कर्तव्यनिष्ठा से जीवन जीने की शिक्षा देता है बकरीद का त्योहार

By प्रज्ञा पाण्डेय | Aug 12, 2019

बकरीद त्याग, पवित्रता, कुर्बानी और कर्तव्यनिष्ठा का त्यौहार है। यह ईश्वर में आस्था का प्रतीक है तथा ईद-उल-जुहा कर्तव्य का ईमानदारी पूर्वक पालन करने की शिक्षा देता है। तो आइए हम आपको त्याग के इस त्यौहार के बारे में बताते हैं। 

 

बकरीद के महत्वपूर्ण संदेश 

बकरीद केवल त्यौहार नहीं है बल्कि समाज में कर्तव्यनिष्ठा से जीवन जीने की शिक्षा भी देता है। 

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1. महिलाओं की भूमिका है महत्वपूर्ण 

समाज के कल्याण में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। मुसलमानों के पैगम्बर इब्राहिम की बीवी हाजरा ने अपना घर छोड़ कर रेगिस्तान में रहना कबूल किया। रेगिस्तान में रहकर कर उन्होंने समाज के कल्याण के लिए काम किया। उनका यह कार्य सराहनीय है। 

 

2. परिवार में बड़ों की है जिम्मेदारी

इब्राहिम ने समाज के कल्याण हेतु अपने बेटे की भी बलि दे दी। इससे प्रसन्न होकर अल्लाह ने इब्राहिम को अपना पैगम्बर बनाया। यह इस बात का प्रतीक है कि समाज के कल्याण हेतु परिवार के बड़े लोगों को हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

 

3. बच्चों को भी बनाए जिम्मेदार 

अल्लाह के हुक्म से जिस तरह इब्राहिम अपने बेटे और पत्नी को रेगिस्तान में छोड़ आए उसी तरह समाज के कल्याण हेतु लोगों को अपने बच्चों के अंदर जागरूकता पैदा करना चाहिए।

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4. त्याग

बकरीद के दिन मुसलमान पहले मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं और उसके बाद कुर्बानी देते हैं। यह कुर्बानी त्याग का प्रतीक है।

 

ईद-उल-अजहा को बकरीद क्यों कहा जाता है

ईद-उल-अजहा को बकरीद कहने के पीछे कारण है कि अरबी में 'बक़र' का अर्थ है बड़ा जानवर जो काटा जाता है। उसी से भारत, पाकिस्तान व बांग्ला देश में इसे 'बकरा ईद' कहा जाता है। ईद-ए-कुर्बां का मतलब है बलिदान की भावना। अरबी में 'क़र्ब' पास रहने को कहते हैं, जिसका अर्थ है भगवान इंसान के बहुत करीब हो जाता है। कुर्बानी उस पशु के जि़बह करने को कहते हैं जिसे 10, 11, 12 या 13 जि़लहिज्ज (हज का महीना) को खुदा को खुश करने के लिए ज़िबिह किया जाता है।


कुर्बानी का कर्तव्य: कुर्बानी का अर्थ है कि रक्षा के लिए हमेशा सजग रहना। हजरत मोहम्मद साहब का आदेश है कि कोई व्यक्ति जिस भी परिवार, समाज, शहर या मुल्क में रहने वाला है, उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह उस देश, समाज, परिवार की रक्षा हेतु त्याग करे।

 

बकरीद की कहानी 

इस कहानी के मुताबिक अलाह ने इब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपनी पत्नी और बच्चे को कनान लेकर आये और रेगिस्तान में छोड़ दे। इब्राहिम जाते हुए अपनी पत्नी और बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी और खाना छोड़ दिया था लेकिन धीरे-धीरे सब खत्म हो गया। इब्राहिम की पत्नी अपने बेटे के लिए पानी की खोज करते हुए बेहोश हो गयी। उसी समय गब्रिअल नाम के फ़रिश्ते ने झरना पैदा किया जिससे इब्राहिम के बेटे की जान बची और दूसरे राहगीरों के लिए भी सुविधाजनक रहा। इस पवित्र जल को अल जम जम कहा जाता है। कुछ दिनों बाद अल्लाह ने इब्राहिम को आदेश दिया की मक्का में वो अल्लाह की शान में एक इमारत बनाये। चुने और गारे से मक्का में इमारत का निर्माण किया गया जहाँ मुसलमान समुदाय के लोग अल्लाह की शान में नमाज़ अदा करने आते थे। इब्राहिम ने जो इमारत बनवायी उसका नाम काबा पड़ा। कुछ दिनों बाद अल जम जम जल स्त्रोत के कारण मक्का व्यापार का एक बड़ा केंद्र बन गया।

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लेकिन इब्राहिम अल्लाह के इस आदेश से परेशान था कि उसे अपने सबसे प्यारी चीज कुर्बान करनी थी। दुनिया में उसके लिए सबसे प्यारा उसका बेटा था। इब्राहिम बेटे की कुर्बानी के लिए तो तैयार था पर अपने बेटे को ले जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। ऐसे में इब्राहिम ने अपने पुत्र को कुर्बानी की बात बताई। इस पर इब्राहिम के बेटे ने ना नहीं कहा उसे बेफ्रिक होकर कुर्बानी देने को कहा। 

 

इस दौरान शैतान ने इब्राहिम और उसके परिवार को अल्लाह की बात मानने से रोकना चाहा। इब्राहिम ने पत्थर मार कर शैतान को भगाया। हज के दौरान आज भी शैतान को पत्थर  मार कर इस रस्म को दोहराया जाता है। जब भरे बाज़ार इब्राहिम अपने प्यारे पुत्र की कुर्बानी देने गया और जैसे ही उसने अपने बेटे का सर काटा तो देखा कि उसका बेटा सही सलामत है और जहाँ क़ुरबानी दी गयी उस जगह एक भेड़ का सर कटा है। इब्राहिम अपनी इस परीक्षा में सफल हुए। इसकी याद में अब बकरीद का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।

 

- प्रज्ञा पाण्डेय

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