सैंकड़ों प्रेरक और हृदयस्पर्शी गीत लिखे थे चन्द्रकांत भारद्वाज ने

By विजय कुमार | Jan 08, 2018

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा पर खेल, व्यायाम, आसन, चर्चा आदि के माध्यम से संस्कार देने का सफल प्रयोग चलता है। इनमें वहां गाये जाने वाले गीतों की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। ये गीत व्यक्ति के अन्तर्मन को छूते हैं। ऐसे ही सैंकड़ों प्रेरक और हृदयस्पर्शी गीतों के लेखक थे श्री चन्द्रकान्त भारद्वाज, जिनका आठ जनवरी, 2007 को दिल्ली में देहान्त हुआ।

1920 ई. में चन्द्रकान्त जी का जन्म ग्राम किरठल (जिला बागपत, उ.प्र.) में वसंत पंचमी वाले दिन हुआ था। वसंत पंचमी विद्या और कलाओं की देवी मां सरस्वती की आराधना का दिन है। इसलिए मां सरस्वती की उन पर भरपूर कृपा रही। उनके पिता श्री देव शर्मा कोटा रियासत में अध्यापक थे। माता श्रीमती मालादेवी भी धर्मप्रेमी महिला थीं। चन्द्रकान्त जी चार भाइयों में सबसे बड़े थे। दिल्ली में बी.एस-सी. में पढ़ते समय वे स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़े। 1942 में पुरानी दिल्ली के किंग्जवे कैंप स्थित पीली कोठी को आग लगाने गये युवकों में चन्द्रकान्त जी भी शामिल थे। वहां उन्हें गोली भी लगी थी।

 

1942 का ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आन्दोलन विफल होने से स्वाधीनता प्रेमी युवक निराश हो गये। ऐसे में चन्द्रकान्त जी संघ की ओर आकर्षित हुए। धीरे-धीरे चारों भाई शाखा में जाने लगे। 1945 में मेरठ में लगे संघ शिक्षा वर्ग में चारों भाई प्रशिक्षण लेने आये थे। 1947 से 1952 तक चन्द्रकान्त जी उ.प्र. के अलीगढ़ और मैनपुरी में जिला प्रचारक रहे। प्रचारक जीवन से लौटकर उन्होंने बी.एड. किया और अध्यापक बन गये। 1954 में उन्होंने विमला देवी के साथ गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। शिक्षा में रुचि के कारण 1942 में गणित में एम.एस-सी. करने के बाद उन्होंने 1962 में हिन्दी में एम.ए. और फिर 1966 में छन्दशास्त्र में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। 

 

चन्द्रकान्त जी को छात्रजीवन से ही साहित्य और विशेषकर काव्य के क्षेत्र में रुचि थी। देश में कोई भी घटना घटित होती, उनका कवि हृदय उसके अनुकूल कोई गीत लिख देता था। 1964-65 में दिल्ली में सरसंघचालक पूज्य श्री गुरुजी का भव्य सार्वजनिक कार्यक्रम था। उसमें भाषण से पूर्व चन्द्रकान्त जी द्वारा लिखा गया यह गीत बोला गया- खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो न आंधी पानी से। निरंजन आप्टे ने यह गीत पूरे मनोयोग से गाया। गीत के शब्द, स्वर और लय से वातावरण भावुक हो गया। श्री गुरुजी ने कहा कि अब मुझे भाषण देने की आवश्यकता नहीं है। जो मैं कहना चाहता हूं, वह इस गीत में कह दिया गया है। चन्द्रकान्त जी के छोटे भाई डॉ. श्रीकान्त जी भी अच्छे कवि थे।

 

यह तो केवल एक उदाहरण है। चंद्रकांत जी की प्रखर एवं तेजस्वी लेखनी से निकले ऐसे सैंकड़ों गीत स्वयंसेवकों की जिह्वा पर चढ़कर अमर हुए हैं। ओ भगीरथ चरण चिन्हों पर उमड़ते आ रहे हम; बढ़ते जाना-बढ़ते जाना; विश्व मंगल साधना के हम हैं मौन पुजारी; राष्ट्र में नवतेज जागा; पुरानी नींव नया निर्माण.. आदि उनके प्रसिद्ध गीत हैं। ऐसे ही- अरुणोदय हो चुका वीर अब कर्मक्षेत्र में जुट जाएं; ले चले हम राष्ट्र नौका को भंवर से पार कर; युग-युग से स्वप्न संजोये जो हमको पूरे कर दिखलाना; नया युग करना है निर्माण; हिन्दू जगे तो विश्व जगेगा; लोकमन संस्कार करना यह परमगति साधना है; मानवता के लिए उषा की किरण उगाने वाले हम; पथ का अंतिम लक्ष्य नहीं है सिंहासन चढ़ने जाना....आदि गीतों की भी एक विराट मालिका है।

 

मां सरस्वती के उपासक श्री चंद्रकांत भारद्वाज काव्य के साथ ही नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध लेखन, अनुवाद तथा सम्पादन में भी सिद्धहस्त थे। चरण कमल, खून पसीना और गीत तथा जागरण गीत नामक पुस्तक में उनके कुछ गीत संकलित हैं। हर्षवर्धन (नाटक) और शरच्चन्द्रिका (उपन्यास) भी प्रकाशित हुए हैं। इसके बाद भी उनका बहुत-सा साहित्य अप्रकाशित है।

 

-विजय कुमार

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