क्या दिल्ली चुनाव में AAP की करारी हार के लिए Arvind Kejriwal जिम्मेदार हैं? पूर्व सहयोगियों ने पार्टी सुप्रीमो पर निशाना साधा

By एकता | Feb 09, 2025

2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आम आदमी पार्टी बीजेपी से हार गई है। अब आप की करारी हार के कारणों का विश्लेषण किया जा रहा है। इन सबके बीच केजरीवाल के पूर्व सहयोगियों ने 'आम आदमी पार्टी' की हार के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया है। उनके पूर्व सहयोगियों का कहना है कि दिल्ली के पूर्व सीएम की 'बहानेबाजी, दुष्प्रचार' की राजनीति इसकी वजह है।


प्रशांत भूषण ने केजरीवाल पर साधा निशाना

प्रशांत भूषण, जिन्हें पार्टी की दिशा और नेतृत्व शैली पर आंतरिक संघर्ष और मतभेदों के कारण आप से निष्कासित कर दिया गया था, ने कहा, 'वैकल्पिक राजनीति के लिए गठित एक पार्टी, जिसे पारदर्शी, जवाबदेह और लोकतांत्रिक माना जाता था, उसे अरविंद ने जल्दी ही एक सुप्रीमो के वर्चस्व वाली, अपारदर्शी और भ्रष्ट पार्टी में बदल दिया, जिसने लोकपाल की मांग नहीं की और अपने स्वयं के लोकपाल को हटा दिया।'


प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्होंने अपने लिए 45 करोड़ का 'शीश महल' बनवाया और लग्जरी कारों में घूमना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने आप द्वारा गठित विशेषज्ञ समितियों की 33 विस्तृत नीति रिपोर्टों को यह कहते हुए रद्दी में डाल दिया कि पार्टी समय आने पर उचित नीतियां अपनाएगी। प्रशांत भूषण ने कहा कि अरविंद केजरीवाल को लगता था कि राजनीति बखान और दुष्प्रचार से की जा सकती है। उन्होंने कहा कि यह आप के अंत की शुरुआत है।


 

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योगेंद्र यादव ने क्या कहा?

स्वराज इंडिया पार्टी के सह-संस्थापक और चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव भी कभी आप का हिस्सा थे। लेकिन 2015 में प्रशांत भूषण के साथ उन्हें भी पार्टी से निकाल दिया गया था। उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप की हार को वैकल्पिक राजनीति का सपना देखने वालों के लिए झटका बताया।


स्वराज इंडिया पार्टी के सह-संस्थापक योगेंद्र यादव ने कहा कि आप की हार न केवल आप के लिए बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक बड़ा झटका है जिन्होंने 10-12 साल पहले इस देश में वैकल्पिक राजनीति का सपना देखा था। समाचार एजेंसी पीटीआई ने यादव के हवाले से कहा, 'यह आप का समर्थन करने वाली सभी पार्टियों और देश के पूरे विपक्ष के लिए एक झटका है।' उन्होंने दावा किया कि पार्टी ने सत्ता में आने के तुरंत बाद वैकल्पिक राजनीति को 'छोड़ दिया' और कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित हो गई जो संतृप्ति बिंदु तक पहुंच गई।

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