By नीरज कुमार दुबे | Jul 09, 2025
अफ्रीकी महाद्वीप में चीन की लगातार बढ़ती पैठ और संसाधनों पर उसका वर्चस्व भारत के लिए एक बड़ी चुनौती रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की नामीबिया यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। हम आपको बता दें कि अफ्रीका, विशेष रूप से दक्षिणी अफ्रीका का हिस्सा, खनिज संसाधनों, ऊर्जा स्रोतों और वैश्विक व्यापार मार्गों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। चीन ने पिछले दो दशकों में अफ्रीका में बड़े पैमाने पर निवेश कर वहां की सरकारों और बाजारों पर अपनी पकड़ मजबूत की है। भारत के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह चीन की इस रणनीति का प्रभावी उत्तर दे और अपने पुराने अफ्रीकी साझेदारों के साथ नए संबंधों को सशक्त करे।
इस संदर्भ में मोदी की यह यात्रा चीन को एक स्पष्ट संकेत है कि अफ्रीका अब केवल उसकी आर्थिक प्रयोगशाला नहीं रह सकती। भारत ‘साझेदारी के माध्यम से विकास’ की नीति को आगे बढ़ाते हुए अफ्रीकी देशों को भरोसा दिला रहा है कि वह शोषण नहीं, सहयोग का प्रस्ताव लेकर आया है। भारत की “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना और विकासोन्मुख दृष्टिकोण चीन की एकपक्षीय रणनीति से अलग है।
यदि आप नामीबिया में चीन के प्रभाव पर नजर डालेंगे तो चौंक जाएंगे। हम आपको बता दें कि खनिज संसाधनों से भरपूर और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अफ्रीकी देश नामीबिया चीन की ‘नरम साम्राज्यवाद’ नीति का एक प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। साथ ही चीन-नामीबिया संबंधों की गहराई भारत के लिए नई भू-राजनीतिक चुनौतियाँ खड़ी कर रही है। हम आपको बता दें कि चीन ने नामीबिया में आधारभूत ढाँचे जैसे सड़क, रेलवे, सरकारी भवनों, बंदरगाहों और अस्पतालों में भारी निवेश किया है। इसके तहत Belt and Road Initiative (BRI) के अंतर्गत नामीबिया चीन से बड़े पैमाने पर ऋण ले चुका है। साथ ही नामीबिया की राजधानी विंडहुक में बना चीनी दूतावास अफ्रीका के सबसे बड़े दूतावासों में से एक है— जो चीन के रणनीतिक इरादों का संकेत देता है।
इसके अलावा, नामीबिया यूरेनियम, लिथियम, कोबाल्ट और अन्य दुर्लभ खनिजों का धनी देश है। चीन ने यहां कई खनन कंपनियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष हिस्सेदारी हासिल कर ली है। उदाहरण के लिए, Rossing Uranium Mine और Husab Mine में चीन की प्रमुख उपस्थिति है। साथ ही चीन ने नामीबिया की सैन्य बुनियादी संरचना को समर्थन देने के साथ-साथ राजनीतिक तंत्र पर भी प्रभाव जमाया है। नामीबिया की सेना को चीनी हथियारों और प्रशिक्षण से लैस किया जा रहा है।
भारत के लिए चीन-नामीबिया संबंध क्यों चिंता का विषय हैं, यदि इस सवाल का जवाब ढूँढ़ें तो सामने आता है कि भारत को अपनी हरित ऊर्जा नीति और सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए लिथियम और कोबाल्ट जैसे खनिजों की सख्त आवश्यकता है। यदि नामीबिया पर चीन का नियंत्रण और बढ़ता है, तो भारत को इन संसाधनों की आपूर्ति में बाधा आ सकती है। यह भारत की ऊर्जा और तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिए खतरा है।
इसके अलावा, भारत लंबे समय से अफ्रीका के साथ ऐतिहासिक और भावनात्मक संबंध रखता आया है। चीन की आक्रामक कूटनीति और आर्थिक लालच के चलते यदि नामीबिया जैसे देशों पर उसका प्रभाव बढ़ता है, तो भारत की "साझेदारी आधारित" अफ्रीका नीति को झटका लग सकता है। साथ ही नामीबिया जैसे देश यदि चीन के प्रभाव में अधिक आते हैं, तो ब्रिक्स, G77, NAM और अन्य दक्षिणी सहयोग मंचों पर भारत की आवाज़ को चुनौती मिल सकती है। गौरतलब है कि चीन इन मंचों का उपयोग भारत को रणनीतिक रूप से संतुलित करने के लिए करता है।
इसके अलावा, नामीबिया के वॉल्विस बे बंदरगाह पर चीनी निवेश के संकेत मिले हैं। यदि यह बंदरगाह चीन की नौसैनिक रणनीति का हिस्सा बनता है, तो यह भारत की हिंद महासागर रणनीति के लिए चिंता का विषय बन सकता है। देखा जाये तो चीन-नामीबिया संबंधों में बढ़ती गहराई भारत के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि अफ्रीका में उसकी उपस्थिति को और प्रभावशाली बनाने की आवश्यकता है। भारत को केवल आर्थिक सहायता या व्यापारिक प्रस्तावों तक सीमित न रहकर, अफ्रीकी देशों के साथ दीर्घकालिक साझेदारी, सांस्कृतिक संबंध, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रक्षा सहयोग के क्षेत्रों में भी निवेश करना होगा। यदि भारत को ग्लोबल साउथ में नेतृत्व बनाए रखना है, तो उसे अफ्रीका में चीन के हर कदम का संतुलित उत्तर देना होगा।
माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नामीबिया यात्रा भारत-अफ्रीका संबंधों के भविष्य की नींव को और मजबूत करने वाली साबित होगी। उल्लेखनीय है कि भारत और नामीबिया के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध भी हैं, विशेष रूप से गांधीवादी विचारधारा, स्वतंत्रता संघर्ष और शांति-संवाद पर आधारित साझा विरासत।
हम आपको यह भी याद दिला दें कि चीता परियोजना से दोनों देशों के बीच नई कूटनीति शुरू हुई थी। 2022 में भारत ने नामीबिया से अफ्रीकी चीता लाकर मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में पुनर्वासित किया था। यह केवल वन्यजीव संरक्षण की पहल नहीं, बल्कि "ईको डिप्लोमेसी" का एक उत्कृष्ट उदाहरण था। मोदी की इस यात्रा ने उस रिश्ते को राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर और आगे बढ़ाया है। नामीबिया यूरेनियम, लिथियम, कोबाल्ट और तांबा जैसे दुर्लभ खनिजों से समृद्ध है इसलिए भारत की हरित ऊर्जा रणनीति और इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण के लिए दोनों देशों के बीच साझेदारी अत्यंत लाभकारी है। प्रधानमंत्री की इस यात्रा में इन खनिजों की आपूर्ति, प्रसंस्करण और तकनीकी आदान-प्रदान के समझौते हुए।
हम आपको बता दें कि भारत ने नामीबिया को फार्मा, वैक्सीन उत्पादन, आयुष (AYUSH), टेलीमेडिसिन और उच्च शिक्षा में सहायता देने का वादा किया। विशेष रूप से ITEC (Indian Technical and Economic Cooperation) कार्यक्रम के तहत नामीबियाई छात्रों और पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण अवसर बढ़ाए गए हैं। इसके अलावा, भारतीय नौसेना और नामीबियाई समुद्री सुरक्षा बलों के बीच सहयोग पर भी चर्चा हुई। समुद्री सुरक्षा, पायरेसी रोधी रणनीतियों और रक्षा उपकरण आपूर्ति के क्षेत्र में साझेदारी मजबूत करने की सहमति बनी है।
भारत और नामीबिया के संबंधों में सुधार से होने वाले संभावित लाभों पर गौर करें तो आपको बता दें कि नामीबिया से लिथियम और यूरेनियम जैसी धातुओं की आपूर्ति भारत के ऊर्जा, रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्र की चीन पर निर्भरता को कम करेगा। साथ ही नामीबिया के साथ सहयोग, भारत को दक्षिणी अफ्रीका में अपनी आर्थिक और कूटनीतिक उपस्थिति बढ़ाने में मदद करेगा। इससे भारत की अफ्रीका नीति को धार मिलेगी। इसके अलावा, भारत की आईटी, स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं से नामीबिया को दीर्घकालिक सामाजिक लाभ मिलेगा। भारतीय दवा उद्योग वहाँ की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को सशक्त बना सकता है। साथ ही दोनों देश G77, NAM और संयुक्त राष्ट्र में विकासशील देशों के पक्ष में समन्वय से काम कर सकते हैं। इससे Global South की आवाज़ और प्रभाव दोनों बढ़ेंगे।
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी की नामीबिया यात्रा भारत की "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मूर्त रूप देने का प्रतीक भी है। भारत और नामीबिया के बीच नई साझेदारी ना केवल वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति करेगी, बल्कि आने वाले समय में एक स्थायी, न्यायसंगत और आत्मनिर्भर वैश्विक व्यवस्था की आधारशिला भी बनेगी। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि चीन की आक्रामक नीतियों के बीच प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा अफ्रीका में संतुलन स्थापित करने की दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है।
-नीरज कुमार दुबे