बहुत पहले पाकिस्तान के क्राँतिकारी और व्यवस्था विरोधी कवि हबीब जालिब ने लिखा था...
मुझे जंगे - आज़ादी का मज़ा मालूम है,
बलोचों पर ज़ुल्म की इंतेहा मालूम है,
मुझे ज़िंदगी भर पाकिस्तान में जीने की दुआ मत दो,
मुझे पाकिस्तान में इन साठ साल जीने की सज़ा मालूम है।
1947 के बाद से आज तक पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान को सबसे तवानग्रस्त इलाका माना जाता है। मुट्ठीभर भारतीय कश्मीरी मुसलमान पाकिस्तान के बहकावे में आकर अलगाववाद की बातें करते हैं और कश्मीर को स्वतंत्र करने की आवाज उठाते हैं। बलूचिस्तान के बलूची और पख्तून भी अक्सर पाकिस्तान से अलग होने की मांग उठाते रहे हैं और भारत द्वारा बलूचिस्तान का समर्थन भी किया जाता है। ऐसे में हिन्दुस्तान द्वारा बलूच का पक्ष लेना पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में अशांति फैलाने जैसा कदम है क्या? इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें इतिहास की गलियों से गुजरते हुए वर्तमान के दौर में कदम रखना होगा। तो आज हमने इतिहास के सहारे वर्तमान के प्रश्नों को समझने और तथ्यों के आधार पर आपको समझाने के लिए बलूचिस्तान के पूरे मामले का एमआरआई स्कैन किया है। पहले 7 लाइनों में आपको बलूचिस्तान के मसले के बारे में समझाते हैं।
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बलूचिस्तान की समस्या है क्या? दशकों से हिंसा की मार झेल रहे इस प्रांत का क्या है भारत कनेक्शन इसके बारे में आपको बताते हैं।
भारत पिछले 15,000 वर्षों से अस्तित्व में है। अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान और हिन्दुस्तान सभी भारत के हिस्से थे। 'अखंड भारत' कहने का अर्थ यही है। 18 अगस्त 1919 को अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी। हालांकि इससे कहीं पहले अफगानिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बन चुका था। 26 मई 1739 को दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह अकबर ने ईरान के नादिर शाह से संधि कर अफगानिस्तान उसे सौंप दिया था। 17वीं सदी तक 'अफगानिस्तान' नाम का कोई राष्ट्र नहीं था। अफगानिस्तान नाम का विशेष-प्रचलन अहमद शाह दुर्रानी के शासनकाल (1747-1773) में ही हुआ। तभी यह एक स्वतंत्र राष्ट्र बना था। बलूच राष्ट्रवादी आंदोलन 1666 में स्थापित मीर अहमद के कलात की खानत को अपना आधार मानता है। मीर नसीर खान के 1758 में अफगान की अधीनता कबूल करने के बाद कलात की सीमाएं पूरब में डेरा गाजी खान और पश्चिम में बंदर अब्बास तक फैल गईं। ईरान के नादिर शाह की मदद से कलात के खानों ने ब्रहुई आदिवासियों को एकत्रित किया और सत्ता पर काबिज हो गए। अंग्रेजों ने बलूचिस्तान को 4 रियासतों में बांट दिया- कलात, मकरान, लस बेला और खारन। 20वीं सदी में बलूचों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया।
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इसके लिए 1941 में राष्ट्रवादी संगठन अंजुमान-ए-इत्तेहाद-ए-बलूचिस्तान का गठन हुआ। वर्ष 1944 में जनरल मनी ने बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का स्पष्ट विचार रखा। इधर, आजम जान को कलात का खान घोषित किया गया। लेकिन आजम जान खान सरदारों से जा मिला। उसकी जगह नियुक्त उसका उत्तराधिकारी मीर अहमद यार खान अंजुमन के प्रति तो वह अपना समर्थन व्यक्त करता था, लेकिन वह अंग्रेजों से रिश्ते तोड़ कर बगावत के पक्ष में नहीं था। यही कारण था कि बाद में अंजुमन को कलात स्टेट नेशनल पार्टी में बदल दिया गया। मीर खान ने स्थानीय मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय मुस्लिम लीग दोनों को भारी वित्तीय मदद दी और मुहम्मद अली जिन्ना को कलात राज्य का कानूनी सलाहकार बना लिया। जिन्ना की सलाह पर यार खान 4 अगस्त 1947 को राजी हो गया कि ‘कलात राज्य 5 अगस्त 1947 को आजाद हो जाएगा और उसकी 1938 की स्थिति बहाल हो जाएगी।’ उसी दिन पाकिस्तानी संघ से एक समझौते पर दस्तखत हुए। इसके अनुच्छेद 1 के मुताबिक ‘पाकिस्तान सरकार इस पर रजामंद है कि कलात स्वतंत्र राज्य है जिसका वजूद हिन्दुस्तान के दूसरे राज्यों से एकदम अलग है।’ लेकिन अनुच्छेद 4 में कहा गया कि ‘पाकिस्तान और कलात के बीच एक करार यह होगा कि पाकिस्तान कलात और अंग्रेजों के बीच 1839 से 1947 से हुए सभी करारों के प्रति प्रतिबद्ध होगा और इस तरह पाकिस्तान अंग्रेजी राज का कानूनी, संवैधानिक और राजनीतिक उत्तराधिकारी होगा।’
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अनुच्छेद 4 के इसी बात का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने कलात के खान को 15 अगस्त 1947 को एक फरेबी और फंसाने वाली आजादी देकर 4 महीने के भीतर यह समझौता तोड़कर 27 मार्च 1948 को उस पर औपचारिक कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के बचे 3 प्रांतों को भी जबरन पाकिस्तान में मिला लिया था।
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कहते हैं चोर चोरी करने के बाद अंजाने में ही सही कोई न कोई सुराग जरूर छोड़ जाता है। लेकिन पाकिस्तान एक ऐसा देश है जिसकी सेना बलूचिस्तान में चोरी भी करती है। निर्दोष लोगों की हत्या भी करती है और सारे सबूत भी छोड़ जाती है। आज हम आपको बलूचिस्तान का सच बताएंगे और बताएंगे आपको कि कैसे बलूचिस्तान में मानवाधिकार का हनन पाकिस्तान अपनी सरर्जमी पर आज से नहीं बल्कि सात दशकों से करता आ रहा है। कैसे पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान के लोगों को आजादी चाहिए उस पाकिस्तान से जो नरक से भी बद्तर है।
बलूचों की बगावत को कुचलने के लिए पाकिस्तान ने कई बार सैन्य हमले किए-
भारत ने लंबे समय तक इस बात का ख्याल रखा कि वह अन्य देशों के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देगा। यही कारण है कि भारत ने कभी इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर बलूचिस्तान का मामला नहीं उठाया, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान कश्मीर के मामले को लगातार भड़काता रहा। भारत ने अपनी पूर्व की नीति में अचानक बदलाव के संकेत देते हुए लाल किले की प्राचीर से बलूचिस्तान का जिक्र कर पाक की दुखती रग पर हाथ रखा तब पाकिस्तान को भी इसकी उम्मीद नहीं थी। बीते दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए फोरम फॉर अवेयरनेस ऑफ नेशनल सिक्योरिटी (फैंस) जम्मू चैप्टर की तरफ से 'इमर्जिग फॉल्ट लाइंस ऑफ जियो-स्ट्रेटेजिक इंप्लायंस ऑफ पाकिस्तान' विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पाकिस्तान की हकीकत को बयां किया। इंद्रेश कुमार ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि पड़ोसी बदले नहीं जा सकते हैं, यह तो ठीक है, लेकिन नए पड़ोसी बनाए तो जा सकते हैं।
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इस सम्मेलन में बलूच में अत्याचारों का मु्द्दा उठाते हुए मंसूर मोहम्मद अली बलूच ने पाकिस्तान में बलूच पर हुए अत्याचारों के बारे में बात की और कहा कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। यह खनिज संसाधनों से समृद्ध है और स्वतंत्र रूप से खुद को बनाए रख सकता है। एक दिन बलूच राष्ट्र प्रबल होगा, क्योंकि एक दिन बलूचियों का राष्ट्र के रूप में उदय होगा। 1948 से लेकर आज तक बलूच का विद्रोह जारी है। बलूच का मानना है कि वो पूर्व में एक स्वतंत्र राष्ट्र थे और सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से वो एक अलग पहचान रखते है। पाकिस्तान ने कलात के खान से बंदूक की नोंक पर विलय करवाया। आज बलूचिस्तान में हजारों बलूच लड़ाके पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ रहे हैं। बलूचिस्तान के लोग चाहते हैं कि भारत मामले में दखल दे जिस तरह उसने बांग्लादेश के मामले में किया था। नरेंद्र मोदी द्वारा बलूचिस्तान का जिक्र आने के बाद भारत ने अपनी रणनीति बदली है। इससे बलूच लोगों में भी एक बार फिर आशा जगी है कि वो भारत की मदद से अपना हक पा सकेंगे और आने वाले दिनों में पाकिस्तान को एक और बंटवारे से रूबरू होना पड़ेगा।