भाजपा प्रत्याशी ने कहा, मिजोरम की आखिरी उम्मीद है भाजपा

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Apr 03, 2019

नयी दिल्ली/आइजोल। मिजोरम की एकमात्र लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार निरुपम चकमा का दावा है कि कांग्रेस से कथित रूप से धोखा खायी राज्य की जनता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विकास के ‘मसीहा’ और भाजपा को ‘आखिरी उम्मीद’ के रूप में देखती है। पांच बार कांग्रेस से सांसद रहे चकमा 2015 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। उनका कहना है कि राज्य की जनता ने कांग्रेस और क्षत्रीय मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) को तमाम अवसर दिए लेकिन हर बार उन्हें निराशा हाथ लगी। एक साक्षात्कार में चकमा ने दावा किया, ‘‘यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा मिजोरम की आखिरी उम्मीद है। कांग्रेस ने उन्हें निराश किया है और लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे।’’

 

उनका कहना है कि मिजोरम की जनता मोदी-नीत भाजपा को एक मौका देना चाहती है। मिजोरम को महाराष्ट्र और गुजरात की तरह विकास के ऊंचे पायदान पर चढ़ते हुए देखने के लिए यह उनकी आखिरी उम्मीद है। उन्होंने कहा, ‘‘मिजोरम में लोगों का विचार भाजपा के पक्ष में बदल रहा है और इस बार वह भाजपा उम्मीदवार को चुनना चाहते हैं। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि उन्हें निराशा नहीं होगी।’’ मिजोरम में मतदान पहले चरण में 11 अप्रैल को होना है। यह 1972 तक असम का हिस्सा था। फिर उसे संघ शासित प्रदेश का दर्जा मिला और 20 फरवरी, 1987 को यह भारत का 23वां राज्य बना। तब से लेकर 2014 लोकसभा चुनाव तक राज्य की एकमात्र सीट कांग्रेस या एमएनएफ के हिस्से में जाती रही है। चकमा का कहना है कि भले ही वह अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं लेकिन उन्हें सभी से समर्थन मिलने का यकीन है।

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मिजोरम में अपने समुदाय से पहले मंत्री बने चकमा का कहना है, ‘‘मैं सिर्फ अपने समुदाय के वोटों पर निर्भर नहीं हूं। मिजोरम की राजनीति में 22 साल का अनुभव कहता है कि मुझे समाज के सभी तबके का समर्थन मिलेगा।’’ राज्य में बेरोजगारी, उद्यम के अवसरों में कमी, सरकारी ठेकों में भ्रष्टाचार और खराब स्वास्थ्य सुविधाओं का हवाला देते हुए चकमा ने पूर्ववर्ती सरकारों पर जनकल्याण के लिए मिले धन का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। चकमा ने आरोप लगाया, ‘‘ऐसा नहीं है कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने मिजोरम को धन आवंटित नहीं किया है। लेकिन, पिछले चार-पांच साल में जितना भी धन आया, कांग्रेस सरकार ने उसे इधर-उधर कर दिया, सरकारी संस्थाओं के पास अब पैसा नहीं बचा है और जनकल्याण नीतियां अंतिम सांस ले रही हैं।’’ 

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