By अनन्या मिश्रा | Nov 24, 2025
आज ही के दिन यानी की 24 नवंबर को मुगल बादशाह औरंगजेब ने सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर की बेरहमी से हत्या करवाई थी। गुरु तेग बहादुर अपने धर्म के प्रति निष्ठा रखते थे और उन्होंने कश्मीरी पंडितों का जबरन धर्म परिवर्तन कराने का खुलकर विरोध किया था।
आज ही के दिन यानी की 24 नवंबर को सिखों के 9वें श्री गुरु तेग बहादुर सिंह का निधन हो गया था। गुरु तेग बहादुर को 'हिंद की चादर' भी कहा जाता है। उन्होंने अपने धर्म, संस्कृति, आदर्शों एवं मूल्यों की रक्षा के लिए अपनी बलि दे दी थी। गुरु तेग बहादुर अपने धर्म के प्रति निष्ठा रखते थे और उन्होंने कश्मीरी पंडितों का जबरन धर्म परिवर्तन कराने का खुलकर विरोध किया था। न सिर्फ सिख बल्कि हिंदु धर्म भी गुरु तेग बहादुर की शहादत को नमन करता है। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु तेग बहादुर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
पंजाब के अमृतसर में 21 अप्रैल 1621 को गुरु तेग बहादुर का जन्म हुआ था। इनके पिता सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद थे। गुरु तेग बहादुर के बचपन का नाम त्यागमल था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने भाइयों से ली थी।
बताया जा रहा है कि एक बार त्यागमल अपने पिता गुरु हरगोबिंद साहिब के साथ करतारपुर की लड़ाई के बाद किरतपुर जा रहे थे। इस दौरान त्यागमल की आयु 13 साल की थी। फगवाड़ा के पास पलाही गांव में मुगलों की फौज की एक टुकड़ी ने उनका पीछा किया और अचानक से उन पर हमला कर दिया। इस युद्ध में पिता गुरु हरगोबिंद साहिब के साथ त्यागमल ने भी मुगलों का मुकाबला किया। इस छोटी उम्र में तेग बहादुर का साहस और जज्बा देखकर उनको त्यागमल से तेग बहादुर कहा जाने लगा।
मार्च 1632 में जालंधर के नजदीक करतारपुर में गुरु तेग बहादुर की शादी बीबी गुजरी से हुई। जिसके बाद वह अमृतसर के पास बकाला में रहने लगे। सिखों के 8वें गुरु, गुरु हरकृष्ण साहिब के निधन के बाद मार्च 1665 में गुरु तेग बहादुर गुरु की गद्दी पर बैठे और सिखों के 9वें गुरु बने। गुरु तेग बहादर जी ने कई वर्ष बाबा बकाला नगर में घोर तपस्या की।
धर्म के प्रचार-प्रसार व लोक कल्याणकारी कार्य के लिए गुरु तेग बहादुर ने कई स्थानों का भ्रमण किया। उन्होंने आनंदपुर से कीरतपुर, सैफाबाद और रोपड के लोगों को संयम और सहज मार्ग का पाठ पढ़ाया। इसके बाद वह खिआला पहुंचे, यहां से वह सत्य मार्ग पर चलने का उपदेश देते हुए दमदमा साहिब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे। कुरुक्षेत्र से वह कड़ामानकपुर पहुंचे और यहां साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया। इसके बाद गुरु तेग बहादुर प्रयागराज, बनारस, पटना और असम गए। इस दौरान गुरु तेग बहादुर ने सामाजिक, आध्यात्मिक, आर्थिक और उन्नयन के लिए कई रचनात्मक कार्य किए।
गुरु तेग बहादुर के समकालीन मुगल बादशाह औरंगजेब था। भारत में औरंगजेब की छवि कट्टर बादशाह के तौर पर थी। बताया जाता है कि औरंगजेब के शासनकाल में हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा था। जिसके सबसे ज्यादा शिकार कश्मीरी पंडित हो रहे थे। ऐसे में कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल श्री आनंदपुर साहिब में गुरु तेग बहादुर साहिब का शरण में मदद के लिए पहुंचा।
गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों को उनके धर्म की रक्षा का वादा किया। उन्होंने हिन्दुओं को बलपूर्वक मुस्लिम बनाने का खुले स्वर में विरोध किया। वहीं कश्मीरी पंडियों की हिफाजत का जिम्मा अपने कंधों पर लिया। उनके इस कदम से औरंगजेब गुस्सा हुआ। औरंगजेब ने इसको खुली चुनौती माना। वहीं 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने पांच सिखों के साथ आनंदपुर से दिल्ली के लिए चल पड़े। जहां पर उनको रास्ते से ही मुगल बादशाह औरंगजेब के सिपाहियों ने पकड़ लिया। गुरु तेग बहादुर को 3-4 महीने कैद में रखकर अत्याचार की सीमाएं लांघ दी।
कैद में रखकर गुरु तेग बहादुर को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाने लगा। बताया जाता है कि गुरु तेग बहादुर को मारने से पहले औरंगजेब ने उनके सामने तीन शर्तें रखीं। यह शर्तें कलमा पढ़कर मुसलमान बनने, चमत्कार दिखाने या फिर मौत स्वीकार करना थी। गुरु तेग बहादुर ने धर्म छोड़ने और चमत्कार दिखाने से इंकार कर दिया। जिसके बाद 24 नवंबर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक में जल्लाद जलालदीन ने गुरु साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया।