अखिल विद्यार्थी परिषद के आधार स्तंभ थे बाल आपटे

By डॉ. राकेश मिश्रा | Jan 18, 2022

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन में रीढ़ की भूमिका निभाने वाले बलवंत परशुराम (बाल) आपटे का जन्म 18 जनवरी, 1939 को पुणे के पास क्रांतिवीर राजगुरु के जन्म से धन्य होने वाले राजगुरुनगर में हुआ था।


उनके पिता श्री परशुराम आपटे एक स्वाधीनता सेनानी तथा समाजसेवी थे। वहां पर ग्राम पंचायत, सहकारी बैंक आदि उनके प्रयास से ही प्रारम्भ हुए। यह गुण उनके पुत्र बलवंत में भी आये। बालपन से ही संघ के स्वयंसेवक रहे बलवंत आपटे प्रारम्भिक शिक्षा गांव में पूरी कर उच्च शिक्षा के लिए मुंबई आये और एल.एल.एम कर मुंबई के विधि महाविद्यालय में ही प्राध्यापक हो गये।

इसे भी पढ़ें: संगीत एवं नृत्य परंपरा का सितारा थे बिरजू महाराज

1960 के दशक में विद्यार्थी परिषद से जुड़ने के बाद लगभग 40 वर्ष तक उन्होंने यशवंतराव केलकर के साथ परिषद को दृढ़ संगठनात्मक और वैचारिक आधार दिया। विद्यार्थी परिषद ने न केवल अपने, अपितु संघ परिवार की कई बड़ी संस्थाओं तथा संगठनों के लिए भी कार्यकर्ता तैयार किये हैं। इसमें आपटे जी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।


1974 में विद्यार्थी परिषद के रजत जयंती वर्ष में वे राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये। इस समय महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध देश में युवा शक्ति सड़कों पर उतर रही थी। इस आंदोलन को विद्यार्थी परिषद ने राष्ट्रव्यापी बनाया। जयप्रकाश नारायण द्वारा इस आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार करने से यह आंदोलन और अधिक शक्तिशाली हो गया।


इससे बौखलाकर इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया। आपटे जी भूमिगत होकर आंदोलन का संचालन करने लगे। दिसम्बर 1975 में वे पकड़े गये और मीसा नामक काले कानून के अन्तर्गत जेल में ठूंस दिये गये, जहां से फिर 1977 में चुनाव की घोषणा के बाद ही वे बाहर आये। जेल जीवन के कारण उनकी नौकरी छूट गयी। अतः वे वकालत करने लगे। अगले 20 साल तक वे गृहस्थ जीवन, वकालत और विद्यार्थी परिषद के काम में संतुलन बनाकर चलते रहे। उन्होंने संगठन के बारे में केवल भाषण नहीं दिये। वे इसके जीवंत स्वरूप थे।

इसे भी पढ़ें: भावुकता के साथ रस और आनंद भी दिखाई देता है हरिवंशराय जी कविताओं में

उनकी एकमात्र पुत्री चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई पूरी कर दो वर्ष विद्यार्थी परिषद की पूर्णकालिक रही। फिर उसका अन्तरजातीय विवाह परिषद के एक कार्यकर्ता से ही हुआ। इस प्रकार विचार, व्यवहार और परिवार, तीनों स्तर पर वे संगठन से एक रूप हुए।


1996 से 98 तक वे महाराष्ट्र शासन के अतिरिक्त महाधिवक्ता रहे। जब उन्हें भाजपा में जिम्मेदारी देकर राज्यसभा में भेजने की चर्चा चली, तो उन्होंने पहले संघ के वरिष्ठजनों से बात करने को कहा। इसके बाद वे आठ वर्ष तक भाजपा के उपाध्यक्ष, संसदीय बोर्ड के सदस्य तथा 12 वर्ष तक महाराष्ट्र से राज्यसभा के सदस्य रहे।


सांसदों को अपने क्षेत्र में काम के लिए बड़ी राशि मिलती है। उसकी दलाली का धंधा अनेक सांसद करते रहे। प्रारम्भ में कई लोग आपटे जी के पास भी इस हेतु से आये; पर निराश होकर लौट गये। लोग अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद वर्षों तक दिल्ली में मिले भवनों में अवैध रूप से डटे रहते हैं; पर आपटे जी ने कार्यकाल पूरा होने के दूसरे दिन ही मकान छोड़ दिया।


नियमित आसन, प्राणायाम, व्यायाम और ध्यान के बल पर आपटे जी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता था; पर जीवन में अंतिम एक-दो वर्ष में वे अचानक कई रोगों से एक साथ घिर गये, जिसमें श्वांस रोग प्रमुख था। समुचित इलाज के बाद भी 17 जुलाई, 2012 को उनका मुंबई में ही देहांत हुआ।


- डॉ. राकेश मिश्रा

प्रमुख खबरें

Yes Milord: राहुल गांधी और लालू यादव को चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकते, चुनाव प्रचार के लिए बेल पर बाहर आएंगे केजरीवाल? इस हफ्ते कोर्ट में क्या-क्या हुआ

T20 World Cup 2024 से पहले भारत को लग सकता है बड़ा झटका, रोहित शर्मा हैं चोटिल

Jammu-Kashmir के बांदीपोरा में एक आतंकी ठिकाने का भंडाफोड़

सरकार ने प्याज निर्यात पर प्रतिबंध हटाया, न्यूनतम निर्यात मूल्य 550 डॉलर प्रति टन