अटल बिहारी वाजपेयी: मृत्यु भले अटल हो, पर अटल मरा नहीं करते

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Aug 19, 2018

नयी दिल्ली। देश की राजधानी ने पिछले दो तीन दिन में कुछ ऐसा देखा, जैसा पिछले कई दशक में नहीं देखा गया था। पिछली पीढ़ी के लोग तो इस पूरे घटनाक्रम को समझ पा रहे थे, लेकिन बच्चों और नौजवानों ने पहले ऐसा कभी नहीं देखा था कि किसी एक शख्स की मौत पर पूरा देश एक साथ रोया, किसी शख्स की शवयात्रा में पूरा शहर एक साथ चल दिया। मृत्यु की आंखों में आंखें डालकर उसे न्यौता देने वाले और अपनी मृत्यु के बारे में बड़े बेखौफ अंदाज में कलम चलाने वाले कवि हृदय अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व का करिश्मा ही था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस वाहन के साथ साथ चलते रहे, जिसपर उनके पार्थिव शरीर को अंतिम सफर पर ले जाया जा रहा था।

 

वाजपेयी का जाना जैसे घर से एक बुजुर्ग के जाने जैसा था। एक बड़े दरख्त का गिर जाना जो दशकों से पूरे परिवार को फल और छाया देता रहा था। वह नेता भले भाजपा के रहे हों, लेकिन उनके जाने पर उनके विरोधियों की आंखें भी नम थीं। उन्होंने 93 वर्ष के अपने जीवन में अपने लिए जो इज्जत और आदर कमाया उसने उन्हें देश की सबसे सम्मानित और पूजनीय विभूतियों की कतार में पहुंचा दिया।

 

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने करीब 13 बरस पहले सक्रिय राजनीति से भले ही सन्यास ले लिया था, लेकिन भारतीय राजनीति पर उनकी छाप हर कदम पर नजर आती रही। आने वाले समय में भी जब कभी भारत के परमाणु संपन्न होने, पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य बनाने और देश के नेताओं को राजधर्म निभाने की नसीहत देने की बातें याद की जाएंगी तो वाजपेयी बेखाख्ता याद आएंगे।

 

वाजपेयी की उपलब्धियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है और उसके बारे में पिछले कुछ दिन से बहुत कुछ कहा सुना गया है। अपने जीवन का क्षण क्षण और शरीर का कण कण देश को समर्पित करने के कठिन संकल्प को सहज भाव से निभाने का ऐसा हौसला बहुत कम लोगों में होता है। देशहित को सदैव पार्टी विचाराधारा से ऊपर रखकर विरोधियों को भी अपना बना लेने वाले वाजपेयी को अक्सर भाजपा के उदार चेहरे के तौर पर देखा जाता रहा। और यही वजह है कि उन्हें उनके कट्टर सहयोगियों के मुकाबले अधिक सम्मान और स्नेह मिला, लेकिन उन्होंने मुश्किल घड़ी में फौलादी हौसले के साथ कुछ सख्त फैसले भी लिए और देश का गौरव बढ़ाया।

 

वाजपेयी ने अपनी बात हमेशा पूरे संयम और मर्यादा के साथ रखी। कोई अन्तरराष्ट्रीय मंच हो, संसद का सदन या फिर कोई जनसभा... लोग उन्हें घंटों सुनना चाहते थे। सौम्य चेहरा, शब्दों को गढ़ते हुए रूक रूक कर बोलने की अदा और ओजपूर्ण वाणी के साथ बड़ी से बड़ी बात को सहजता से कह जाने के अंदाज ने उन्हें हमेशा लोकप्रियता के शिखर पर बनाए रखा।

 

उनकी भाषा शैली ने विश्व के हर मंच पर अपनी एक अलग छाप छोड़ी। तमाम विरोध के बावजूद 1977 में वह संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच पर पहली बार हिंदी में बोले। सिर्फ ‘‘ये अच्छी बात नहीं है’’ कह कर अपने विरोधियों को चुप करा देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति को एक नया स्वरूप दिया, जिसमें सबके लिए जगह थी। हम सब जानते हैं कि मृत्यु अटल है। आज या कल सब को जाना है। कोई यहां सदा रहने नहीं आया, लेकिन यह बात भी अपने आप में उतनी ही सच है कि ‘‘मृत्यु भले अटल हो, पर अटल जैसे लोग कभी मरा नहीं करते।’’

 

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