By अनन्या मिश्रा | Dec 10, 2025
आजाद भारत के पहले गर्वनर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का आज ही के दिन यानी की 10 दिसंबर को जन्म हुआ था। जवाहर लाल नेहरू उनको पहला राष्ट्रपति बनाना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। सी राजगोपालाचारी एक वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। बता दें कि उनको राजनीति में लाने का श्रेय महात्मा गांधी को जाता है। हालांकि सी राजगोपालाचारी पहले नेहरू के काफी करीबी थे, लेकिन बाद में दोनों में अनबन हो गई थी। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर सी राजगोपालाचारी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले में 10 दिसंबर 1972 को चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म हुआ था। इनको आमतौर पर राजाजी के नाम से जाना जाता था। वह पढ़ाई में जीनियस थे और लगातार फर्स्ट डिवीजन पास होते रहे। इनके पिता तमिलनाडु के सेलम के न्यायालय के न्यायाधीश थे।
सी राजगोपालाचारी की वकालत में यह स्थिति थी कि वह सेलम में कार खरीदने वाले पहले वकील थे। फिर महात्मा गांधी के छुआछूत आंदोलन और हिंदू-मुस्लिम एकता कार्यक्रमों में सी राजगोपालाचारी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया था। साल 1937 में हुए चुनावों के बाद राजाजी मद्रास के प्रधानमंत्री बने। फिर जब वायसराय ने साल 1939 में एक तरफा निर्णय लेकर भारत को सेकेंड वर्ल्ड वॉर में धकेल दिया तो सी राजगोपालाचारी ने विरोध स्वरूप अपना इस्तीफा पेश कर दिया।
कांग्रेस के साथ आने के बाद राजगोपालाचारी ने आंदोलनों में शिरकत लेना शुरूकर दिया था। जल्द ही वह देश की राजनीति और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में शामिल हो गए थे। भले ही महात्मा गांधी उनसे राय लेते थे, लेकिन इसके बाद भी दोनों के बीच कई बार मतभेद की स्थितियां बनीं। वहीं कई बार सी राजगोपालाचारी खुले तौर पर कांग्रेस के विरोध में खड़े मिलते। लेकिन वह कोई भी काम अकारण नहीं करते थे।
साल 1946 में देश की अंतरिम सरकार में सी राजगोपालाचारी को केंद्र सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया। फिर देश के आजाद होने के बाद वह बंगाल के राज्यपाल बने। इसके बाद वह स्वतंत्र भारत के पहले 'गवर्नर जनरल' बने। जब पंडित नेहरू उनको देश का पहला राष्ट्रपति नहीं बना सके, तो साल 1950 में सी राजगोपालाचारी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में लिया गया। साल 1952 के आम चुनावों में वह लोकसभा सदस्य बने और मद्रास के सीएम निर्वाचित हुए। हालांकि कुछ साल बाद सी राजगोपालाचारी ने नेहरू और कांग्रेस से नाखुश होकर मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस दोनों को छोड़ दिया।
सी राजगोपालाचारी को कांग्रेस और तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू के वामपंथी समाजवाद की ओर झुकाव को लेकर ऐतराज था। राजगोपालाचारी का मानना था कि इस झुकाव से कांग्रेस को नुकसान होगा। इसी मतभेद के कारण राजगोपालाचारी कांग्रेस से अलग होकर 04 जून 1959 को नई राष्ट्रवादी पार्टी स्वतंत्र पार्टी का गठन किया।
इस पार्टी का नाम स्वतंत्र पार्टी था। 61 साल पहले बनी इस पार्टी ने मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाई थी। लेकिन जिस तेजी और रफ्तार के साथ पार्टी उभरी थी, सिर्फ 15 सालों बाद उसी झटके के साथ यह पार्टी खत्म भी हो गई।
साल 1952 में सी राजगोपालाचारी को 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था। वह विद्वान और अद्भुत लेखन प्रतिभा के धनी थे।
वहीं 28 दिसंबर 1972 को चेन्नई में सी राजगोपालाचारी का निधन हो गया था।