ़ती मुद्रास्फीति के बीच ब्याज दरों में बढ़ोतरी और मंदी की आशंका के कारण 2022 का साल निवेशकों के लिए परेशानी भरा रहा। ट्रू बीकन एंड जिरोधा के सह-संस्थापक निखिल कामत ने कहा, ‘‘दुनियाभर में वृद्धि के मंद पड़ने के बीच 2023 मुश्किल साल रहने वाला है। भारत में भी इसके दुष्प्रभाव नजर आएंगे। मेरा अनुमान है कि 2023 में बाजार नरम रह सकता है और आईपीओ के जरिये पूंजी जुटाने की गतिविधियों में भी अगले वर्ष कमी आ सकती है या फिर यह 2022 के स्तर पर ही रह सकता है।’’

जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेस में शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा कि शेयर बाजारों में अस्थिरता रहने की आशंका के बीच 2023 में आईपीओ का कुल आकार कम रहने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि हाल में आए आईपीओ के कमजोर प्रदर्शन का भी निवेशकों पर असर पड़ने और उसकी वजह से निकट भविष्य में कमजोर प्रतिक्रिया रहने का अनुमान है। प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल 16 दिसंबर तक कुल 36 कंपनियां अपने आईपीओ लेकर आईं जिससे 56,940 करोड़ रुपये जुटाए गए। अगले हफ्ते दो और कंपनियों के आईपीओ आने वाले हैं जिसके बाद यह राशि और बढ़ जाएगी।

वर्ष 2021 में 63 कंपनियों ने सार्वजनिक निर्गम से 1.2 लाख करोड़ रुपये जुटाये थे जो बीते दो दशकों में आईपीओ का सबसे अच्छा साल रहा था। इसके पहले 2020 में 15 कंपनियों ने आईपीओ के जरिए 26,611 करोड़ रुपये जुटाये थे। आईपीओ के अलावा रूचि सोया की सार्वजनिक पेशकश में 4,300 करोड़ रुपये जुटाए गए थे। फरवरी में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने की वजह से निवेशकों के लिए माहौल परेशानी भरा रहा क्योंकि भारत समेत दुनियाभर के बाजारों में गिरावट आई। इसके अलावा दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने बढ़ती मुद्रास्फीति को काबू में करनेके लिए ब्याज दरें बढ़ाईं इससे भी प्राथमिक बाजार की धारणा प्रभावित हुई। इसका असर शेयरों के दाम पर पड़ा और कंपनियों ने आईपीओ लाने की योजना टाल दी।

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