By नीरज कुमार दुबे | Sep 04, 2025
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित मणिपुर यात्रा से पहले केंद्र और मणिपुर सरकार ने आज कुकी-जो समूहों के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें सभी पक्ष मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने, राष्ट्रीय राजमार्ग-2 को मुक्त आवागमन के लिए खोलने और उग्रवादी शिविरों को स्थानांतरित करने पर सहमत हुए हैं। हम आपको बता दें कि त्रिपक्षीय ‘सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस’ (एसओओ) समझौते में आधारभूत नियमों पर पुनः बातचीत की गई है।
तीनों पक्षों ने मणिपुर में स्थायी शांति एवं स्थिरता लाने के लिए बातचीत के माध्यम से समाधान की आवश्यकता पर भी सहमति व्यक्त की है। साथ ही निर्धारित शिविरों की संख्या को कम करने, हथियारों को निकटतम केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ)/सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) शिविरों में सौंपने और विदेशी नागरिकों (यदि कोई हो) को सूची से हटाने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा उग्रवादियों के कड़े भौतिक सत्यापन पर भी सहमति व्यक्त की है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, एक संयुक्त निगरानी समूह आधारभूत नियमों के प्रवर्तन पर बारीकी से नजर रखेगा और भविष्य में उल्लंघनों से सख्ती से निपटेगा। साथ ही एसओओ समझौते की समीक्षा भी करेगा।
हम आपको बता दें कि वर्ष 2008 से लागू एसओओ व्यवस्था फरवरी 2024 से ठप थी, क्योंकि राज्य लगातार जातीय हिंसा और अविश्वास के दौर से गुजर रहा है। ऐसे समय में इस समझौते की बहाली न केवल वार्ता-आधारित समाधान को पुनर्जीवित करती है बल्कि मणिपुर के असंतुलित सामाजिक–राजनीतिक तानेबाने में संतुलन लाने का प्रयास भी है। हम आपको बता दें कि केंद्र के वार्ताकार दल, जिसमें खुफिया ब्यूरो और गृह मंत्रालय के अधिकारी शामिल हैं, उन्होंने बुधवार को कुकी-ज़ो समूहों के प्रतिनिधियों से बातचीत की। चर्चाएँ आज भी जारी रहीं। सूत्रों ने बताया है कि बातचीत सकारात्मक रही है और इसके अंत में SOO समझौते का नवीनीकरण हुआ।
हम आपको बता दें कि SOO व्यवस्था मणिपुर में संघर्ष विराम की न्यूनतम शर्तों को सुनिश्चित करती है। यदि कुकी-ज़ो समूह हिंसा से दूरी बनाए रखते हैं और हथियार शिविरों तक सीमित रखते हैं, तो राज्य में सुरक्षा बलों का बोझ घटेगा और सामान्य जीवन की पुनर्स्थापना आसान होगी। यह संदेश भी जाएगा कि सरकार वार्ता और विश्वास की राह पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है।
बताया जा रहा है कि कुछ बदलावों के माध्यम से इस समझौते को अधिक व्यावहारिक बनाया गया है। कैडरों का भत्ता सीधे बैंक खातों में भेजना भ्रष्टाचार और असमान वितरण को कम करेगा। साथ ही शिविरों के पुनर्वास से हथियारों की निगरानी सरल होगी। ये कदम उग्रवाद से जुड़े आर्थिक और संगठनात्मक ढांचे को नियंत्रित करने के प्रयास हैं, जो भविष्य में स्थायी शांति की नींव बन सकते हैं।
देखा जाये तो मणिपुर का संकट केवल सुरक्षा का नहीं, बल्कि गहरे जातीय विभाजन का भी है। वार्ता में यह सुनिश्चित किया गया है कि कुकी-ज़ो समूह राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (NH-2) पर मैतेई समुदाय की आवाजाही में बाधा न डालें और बदले में कुकी-ज़ो लोगों को इंफाल और हवाई अड्डे तक पहुँच मिले। यह वाकई win-win वाली स्थिति है।
हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी की आगामी यात्रा इस समझौते से राजनीतिक रूप से जुड़ी हुई है। उनकी यात्रा से पहले शांति का संकेत मिलना राज्य और केंद्र दोनों के लिए विश्वास बहाली का प्रतीक है। लेकिन यह भी सच है कि मणिपुर का संकट केवल औपचारिक समझौतों से हल नहीं होगा; दीर्घकालीन समाधान के लिए संवेदनशील राजनीतिक संवाद, न्याय और समावेशी विकास आवश्यक हैं। हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी का 12 या 13 सितंबर को मणिपुर दौरे पर जाना प्रस्तावित है। यह उनकी मई 2023 में भड़की जातीय हिंसा के बाद राज्य की पहली यात्रा होगी।
बहरहाल, SOO समझौते की बहाली को मणिपुर में शांति की ओर पहला कदम कहा जा सकता है। यह सरकार और उग्रवादी समूहों के बीच संवाद की डोर को फिर से जोड़ता है। लेकिन यह तभी सार्थक होगा जब इसे केवल अस्थायी राहत नहीं, बल्कि दीर्घकालिक राजनीतिक समाधान की दिशा में संधि-सेतु के रूप में उपयोग किया जाए। मणिपुर की वास्तविक शांति तभी संभव होगी जब हिंसा और अविश्वास की जगह न्याय और साझा भविष्य की भावना ले सके।