Baba Amte Death Anniversary: आधुनिक गांधी के नाम से जाने जाते थे बाबा आमटे, कुष्ठ रोगियों की करते थे सेवा

By अनन्या मिश्रा | Feb 09, 2025

आज ही के दिन यानी की 09 फरवरी को बाबा आमटे का निधन हो गया था। भारत में समाजसेवियों के नामों की लिस्ट में बाबा आमटे का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। लोग बाबा आमटे को कुष्ठ रोगियों के समाज सेवक के तौर पर जानते थे। बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों के पुनर्स्थापन और सशक्तिकरण के लिए काम किया। उस दौरान कुष्ठ रोगियों को न सिर्फ सामाजिक तौर पर अस्वीकृत किया, बल्कि तिरस्कृत भी हुआ करते थे। इसके अलावा बाबा आमटे ने वन्य जीवन संरक्षण और नर्मदा बचाओं आंदोलन सहित बहुत से सामाजिक उत्थान के लिए योगदान दिया। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर बाबा आमटे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

बता दें कि 26 दिसंबर 1914 में मुरलीधर देवीदास आमटे का जन्म हुआ था। बाद में वह बाबा आमटे के नाम से फेमस हुए थे। इनके पिता देवी दास ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी थे और वर्धा जिले के धनी जमींदारों में उनकी गिनती होती थी। समृद्ध परिवार में जन्मे बाबा आमटे के पास सुख-साधन भरपूर थे। ऐसे में बाबा आमटे के शौक भी उसी के मुताबिक थे। उनको बढ़िया खाने-पहनने का शौक था और उनके पास एक बंदूक भी थी। वह शौक-शौक में शिकार के लिए जंगल रवाना हो जाते थे।


माता-पिता अपने बड़ी संतान को प्यार से बाबा कहकर पुकारते थे। बड़े बेटे को किसी चीज की कमी न हो इसके लिए उनके माता-पिता खास फिक्रमंद रहते थे। उनके माता-पिता ने आमटे को एक स्पोर्ट्स कार भी दिलवाई थी और बाबा ने वकालत की पढ़ाई की और उसी पेशे को अपनी आजीविका बनाई। वहीं वर्धा में उनकी अच्छी वकालत भी चल निकली। जीवनदर्शन और सेवाभाव उन्हें आधुनिक गांधी के नाम से भी जाना जाता है।


कैसे मिला बाबा नाम

बहुत कम लोग जानते हैं कि बाबा नाम आमटे को बचपन में ही मिल गया था। बता दे कि यह नाम उनके किसी संत-फकीर या फिर किसी आध्यात्मिक ज्ञान के कारण नहीं, बल्कि उनके माता-पिता द्वारा मिला था। दरअसल, उनके माता-पिता प्यार से उनको बाबा कहते थे। लेकिन सामाजिक असामानता उनको बहुत असहज कर दिया करती थी। बाबा आमटे को उनके 


सफल वकील थे बाबा आमटे

युवा अवस्था में बाबा आमटे को तेज कार चलाने और हॉलीवुड की फिल्में देखने का शौक था। इसके साथ ही वह अंग्रेजी फिल्मों की समीक्षा भी लिखा करते थे। उन्होंने एमए एलएलबी तक पढ़ाई की और फिर कुछ दिनों तक वकालत भी की। उन्होंने वर्धा में सफलतापूर्वक कानून की प्रैक्टिस की और उसमें वह सफल भी रहे।


स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ाव

बाबा आमटे अधिक समय तक वकालत में नहीं रह सके। वह जल्द ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिए गए। जिसके बाद वह भारतीय नेताओं के डिफेंस लॉयर के रूप में काम करने लगे। इसी कारण बाबा आमटे को गांधी जी द्वारा चलाए जा रहे सेवाग्राम में समय बिताने का मौका मिला।


अभय साधक गांधीवादी

सेवाग्राम में ही बाबा आमटे का गांधी जी से संपर्क हुआ और इसके बाद वह गांधीवाद हो गए। उन्होंने चरखा चलाकर सूत कातने के साथ ही खादी को भी पूरी तरह से अपना लिया था। लेकिन जब गांधीजी को यह पता लगा कि बाबा आमटे ने कुछ ब्रिटिश सैनिकों द्वारा एक लड़की का भद्दा मजाक उड़ाने से बचाया। तो महात्मा गांधी ने बाबा आमटे को अभय साधक नाम दिया।


कुष्ठ रोगियों की सेवा

कुष्ठ रोगी तुलसीराम को जिंदा लाश के तौर पर देखकर बाबा आमटे बहुत ज्यादा असहज हो गए। बाबा आमटे ने खुद उस दृश्य का जिक्र करते हुए लिखा कि कुष्ठ रोगी को जिंदा लाश की तरह देखकर वह डर के मारे कांपने लगे और इस दृश्य ने उनको इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों की सेवा और उत्थान के लिए लगा दिया।


मृत्यु

महाराष्ट्र के आनंदवन में उम्र से संबंधित बीमारियों के कारण 09 फरवरी 2008 को बाबा आमटे का निधन हो गया।

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