NDA के घोषणापत्र में ज्यादा दम है महागठबंधन के? वादों की बारिश के बीच मतदाता को क्या भायेगा?

NDA Mahagathbandhan Manifesto
ANI

राजग के घोषणा पत्र के प्रमुख प्रावधानों में पिछड़े वर्गों के लिए विशेष आर्थिक सहायता का भी उल्लेख है। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (ईबीसी) को सरकार 10 लाख रुपये की सहायता देगी और उनके हितों के लिए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोग गठित किया जाएगा।

बिहार विधानसभा चुनावों से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) दोनों ने अपने-अपने घोषणापत्र जारी कर दिए हैं। पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्रियों जीतन राम मांझी, चिराग पासवान तथा सांसद उपेंद्र कुशवाहा की मौजूदगी में एनडीए ने अपना विस्तृत घोषणापत्र प्रस्तुत किया। एनडीए के घोषणापत्र में एक करोड़ रोजगार, महिलाओं के सशक्तिकरण, औद्योगिक विकास और बुनियादी ढांचे में निवेश पर ज़ोर दिया गया है। घोषणापत्र में हर जिले में मेगा स्किल सेंटर, औद्योगिक पार्क, महिला उद्यमिता मिशन, खेती के लिए एमएसपी की गारंटी, और सात नए एक्सप्रेसवे जैसी योजनाओं की घोषणा की गई है। इसके साथ ही गरीबों के लिए 50 लाख नए घर, 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली, मुफ्त राशन और बेहतर शिक्षा-स्वास्थ्य ढांचा का वादा किया गया है। 

राजग के घोषणा पत्र के प्रमुख प्रावधानों में पिछड़े वर्गों के लिए विशेष आर्थिक सहायता का भी उल्लेख है। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (ईबीसी) को सरकार 10 लाख रुपये की सहायता देगी और उनके हितों के लिए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोग गठित किया जाएगा। इसके अलावा, कृषि क्षेत्र के लिए राजग ने ‘कर्पूरी ठाकुर किसान सम्मान निधि’ शुरू करने की घोषणा की है, जिसे केंद्र और राज्य सरकार के समन्वय से लागू किया जाएगा। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी दी जाएगी और कृषि अवसंरचना में एक लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। घोषणापत्र में कहा गया है कि बाढ़ प्रभावित उत्तर बिहार को अगले पांच वर्षों में पूरी तरह इस समस्या से मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। शहरी विकास के तहत चार और शहरों में मेट्रो रेल सेवा शुरू करने की घोषणा भी की गई है। राजधानी क्षेत्र में “न्यू पटना” नामक एक हरित (ग्रीनफील्ड) परियोजना विकसित की जाएगी। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सीतामढ़ी के पुनौरा धाम जानकी मंदिर को “सीतापुरम” के रूप में विकसित किया जाएगा। घोषणा पत्र में यह भी कहा गया है कि बिहार से विदेशी उड़ानें शुरू की जाएंगी और कई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे बनाए जाएंगे। साथ ही, राज्य में 10 नए औद्योगिक पार्क स्थापित किए जाएंगे और प्रत्येक जिले में फैक्टरी एवं विनिर्माण इकाइयां शुरू की जाएंगी।

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राजग ने वादा किया है कि अगले पांच वर्षों में राज्य में 50 लाख करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित किया जाएगा, जिससे “औद्योगिक क्रांति” की गारंटी सुनिश्चित होगी। शिक्षा के क्षेत्र में राजग ने “केजी से पीजी तक निशुल्क गुणवत्तापूर्ण शिक्षा” का वादा किया है। अनुसूचित जाति के उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को 2,000 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाएगी। राजग ने गरीब और वंचित वर्गों के लिए ‘पंचामृत गारंटी’ की घोषणा की है, जिसके तहत मुफ्त राशन, पांच लाख रुपए तक का मुफ्त उपचार, 50 लाख पक्के मकान और सामाजिक सुरक्षा पेंशन सुनिश्चित की जाएगी राजग ने घोषणापत्र में कहा कि खेल के क्षेत्र में राज्य में ‘बिहार स्पोर्ट्स सिटी’ का निर्माण किया जाएगा ताकि युवाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल सुविधाएं मिल सकें। संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए भी विशेष प्रावधान किए गए हैं। घोषणा पत्र के अनुसार, गिग वर्कर्स और ऑटो चालकों को वित्तीय सहायता और कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। भाजपा ने कहा, “यह घोषणापत्र प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी और नीतीश कुमार के भरोसे का प्रतीक है।” 

दूसरी ओर, महागठबंधन ने अपने घोषणापत्र जिसे ‘तेजस्वी प्रण' नाम दिया गया है, में हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि “हम सत्ता में आए तो 20 दिन में हर परिवार को एक नौकरी दी जाएगी।” घोषणापत्र में ‘जीविका दीदी’ को स्थायी सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने, पुरानी पेंशन योजना लागू करने, आउटसोर्स और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को नियमित करने और युवा, किसान व महिला सशक्तिकरण से जुड़ी 25 प्रमुख घोषणाएँ शामिल हैं।

देखा जाये तो बिहार की राजनीति में घोषणापत्र अब केवल नीतिगत दस्तावेज़ नहीं रहे, बल्कि भावनात्मक प्रोपेगेंडा बन चुके हैं। इस बार दोनों खेमों ने वादों की ऐसी बारिश की है कि आम मतदाता के लिए असली और नकली बादल में फर्क करना मुश्किल हो गया है। एनडीए का घोषणापत्र दिखने में व्यावहारिक और संरचनात्मक है— यह विकास, उद्योग और स्थिरता की बात करता है। वहीं महागठबंधन का घोषणापत्र भावनात्मक है— यह नौकरी, वेतन और सरकारी स्थायित्व जैसे सीधे वादे करके युवाओं के दिलों को छूने की कोशिश करता है।

एनडीए ने इस बार ‘गारंटी’ को मुख्य शब्द बनाया है। “मोदी की गारंटी और नीतीश का भरोसा”, यह नारा सीधे जनता की याद्दाश्त में बैठाने की रणनीति है। घोषणापत्र का फोकस बुनियादी ढांचे पर है। जैसे- 7 एक्सप्रेसवे, 3,600 किमी नई रेल लाइनें, हर जिले में मेडिकल कॉलेज और औद्योगिक पार्क का वादा किया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बिहार में उद्योग लगाने का माहौल तैयार है? बिजली, भूमि, कानून व्यवस्था और मानव संसाधन, ये चारों चुनौतियाँ अभी भी गंभीर हैं। देखा जाये तो एक करोड़ रोजगार का वादा तब तक महज़ नारा रहेगा जब तक बिहार में पूंजी निवेश आकर्षक नहीं बनता।

हालाँकि, एनडीए ने महिलाओं पर केंद्रित योजनाओं— “लखपति दीदी मिशन” और “महिला उद्यमिता योजना'' के ज़रिए ग्रामीण महिला वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। नीतीश कुमार का पिछला रिकॉर्ड इस दिशा में अपेक्षाकृत मज़बूत रहा है, इसलिए इस वर्ग में एनडीए का वादा विश्वसनीय दिखता है।

वहीं तेजस्वी यादव ने घोषणापत्र को पूरी तरह युवाओं के लिए डिज़ाइन किया है। “20 दिन में नौकरी” जैसा वादा तात्कालिक रूप से आकर्षक ज़रूर लगता है, लेकिन वित्तीय दृष्टि से यह असंभव है। बिहार के राजस्व संसाधन सीमित हैं; अगर हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए, तो यह न केवल आर्थिक रूप से अव्यावहारिक होगा बल्कि शासन व्यवस्था भी चरमरा जाएगी। पुरानी पेंशन योजना, ठेका कर्मियों का स्थायीकरण और ‘जीविका दीदी’ को सरकारी दर्जा देने जैसी घोषणाएँ वित्तीय बोझ को कई गुना बढ़ा सकती हैं। महागठबंधन ने भावनात्मक राजनीति का सहारा लिया है, पर शासन के व्यावहारिक समीकरणों को नज़रअंदाज़ किया है।

अब सवाल उठता है कि जनता किसके घोषणापत्र से प्रभावित होगी? देखा जाये तो बिहार की जनता अब केवल वादों से नहीं, विश्वसनीयता से प्रभावित होती है। नीतीश कुमार की छवि एक अनुभवी प्रशासक की है, भले ही अब उनकी लोकप्रियता घट रही हो। मगर मोदी फैक्टर आज भी ग्रामीण और मध्यम वर्ग में भरोसे का प्रतीक है। दूसरी ओर तेजस्वी यादव युवाओं में उम्मीद जगाते हैं, लेकिन “जंगलराज” की पुरानी यादें अभी भी वोटरों के दिमाग़ में ताज़ा हैं। इसलिए, शहरी और मध्यम वर्ग के मतदाता संभवतः एनडीए के “विकास और स्थिरता” के वादे से आकर्षित होंगे, जबकि बेरोज़गार युवा और निम्न वर्ग महागठबंधन की “नौकरी और पेंशन” की घोषणाओं की ओर झुक सकते हैं।

बहरहाल, एनडीए का घोषणापत्र एक दीर्घकालिक दृष्टि प्रस्तुत करता है लेकिन उसकी सफलता क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी। वहीं महागठबंधन का घोषणापत्र तत्काल राहत का सपना दिखाता है लेकिन उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध है। बिहार के मतदाता अब भावनाओं से अधिक परिणाम चाहते हैं। वह जान चुके हैं कि “रोज़गार की राजनीति” और “विकास की राजनीति” के बीच एक बहुत गहरा अंतर है। बिहार के लिए असली सवाल यह नहीं है कि कौन ज्यादा वादे करता है, बल्कि यह है कि कौन अपने वादों को निभा सकता है। और इस बार, जनता घोषणापत्र नहीं, विश्वसनीयता को वोट देगी।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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