चैटिंग ने उड़ाई किशोरों की नींद, नंबर भी कम आने लगे

By ईशा | Apr 02, 2016

टेक्नॉलाजी ने एक तरफ जहां लोगों की जिंदगी आसान बनाई है वहीं दिन-ब-दिन बढ़ते स्मार्ट फोन के उपयोग ने किशोरों की सेहत और भविष्य को दांव पर लगा दिया है। फेसबुक, व्हाट्सएप्प, इंस्टाग्राम और अब तो स्नैपचैट ने टीनेज की रातों की नींद उड़ा दी है। एयरटेल का विज्ञापन जहां रात में इंटरनेट इस्तेमाल करने पर पचास फीसद कैशबैक की गारंटी है, नींद में खलल डालने के लिए काफी है। मोबाइल क्रांति जब आई, तो लगा कि एक दूसरे से दूर रहकर भी जुड़ने का मौका मिला। आप किसी भी शहर में रह रहे हों, यह एक जरिया बना अपनों का हाल-चाल जानने और उनसे जुड़े रहने का। मगर इससे रिश्ते सलामत हैं, कहना मुश्किल हैं।

 

अब यही स्मार्टफोन 13 से 17 साल के बच्चों के लिए मुसीबत का सबब बन गए हैं। दिन-ब-दिन उनके ग्रेड गिरते जा रहे हैं। स्कूल जाने में आनाकानी होती है। पढ़ाई में मन नहीं लगता, कोई भी काम समय पर नहीं हो पाता। नतीजा निराशाजनक परीक्षा परिणाम सामने आ रहे हैं। अभी पिछले दिनों न्यूयार्क के तीन हाईस्कूलों में एक हजार से ज्यादा बच्चों का सर्वे किया गया और पाया गया कि रात में जब घर के लोग सो जाते हैं, तो बच्चे मोबाइल पर चैटिंग करने लगते हैं, नतीजा वे सुबह देर से उठते हैं और स्कूल जाने में जम्हाई लेते हैं। उनके नंबर भी अच्छे नहीं आ रहे हैं। बच्चे अब अपनी सारी पॉकेट मनी मोबाइल नेट इस्तेमाल करने में लगाते हैं। न उन्हें अपने परिवार का ध्यान रहता हैं और न ही दूसरी जिम्मेदारियों का अहसास। खेलकूद, पढ़ाई, लोगों से मिलना-जुलना, परिवार सबके बिना बच्चे आसानी से रह लेते हैं, पर मोबाइल के बिना वे एक पल भी नहीं रह सकते। पूरा दिन बस मैसेज के इंतजार में निकल जाता हैं। हैरानी की बात यह हैं कि स्कूल में भी यह आदत बनी रहती है।

 

कई अभिभावकों की मानें तो बच्चों के मैसेज सुबह से आने शुरू हो जाते हैं जो देर रात तक चलते हैं। ऐसे में न उनके पास अपने पढ़ाई और होमवर्क के लिए समय है, न ही उन्हें हॉबी से मतलब है। उन्हें तो बस जहां मौका मिला मैसेज करने लगते जाते हैं। चाहे वह स्कूल की क्लास हो, खाने की टेबल हो, परिवार के साथ बैठै हों, मार्केट में हों या फिर घर में। हर समय ध्यान बस मोबाइल पर ही होता है।

 

किशोरों के आधुनिक फीचर वाले मोबाइल इस्तेमाल करने का दबाव उनके दोस्तों के कारण पड़ता है। माता-पिता यह सोच कर मोबाइल दिलाते हैं कि बच्चा संपर्क में रहेगा और सुरक्षित रहेगा। पर जब परिणाम सामने आता है तो वे इससे बचने के उपाय ढूंढ़ते नजर आते हैं। आधुनिक मोबाइल फोन रखना अब दोस्तों में स्टेटस सिंबल बन गया है। हर समय दोस्तों के संपर्क में रहना किशोरों के जीवन का अब हिस्सा है।

 

किशोर उम्र का बच्चा घर में हो तो, किसी भी परिवार के लिए यह समय कठिन होता है। बेहतर तरीका यह है कि उनके साथ संपर्क बना कर रखें। उनके साथ समय बिताएं। अनुशासन बना कर रखें। टीनेज उम्र में अपने दोस्तों के साथ समय बिताना और उनकी बातें सुनना अच्छा लगता है। लगातार अपने दोस्तों और लोगों को संपर्क में रहना इस उम्र में एक लत की तरह होती है।

 

मोबाइल फोन दिलाने से पहले अभिभावक कुछ नियम तय करें।

 

- बच्चा कब-कब मोबाइल इस्तेमाल करेगा।
- उसके यह बताएं कि किसे फोन नंबर दें और किसे नहीं।
- उसे बताएं कि मोबाइल फोन उसकी सुरक्षा, सुविधा और घरवालों से संपर्क करने के लिए दिया गया है। यह खिलौना नहीं बल्कि संपर्क करने का जरिया है।

 

मोबाइल से स्वास्थ्य संबंधी परेशानी भी शुरू हो रही है। डॉक्टरों की राय मानें तो सोलह साल से पहले मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल दिमाग पर बुरा प्रभाव डालता है। इस उम्र में नर्वस सिस्टम का विकास होता है। इसीलिए ज्यादा मोबाइल कॉलिंग से बचें। मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना बेहद खतरनाक होता है। आए दिन यह दुर्घटना का कारण बनता है। ज्यादातर दुर्घटनाओं में गाड़ी चलाने वाला फोन पर ही बात कर रहा होता है। इसलिए एक लक्ष्मण रेखा जरूर तय करें। बच्चों को मोबाइल फोन इस्तेमाल करने की छूट दें पर उतनी ही, जितनी जरूरत हो।

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