Bhadrapad Ambaji Fair 2022: गुजरात में लगने वाला यह मेला है बेहद ख़ास

By रौनक | Sep 25, 2022

भारत देश विविधताओं से भरा हुआ है।  यहाँ हर दिन कोई-ना-कोई त्यौहार या पर्व का आयोजन किया जाता है। इसी तरह भारत के राज्य गुजरात के बनासकांठा में लगने वाला भाद्रपद अंबाजी मेला एक बेहद ही ख़ास मेला है जो कि बहुसांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक है। जहां पर ना सिर्फ़ हिंदू बल्कि सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर भाग लेते हैं। यह मेला देवी अंबा जो कि नारी शक्ति का प्रतीक है उनका प्रतिनिधित्व भी करता है। भारत के सबसे प्राचीन और सम्मानित मंदिरों में से एक अंबाजी मंदिर में इस विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। 


क्यों है ये मेला इतना महत्वपूर्ण ?

भाद्रपद के महीने के रूप में लगने वाला यह मेला मुख्य रूप से किसानों के बीच अत्यधिक महत्व रखता है और उनके लिए यह मेला बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनके लिए मॉनसून के अंत का प्रतीक है। इस समय किसान अच्छी फसल उगने के लिए माँ से प्रार्थना करते है। देवी अम्बा का अम्बाजी मंदिर प्राचीन भारत का सबसे पुराना और पवित्र तीर्थ स्थान है। ये देवी सती को समर्पित 52 शक्तिपीठों में से एक है। गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बने बनासकांठा जिले की दांता तालुका में मौजूद गब्बर पहाड़ियों के ऊपर अम्बाजी माता का मंदिर स्थापित हैं।  दुनियाभर से अम्बाजी के मंदिर में पर्यटक आकर्षित होकर यहाँ दर्शन करने आते हैं। यह स्थान पर्यटकों के लिये भी प्राकृतिक सुन्दरता और आध्यात्म का एक अनोखा संगम है साथ ही यह स्थान अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। गब्बर पहाड़ियों पर कुछ और भी धार्मिक स्थल हैं जहाँ पर तीर्थयात्री दर्शन करने जाते हैं। अम्बाजी मंदिर के मुख्य मन्दिर के पीछे मानसरोवर नाम का एक कुण्ड भी स्थित है। हाल के वर्षों में, अंबाजी मेला पूरे भारत और विदेशों में लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने में बहुत लोकप्रिय हो गया है। अगस्त-सितंबर के महीने में आयोजित इस मेले में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मेले में गुजरात का प्रसिद्ध गरबा नृत्य भी किया जाता है कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही श्रद्धालुओं के लिए फ्री भोजन एवं गीत-संगीत की भी व्यवस्था की जाती हैं। 

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क्या है अंबाजी मेले का इतिहास ?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर में माता सती का हृदय गिरा था। हैरान करने वाली बात यह है कि सामान्य मंदिरों की तरह इस मंदिर के गर्भगृह में देवी  माँ की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। इस मंदिर में देवी की प्रतिमा के स्थान पर हिन्दुओं का पवित्र श्रीयंत्र स्थापित है जिसका यहाँ पर पूजन किया जाता है और इस यंत्र को भी श्रद्धालु प्रत्यक्ष तौर पर सीधी आंखों से नहीं देख सकते हैं यहाँ तक की इसका फोटो खींचना भी मना हैं। यहां के पुजारी इस श्रीयंत्र का श्रृंगार इतना अद्भुत तरीके से करते हैं कि श्रद्धालुओं को प्रतीत होता है कि देवी अम्बाजी यहाँ प्रत्यक्ष रूप से  विराजमान हैं। इसके पास में ही पवित्र अखण्ड ज्योति जलती रहती है,जिसके बारे में कहा जाता है कि यह कभी नहीं बुझी। यहां आज भी एक पत्थर पर मां के पदचिह्न के निशान मिलते हैं। इस मंदिर के बारे में प्रचलित मान्यता यह है कि यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार  हुआ था। एक मान्यता यह भी हैं कि भगवान श्रीराम भी यहाँ शक्ति-उपासना के लिए आए थे।


- रौनक

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