By अभिनय आकाश | Aug 10, 2025
ऑपरेशन सिंदूर किसी भी पारंपरिक अभियान से अलग था, क्योंकि सेना दुश्मन की अगली चाल को लेकर अनिश्चित थी, जिससे यह शतरंज के खेल जैसा लग रहा था। थल सेनाध्यक्ष (सीओएएस) जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि फिर भी भारत ने निर्णायक शह-मात देकर पाकिस्तान पर जीत हासिल की। उन्होंने इस्लामाबाद की इस चाल की कड़ी आलोचना की कि वह अपने कथानक प्रबंधन के ज़रिए खुद को इस संघर्ष में विजेता के रूप में पेश कर रहा है। सेना प्रमुख ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में हमने शतरंज खेला। हमें नहीं पता था कि दुश्मन की अगली चाल क्या होगी और हम क्या करने वाले हैं। इसे ग्रेज़ोन कहते हैं। ग्रेज़ोन का मतलब है कि हम पारंपरिक ऑपरेशन नहीं कर रहे हैं। हम जो कर रहे हैं वह किसी पारंपरिक ऑपरेशन से थोड़ा कम है। हम शतरंज की चालें चल रहे थे, और वह (दुश्मन) भी शतरंज की चालें चल रहा था।
आईआईटी मद्रास में एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि कहीं हम उन्हें शह और मात दे रहे थे और कहीं हम अपनी जान गंवाने के जोखिम पर भी हार मान रहे थे, लेकिन ज़िंदगी इसी के लिए है। उन्होंने पाकिस्तान के रणनीतिक नैरेटिव मैनेजमेंट की आलोचना की, जिसमें वह खुद को संघर्ष में विजेता बता रहा है। उन्होंने सरकार द्वारा सेना प्रमुख असीम मुनीर को पाँच सितारा जनरल और फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत करने के फैसले का भी ज़िक्र किया। सेना प्रमुख ने कहा कि नैरेटिव मैनेजमेंट सिस्टम एक ऐसी चीज़ है जिसका हमें बड़े पैमाने पर एहसास होता है क्योंकि जीत हमारे दिमाग में होती है। यह हमेशा हमारे दिमाग में रहती है। अगर आप किसी पाकिस्तानी से पूछें कि आप हारे या जीते, तो वह कहेगा, सेना प्रमुख फील्ड मार्शल बन गए हैं। हम ही जीते होंगे, इसीलिए वह फील्ड मार्शल बने हैं।
सेना प्रमुख ने कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में 7 मई को शुरू किया गया आतंकवाद-रोधी अभियान, जिसमें पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में 26 नागरिकों की हत्या कर दी थी, सरकारी स्तर पर राजनीतिक संकल्प और रणनीतिक स्पष्टता से प्रेरित था। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री के साथ उच्च-स्तरीय बैठकों के दौरान सेना को 'खुली छूट' देने के फैसले की सराहना की। द्विवेदी ने कार्यक्रम में कहा कि हम सब बैठे। यह पहली बार था जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि बस, बहुत हो गया। तीनों सेना प्रमुख इस बात पर बहुत स्पष्ट थे कि कुछ तो करना ही होगा। खुली छूट दी गई, 'आप तय करें कि क्या करना है।' इस तरह का आत्मविश्वास, राजनीतिक दिशा और राजनीतिक स्पष्टता हमने पहली बार देखी।