Prabhasakshi NewsRoom: ताकतवर Fujian China Navy में शामिल, Jinping की सामरिक पहुँच में आ गये दुनियाभर के समंदर

By नीरज कुमार दुबे | Nov 08, 2025

चीन ने अपने पहले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट-सज्जित विमानवाहक पोत ‘फ़ूजियान’ (Fujian) को आधिकारिक रूप से नौसेना में शामिल कर लिया है। यह समारोह चीन के हैनान द्वीप स्थित सान्या नौसैनिक अड्डे पर आयोजित हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने स्वयं नियंत्रण कक्ष से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक लॉन्च बटन दबाकर इसका प्रतीकात्मक शुभारंभ किया। रिपोर्टों के मुताबिक फ़ूजियान के डेक पर आधुनिक नौसैनिक विमानों— J-35 स्टेल्थ फाइटर, J-15 मल्टी-रोल फाइटर, KJ-600 एरबोर्न अर्ली वार्निंग एयरक्राफ्ट तथा Z-20F हेलिकॉप्टर का प्रदर्शन किया गया।


हम आपको बता दें कि फ़ूजियान, जिसे 2022 में जलावतरण किया गया था, 2024 से लगातार समुद्री परीक्षणों से गुजर रहा था और सितंबर 2025 में इसने विमान प्रक्षेपण और पुनः अवतरण की सफल क्षमता प्रदर्शित की थी। यह चीन का तीसरा विमानवाहक पोत है, लेकिन सबसे उन्नत और तकनीकी दृष्टि से ‘आत्मनिर्भर' मंच है क्योंकि यह किसी सोवियत डिज़ाइन पर आधारित नहीं है। इससे पहले चीन के दोनों पोत— लिआओनिंग और शानडोंग ‘स्की-जम्प’ तकनीक वाले STOBAR प्रकार के थे।

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फ़ूजियान की तकनीकी और सामरिक विशेषता पर गौर करें तो आपको बता दें कि इसकी सबसे बड़ी विशेषता है इसका इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (EMALS)। अब तक यह तकनीक केवल अमेरिका के USS Gerald R. Ford पर ही लागू की गई थी। चीन ने सीधे भाप-संचालित कैटापल्ट चरण को लाँघते हुए इस आधुनिक तकनीक को अपनाया है और यह निर्णय स्वयं राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा निर्देशित बताया गया है।


EMALS के माध्यम से विमान प्रक्षेपण की गति और बल को सूक्ष्म रूप से नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे न केवल विमानों की wear and tear कम होती है, बल्कि छोटे ड्रोन अथवा हल्के विमानों को भी सुरक्षित रूप से प्रक्षेपित किया जा सकता है। यही तकनीक भविष्य में कैरीयर-बेस्ड ड्रोन बेड़े के संचालन के लिए नींव रखती है— जो 21वीं सदी की नौसैनिक रणनीति का प्रमुख घटक बनने जा रहा है।


हम आपको बता दें कि वर्तमान में अमेरिका के Gerald R. Ford पोत पर EMALS तकनीक को लेकर तकनीकी जटिलताएँ और विश्वसनीयता की समस्याएँ सामने आई हैं। इन्हीं कठिनाइयों के चलते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में यह घोषणा की थी कि भविष्य के अमेरिकी विमानवाहक पोतों में पुनः भाप-संचालित कैटापल्ट प्रणाली को अपनाया जाएगा। यह रुख एक प्रकार से तकनीकी conservatism दर्शाता है, जबकि चीन उसी क्षण आगे बढ़कर नवोन्मेष को आत्मसात कर रहा है। इस तरह फ़ूजियान की तैनाती केवल एक नौसैनिक उपलब्धि नहीं बल्कि प्रौद्योगिकीय आत्मविश्वास का प्रतीक भी है।


इसके अलावा, फ़ूजियान के नौसेना में सम्मिलित होने से चीन की ‘ब्लू वॉटर नेवी’ क्षमता में अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। अब चीन न केवल दक्षिण चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में बल्कि प्रशांत महासागर के गहरे हिस्सों में भी शक्ति-प्रक्षेपण करने में सक्षम होगा। विशेष रूप से ताइवान संकट के संदर्भ में यह एक ‘गेम-चेंजर’ सिद्ध हो सकता है क्योंकि यह पोत air superiority स्थापित करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।


इसके साथ ही फ़ूजियान के माध्यम से चीन ने यह संकेत दिया है कि वह अब “अनुकरण से नवोन्मेष” की ओर बढ़ चुका है। लिआओनिंग और शानडोंग, जहाँ सोवियत विरासत के वाहक थे, वहीं फ़ूजियान पूरी तरह स्वदेशी डिज़ाइन और निर्माण क्षमता का परिणाम है। यह चीन के रक्षा उद्योग, अनुसंधान क्षमता और औद्योगिक आत्मनिर्भरता का प्रमाण है—जो उसे अमेरिका और पश्चिमी गठबंधन के समकक्ष खड़ा करता है।


हम आपको बता दें कि फ़ूजियान के बाद चीन जिस टाइप 004 परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत पर कार्य कर रहा है, वह संभवतः अमेरिका के Ford class के समान शक्ति वाला मंच होगा। इसका अर्थ है कि चीन अब सतत् वैश्विक नौसैनिक उपस्थिति की दिशा में अग्रसर है।


अब सवाल उठता है कि क्या अमेरिका चीन से पिछड़ रहा है? देखा जाये तो ट्रंप प्रशासन द्वारा भाप-संचालित प्रणाली पर लौटने की इच्छा और चीन द्वारा अत्याधुनिक EMALS को अपनाने का निर्णय, यह दोनों मिलकर प्रौद्योगिकीय नेतृत्व की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को उजागर करते हैं। जहाँ अमेरिकी नौसेना अपने तकनीकी जटिलताओं और राजनीतिक निर्णयों में उलझी है, वहीं चीन दृढ़ राजनीतिक नेतृत्व और केंद्रीकृत दृष्टि के बल पर नए मानक स्थापित कर रहा है। यह स्थिति एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की नौसैनिक वर्चस्व को चुनौती देती है। विशेष रूप से जब चीन के पास अब तीन सक्रिय विमानवाहक पोत, उन्नत विध्वंसक, आधुनिक पनडुब्बियाँ और विशाल शिपबिल्डिंग उद्योग है, जो अमेरिकी उत्पादन क्षमता से कहीं आगे निकल चुका है।


देखा जाये तो फ़ूजियान का जलावतरण केवल एक सैन्य घटना नहीं बल्कि 21वीं सदी की समुद्री शक्ति की पुनर्परिभाषा है। जहाँ पहले विश्व के महासागरों में अमेरिकी ‘कैरीयर स्ट्राइक ग्रुप’ ही प्रभुत्व का प्रतीक थे, वहीं अब चीन ने यह दिखा दिया है कि वह समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने को तैयार है। यह कदम न केवल एशिया-प्रशांत क्षेत्र बल्कि हिंद महासागर, अफ्रीका और मध्य पूर्व में भी चीन की सामरिक पहुँच को व्यापक बनाएगा। भारत के दृष्टिकोण से भी यह विकास निगरानी और संतुलन की चुनौती प्रस्तुत करता है, क्योंकि यह चीन की नौसैनिक उपस्थिति को हमारे समुद्री पड़ोस में और अधिक स्थायी बना देगा।


बहरहाल, फ़ूजियान का जलावतरण आधुनिक चीन की उस दीर्घकालिक रणनीति का मूर्त रूप है जिसमें ‘तकनीकी श्रेष्ठता के माध्यम से वैश्विक प्रभाव’ प्राप्त करने का लक्ष्य निहित है। यह केवल एक जहाज़ नहीं, बल्कि चीन की वैज्ञानिक-सैन्य आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।

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