By विश्वनाथ त्रिपाठी | Mar 24, 2017
हिंदी सहज और सरल होनी चाहिए, लेकिन सहजता का मतलब आसान नहीं उसे स्वाभाविक होना चाहिए। हिंदी को सहज-सरल बनाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि भाषा व्याकरण सम्मत होनी चाहिए। इसमें बोलचाल का सहज लहजा होना चाहिए। जैसे हम अगर 'राज महल' को 'राज महल' लिखेंगे तो इसे सहज ही माना जाएगा और 'राज अट्टालिका' लिखेंगे तो असहज हो जाएगा। इसके लिए हमें उर्दू को आदर्श मानना चाहिए। उर्दू में वाक्यों के गठन का बहुत ध्यान रखा जाता है। हिंदी में वाक्य गठन का ध्यान कम रखा जाता है। मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी ने अपनी एक रचना में सीख देते हुए कहा है कि 'पूरी शुद्ध क्रियाएं लिखिए, शब्दों का क्रम रखिए ठीक।'
हिंदी वालों को लिखते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि लेखन में तद्भव, देशी शब्दों का प्रयोग ज्यादा करें और तत्सम शब्दों का प्रयोग कम करें। साथ ही हिंदी लेखन में बोलियों के शब्दों का प्रयोग भी करें। जैसे भोजपुरी, बुंदेलखंडी, अवधी आदि का प्रयोग भी करना चाहिए। उसमें अंग्रेजी वाक्यों के गठन का प्रयोग कम से कम हो। मुख्य रूप से जिस भाषा से अनुवाद कर रहे हैं, उस भाषा का सटीक ज्ञान भी होना चाहिए।
अनुवाद हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी की प्रवृत्ति के अनुसार होना चाहिए। भाषा अभिव्यक्ति के लिए होती है। वह अभिव्यक्ति का साधन होती है, इतराने या चमत्कृत करने का साधन नहीं है। लेखन में मुंशी प्रेमचंद, शिवपूजन सहाय, हजारीप्रसाद द्विवेदी और डॉ. रामविलास शर्मा के साहित्य को आदर्श मानना चाहिए। जब हम लिखते हैं तो भाषा प्रसंग के अनुकूल होती है। लेखन में सिर्फ सुझाव दिए जा सकते हैं, नियमों से नहीं बांधा जा सकता क्योंकि लेखन तो सजीव होता है, लेखक को ही नियम का फैसला करना पड़ता है।
- विश्वनाथ त्रिपाठी