By कमलेश पांडे | Oct 31, 2025
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का शोर दिन-प्रतिदिन तेज होता जा रहा है, क्योंकि आगामी 6 और 11 नवंबर को वहां वोट डाले जाएंगे। इसलिए एनडीए, इंडिया गठबंधन और जनसुराज के नेताओं ने एक-दूसरे पर शाब्दिक गोले बरसा रहे हैं। एक दूसरे के अतीत और वर्तमान की बखिया उधेड़ी जा रही है। लिहाजा, एक सवाल सबकी जेहन को कुरेद रहा है कि क्या शब्दों के चुनावी मरहम से निर्धनता और अराजकता के बजबजाते घाव क्या भर पाएंगे। क्या नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर लोगों का विश्वास जीत पाएंगे।
सबसे बड़ा सवाल यही कि मतलबपरस्ती के बयार में दोनों प्रमुख गठबंधनों में शामिल दलों की पारस्परिक गांठ कभी नहीं खुलेगी। यह बात मैं इसलिए उठा रहा हूँ कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चालों ने 2015 और 2020 के जनादेशों की जिस तरह से खिल्ली उड़ाई और अपना राजनीतिक स्वार्थ साधा, उससे क्या वे मतदाता फिर से उनपर या उनके सहयोगियों पर भरोसा कर पाएंगे। यही बात पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर भी लागू होती है। यदि एक बार फिर उन्होंने चाचा नीतीश कुमार को पटा लिया तो उस बिहार का क्या होगा, जो जंगलराज की पुनरावृत्ति सपने में भी नहीं चाहता।
रही बात चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की, तो उनकी पार्टी जनसुराज की तासीर तो इंडिया गठबंधन से ही मिलती जुलती है। इसलिए उन्हें भी वोट देने का मतलब होगा, परोक्ष रूप से राहुल गांधी-तेजस्वी यादव के हाथों को मज़बूत करना। यही वजह है कि बिहार के मतदाता असमंजस में हैं। उन्हें नागनाथ, सांपनाथ और बिच्छूनाथ में किसी पर भरोसा नहीं हो पा रहा है, लेकिन जब चुनाव है तो किसी को चुनना ही है। इसलिए नरेंद्र मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के आह्वान पर वो ज्यादा गौर फरमा रहे हैं। उन्हें डर है कि ग्रेटर बंगलादेश का स्वप्न यदि साकार हुआ तो बिहार युद्ध भूमि में तब्दील हो सकता है।
खास बात यह है कि जहां राम मंदिर के विघ्नकर्ताओं, जानकी मंदिर के आलोचकों की बात योगी आदित्यनाथ छेड़ रहे हैं।गुंडों के खिलाफ यूपी वाला डंडा चलवाने के लिए एनडीए सरकार की वकालत कर रहे हैं। वहीं, सबको रोजगार देने, संविधान को बचाने, आरक्षण को विस्तृत बनाने और जंगलराज नहीं आने देने के आश्वासन तेजस्वी यादव दे रहे हैं। वहीं, प्रशांत किशोर दोनों सरकारों की करतूतें और बिहार के लोगों की मौलिक जरूरतों को पूरा करने के आश्वासन दे रहे हैं। इसलिए लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि उनका असली हितचिंतक कौन है!
यही वजह है कि चुनाव परिणामों को लेकर लगभग सभी प्रमुख ओपिनियन पोल्स में एनडीए(बीजेपी–जद(यू) गठबंधन) को स्पष्ट बढ़त और पुनः एनडीए सरकार बनने की भविष्यवाणी की जा रही है। पिछले 20 वर्षों से घुमाफिरा कर यही सरकार सत्ता में है भी। उधर, महागठबंधन (राजद–कांग्रेस–वामपंथी) पीछे है, जबकि जन सुराज पार्टी और अन्य छोटे दलों को सीमित सीटें मिलने का अनुमान है। चुनाव प्रचार तेज होने के बावजूद स्थिति पुरानी ही बरकरार है।
जहां तक सीटों व वोट शेयर की संभावित तस्वीर का सवाल है तो एनडीए (बीजेपी–जद(यू) + सहयोगी) को 125–165 सीट और 45–49% वोट शेयर मिलने की अटकलें लगाई जा चुकी हैं। जबकि इंडिया महागठबंधन (राजद–कांग्रेस–वामपंथी) को 63–110 सीट और 36–41% वोट शेयर की बातें बताई गई हैं। वहीं, जन सुराज (प्रशांत किशोर) को 4–10 सीट और 8–11 प्रतिशत वोट शेयर मिलने की संभावना जताई गई है। इन्हें युवाओं के बीच लोकप्रिय बताया गया है। रही बात अन्य छोटे दल यानी एआईएमआईएम आदि की) तो उन्हें 3–10 सीट मिलने की उम्मीद है।
खास बात यह है कि मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर लोगों ने तेजस्वी यादव (राजद) को 36.5–38% समर्थन दिया है, जिससे वो सबसे प्रबल चेहरा के रूप में सामने आए हैं। इससे उनके हौसले बुलंद हैं। वहीं मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (जदयू) को 35–42% लोगों ने समर्थन दिया है। वह एनडीए ओर से मुख्य दावेदार समझे जाते हैं। जबकि प्रशांत किशोर (जन सुराज) को लोगों ने मात्र 9–23% समर्थन दिया है। उन्हें सिर्फ युवा वर्ग में बढ़त मिली है। जबकि बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट की बात करने वाले चिराग पासवान (एलजेपी आर) को लोगों ने महज 5–8% समर्थन दिया है।
इस प्रकार अब तक के प्रमुख संघर्ष, सूबाई रुझान व क्षेत्रीय फर्क को समझते हुए यह माना जा रहा है कि बीजेपी की स्थिति अब मजबूत हो चुकी है, जबकि जदयू को अपनी पुरानी सीटों से नुकसान हो सकता है, क्योंकि तेजस्वी यादव उनपर भारी पड़ रहे हैं। वहीं, तेजस्वी यादव और महागठबंधन की मजबूती कुछ क्षेत्रों में बनी हुई है, पर राज्यस्तर पर एनडीए को मोटे तौर पर बढ़त मिलेगी, ऐसी अटकलें हैं। बताया जा रहा है कि जन सुराज की विशेष पकड़ युवाओं और शहरी वोटरों पर है; जबकि बाकी छोटे दल क्षेत्रीय प्रभाव तक सीमित हैं। इसप्रकार यदि जनसुराज ने एनडीए को ज्यादा नुकसान पहुंचाया तो तेजस्वी यादव के किस्मत की लॉटरी लग सकती है।
सच कहूं तो इन सब कयासों और सर्वे के आधार पर बिहार में एनडीए (बीजेपी+जदयू+सहयोगी) स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार के सबसे मजबूत दावेदार हैं, जबकि राजद के नेतृत्व वाला इंडिया महागठबंधन मुख्य विपक्ष में रहेगा। वहीं जन सुराज की सीटें पहली बार उल्लेखनीय स्तर पर पहुंच सकती हैं, क्योंकि वह अपनी पहली चुनाव ही लड़ रही है। स्पष्ट है कि बिहार में एनडीए सरकार लौटने के आसार प्रबल हैं और पूर्व की तरह ही जदयू के हाथ में सत्ता की कुंजी रहेगी।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक