अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीति के पीछे था उनका पत्रकारिता वाला दिमाग

By रेनू तिवारी | Aug 16, 2018

 'मौत से ठन गई'... 

ठन गई! 

मौत से ठन गई! 


जूझने का मेरा इरादा न था, 

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, 


रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, 

यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई। 

 

ये कविता अटल बिहारी वाजपेयी की कविता हैं कहते है अगर वो सियासत में नहीं आते तो या तो वो कवि होते या पत्रकार। अटल बिहारी वाजपेयी का 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में  जन्म हुआ। अटल के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और मां कृष्णा देवी थे। वाजपेयी का संसदीय अनुभव पांच दशकों से भी अधिक का विस्तार लिए हुए है। एक स्कूल टीचर के घर में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए जीवन का शुरुआती सफर आसान नहीं था। ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया ( अब लक्ष्मीबाई ) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी।

 

अटल बिहारी वाजपेयी  नें राजनीतिक विज्ञान में अपनी ग्रेजुएशन की और इसके बाद पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया। शुरुआत में वह छात्र संगठन से जुड़े। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता नारायण राव तरटे ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में कार्य किया। कॉलेज जीवन में उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। वह 1943 में कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष भी बने।

 

अटल बिहारी वाजपेयी  राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसे अखबारों-पत्रिकाओं का संपादन किया। वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे और इस संगठन की विचारधारा (राष्ट्रवाद या दक्षिणपंथ) के असर से ही उनमें देश के प्रति कुछ करने, सामाजिक कार्य करने की भावना मजबूत हुई। इसके लिए उन्हें पत्रकारिता एक बेहतर रास्ता समझ में आया और वे पत्रकार बन गए।


एक घटना से पत्रकारिता छोड़ राजनीति में रखा कदम

देश के महानतम प्रधानमंत्रियों में से एक और महान राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी एक अच्छे पत्रकार भी थे। असल में, अपने करियर के शुरुआती दौर में वे और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी दोनों पत्रकार थे। अटल बिहारी राजनीति में कैसे आए इसके पीछे एक प्रेरणादायक कहानी है। कहा जाता है कि अटल जी की जिंदगी में एक घटना ऐसी हुई जिसने पत्रकार वाजपेयी की जिंदगी को संसदीय राजनीति की ओर मोड़ दिया। वाजपेयी ने एक इंटरव्यू में खुद बताया था कि वह दिल्ली में साल 1953 में बतौर पत्रकार काम कर रहे थे और उस समय भारतीय जनसंघ के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा किए जाने के खिलाफ थे। वाजपेयी ने जानकारी देते हुए कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर में लागू परमिट सिस्टम का विरोध करने के लिए वहां चले गए और उस समय इसे कवर करने वाजपेयी उनके साथ गए थे। इसी बीच कश्मीर में नजरबंदी की हालत में सरकारी अस्पताल में डॉ. मुखर्जी की मौत हो गई। जिससे अटल बहुत दुखी हुए और डॉ. मुखर्जी के काम को आगे बढ़ाने के लिए पत्रकारिता छोड़ राजनीति में आ गए।

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