राजस्थान सरकार के समक्ष अब निवेशकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती

By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Oct 10, 2022

राजस्थान में औद्योगिक निवेश को लेकर 7 व 8 अक्टूबर को आयोजित इंवेस्ट राजस्थान समिट इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाता है कि प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों के बेहतरीन उपयोग के साथ ही प्रदेश में रोजगार के नए अवसर विकसित होंगे। आर्थिक विकास की धारा बहेगी वहीं विश्व पटल पर राजस्थान की पहचान होगी। इंवेस्टमेंट राजस्थान के दौरान प्रदेश में सबसे अधिक निवेश के एमओयू-एलओआई ऊर्जा क्षेत्र में आए हैं वहीं इसके बाद दूसरा नंबर माइनिंग क्षेत्र का आता है। ऊर्जा में भी खासतौर से अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश प्रस्ताव आए हैं। देखा जाए तो दोनों ही प्रमुख क्षेत्र अक्षय ऊर्जा और माइनिंग प्राकृतिक संसाधनों को लेकर के हैं।


देखने वाली बात यह है कि पश्चिम राजस्थान जिसे एक समय कालापानी की सजा से कम नहीं माना जाता था। सरकारी अधिकारी, कर्मचारी को सजा देनी होती थी तो उसे बाड़मेर-जैसलमेर का डर दिखाया जाता था, पर आज यही क्षेत्र सबसे अधिक प्रोस्पेरस और सब्जबाग दिखाने वाला हो गया है। प्रदेश में आज सबसे अधिक परकेपिटा इनकम बाडमेर की है। तपते रेत के धोरें और धूल भरी आंधी प्रदेश के लिए वरदान बन गई है। सोलर और विण्ड एनर्जी के क्षेत्र में आज राजस्थान देश में शीर्ष पर आ चुका है। अब अडानी-अंबानी जैसे दिग्गजों के साथ ही अन्य कंपनियां इस क्षेत्र में प्रदेश में निवेश के लिए आगे आई हैं और एमओयू व एलओआई हस्ताक्षरित कर अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई है। इंवेस्टमेंट समिट के दौरान अडानी की उपस्थिति और निवेश की घोषणा अपने आप में महत्वपूर्ण हो जाती है। समिट के दौरान जिस तरह से देश-विदेश की नामी गिरामी कंपनियों के सीईओ व प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया है, उससे समिट की सफलता पर संदेह का कोई कारण नहीं बनता है। अकेले ऊर्जा क्षेत्र में 7 लाख 98 हजार के निवेश प्रस्ताव हैं तो माइनिंग क्षेत्र में 24370 करोड़ के प्रस्ताव अपने आम में महत्वपूर्ण हो जाते हैं। संतोष की बात यह है कि निवेश प्रस्ताव धरातल पर भी उतरने लगे हैं।

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इंवेस्ट राजस्थान के प्रति मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कमिटमेंट और गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री ने एक दिन पहले रात्रिभोज और बाद में दोनों दिन स्वयं समिट में उपस्थित रहकर निवेशकों को साफ संदेश दे दिया कि सरकार निवेश के प्रति गंभीर है। समिट के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह कहना कि अडानी-अंबानी या जय शाह हों, सभी का राजस्थान में निवेश के लिए स्वागत है। यह अपने आप में बड़ी बात इसलिए हो जाती है कि इसके पीछे जो सोच छिपी है वह प्रदेश के औद्योगिक विकास और रोजगार के अवसर विकसित करने की है। अन्यथा अडानी की उपस्थिति और निवेश को लेकर आलोचना-प्रत्यालोचना का दौर चला पर इसकी बिना परवाह किए जिस तरह से प्रदेश के हित की बात की गई है वह अपने आप में महत्वपूर्ण हो जाती है। समिट के उद्घाटन समारोह में अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी, वेदांता समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल सहित दिग्गजों की उपस्थिति से सरकार और निवेशक दोनों की गंभीरता को समझा जा सकता है। हालांकि यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि देश में अधिकांश राज्यों द्वारा समिट का आयोजन किया जाता रहा है और समिट के दौरान होने वाले एमओयू-एलओआई में से धरातल पर बहुत कम उतर पाते हैं। खास बात यह है कि राज्य में प्राप्त निवेश प्रस्तावों में से 40 प्रतिशत प्रस्ताव धरातल पर या फिर प्रक्रियाधीन हैं। ऐसे में यह आशा की जानी चाहिए कि प्रदेश में निवेश प्रस्ताव समय पर धरातल पर आएंगे और स्थानीय लोगों के लिए भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर विकसित होंगे।


इंवेस्ट राजस्थान अभियान लगभग पिछले छह माह से चल रहा था और निवेशकों को आकर्षित करने या यों कहें कि निवेशकों से सीधे संवाद कायम करने के लिए राज्य के मंत्रियों और अधिकारियों की टीम जुटी हुई थी। देश के प्रमुख स्थानों पर चाहे वह मुंबई हो, बैंगलोर हो, अहमदाबाद हो, चेन्नई हो या अन्य स्थान, मंत्रियों और अधिकारियों ने वहां जाकर रोड शो आयोजित किए और सीधे संवाद कायम किया। ऊर्जा हो या माइनिंग या मेडिकल हो या एग्रो सेक्टर, सभी सेक्टर्स के अधिकारी मुख्यमंत्री गहलोत के निर्देशन, तत्कालीन उद्योग मंत्री परसादी लाल मीणा और वर्तमान उद्योग मंत्री शकुंतला रावत के साथ मिलकर समिट को सफल बनाने में जुटे रहे। ऊर्जा क्षेत्र हो या माइनिंग क्षेत्र या मेडिकल या एग्रो, सभी में तत्कालीन अधिकारियों की सूझबूझ और मेहनत की भी सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने प्रदेश में निवेश के लिए दिग्गज निवेशकों को आकर्षित और प्रेरित किया।

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अब सौ टके का सवाल निवेशकों के निवेश प्रस्तावों को धरातल पर लाने का है। राजनीतिक इच्छा शक्ति ने अपना संदेश दे दिया है। संबंधित अधिकारियों ने भी अपनी मेहनत से प्रस्ताव लाने के प्रयास कर लिए हैं। सरकार ने नई रिप्स भी लागू कर दी है। ऐसे में अब उद्योग विभाग, बीआईपी की महती जिम्मेदारी हो जाती है कि निवेशकों से सीधे संवाद कायम रखा जाए, उनकी कोई समस्या या बाधा आती है तो उसका हल खोजा जाए। इसके लिए वरिष्ठ अधिकारियों को सेक्टरवाइज नोडल अधिकारी बनाया जा सकता है और इसकी मॉनिटरिंग का भी स्पष्ट रोडमेप तैयार कर लिया जाए ताकि इंवेस्ट राजस्थान में आए निवेश प्रस्ताव और उनका क्रियान्वयन एक मिसाल बन सके। इसके लिए राजनीतिक स्तर पर मुख्यमंत्री गहलोत और ब्यूरोक्रेटिक स्तर पर मुख्य सचिव द्वारा नियमित मॉनिटरिंग होने से निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकेंगे।


-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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