भारत पर लगाई शर्तें और अमेरिका को दिया जवाब, रेयर अर्थ के जरिये चीन ने चली नई सामरिक चाल

By नीरज कुमार दुबे | Oct 10, 2025

वैश्विक शक्ति-संतुलन अब केवल सैन्य बल या आर्थिक आकार से नहीं, बल्कि उन तत्वों की उपलब्धता से भी तय हो रहा है जिन्हें “रेयर अर्थ मेटल्स” कहा जाता है। यह वह दुर्लभ खनिज हैं जो आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक, रक्षा और हरित तकनीकों की आत्मा हैं। इन्हीं पर चीन ने एक बार फिर नियंत्रण कसते हुए दुनिया को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि आने वाले वर्षों में वह केवल विनिर्माण महाशक्ति ही नहीं, बल्कि संसाधन-सर्वोच्चता की भूमिका भी निभाना चाहता है।


हम आपको बता दें कि चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने हाल ही में रेयर अर्थ और उनसे जुड़ी तकनीकों के निर्यात पर नए प्रतिबंध घोषित किए हैं। अब कोई भी विदेशी कंपनी यदि चीन से निकले इन तत्वों का उपयोग करती है तो उसे विशेष अनुमति लेनी होगी। नये प्रतिबंधों में न केवल कच्चे खनिज शामिल हैं, बल्कि खनन, स्मेल्टिंग, रीसाइक्लिंग और मैग्नेट निर्माण तकनीक तक को नियंत्रण के दायरे में लाया गया है। यह कदम उस समय उठाया गया है जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव नई ऊँचाइयों पर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उच्च-टैरिफ नीति के जवाब में चीन ने रेयर अर्थ की आपूर्ति को रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया है।

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हम आपको बता दें कि विश्व में रेयर अर्थ का लगभग 70% खनन और 90% प्रसंस्करण (processing) चीन के नियंत्रण में है। यानी दुनिया की डिजिटल और सैन्य प्रगति की धुरी बीजिंग के हाथ में है। इसी संदर्भ में चीन ने भारत को रेयर अर्थ मैग्नेट्स की आपूर्ति के लिए जो शर्तें रखी हैं, वह केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि भूराजनैतिक प्रकृति की हैं। बीजिंग ने कहा है कि भारत को ये रेयर अर्थ मैग्नेट्स तभी मिलेंगे जब वह यह सुनिश्चित करेगा कि इनका उपयोग केवल घरेलू जरूरतों के लिए होगा और ये किसी भी रूप में अमेरिका तक नहीं पहुँचेंगे।


भारतीय कंपनियों ने “एंड-यूज़र सर्टिफिकेट” (EUC) देकर यह आश्वासन दिया है कि इन मैग्नेट्स का उपयोग विनाशकारी हथियारों के निर्माण या सैन्य उत्पादन में नहीं किया जाएगा। लेकिन चीन ने भारत से यह भी आश्वासन माँगा है कि वह अमेरिका को इन तत्वों तक पहुँचने से रोकने की गारंटी दे। यही वह बिंदु है जो चीन की नीति का असली उद्देश्य उजागर करता है। यानि वह भारत को अपने नियंत्रण तंत्र में बाँधना चाहता है ताकि अमेरिका–भारत तकनीकी गठजोड़ को सीमित किया जा सके।


चीन ने अपने इन कदमों को “राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा” के लिए आवश्यक बताया है। परंतु विश्लेषकों का मानना है कि यह “सुरक्षा” की आड़ में रणनीतिक संसाधनों के हथियारकरण की नीति है। यह अमेरिका की “चिप एक्सपोर्ट कंट्रोल” नीति का जवाब है, जिसमें वाशिंगटन ने चीन को उच्च-स्तरीय सेमीकंडक्टर तकनीक देने पर प्रतिबंध लगाया था। अब बीजिंग उसी भाषा में जवाब दे रहा है— “यदि तुम हमें चिप्स नहीं दोगे, तो हम तुम्हें रेयर अर्थ नहीं देंगे।” साथ ही भारत जैसे देशों से वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि वह उसकी इस “रणनीतिक घेराबंदी” को कमजोर न करें।


देखा जाये तो भारत की दृष्टि से यह परिस्थिति दोहरी चुनौती प्रस्तुत करती है। एक ओर, भारत की ईवी (Electric Vehicle), नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा उत्पादन और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग इन रेयर अर्थ तत्वों पर निर्भर हैं। दूसरी ओर, चीन द्वारा लगाई गई “अमेरिका-निरोधक शर्तें” भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता को चुनौती देती हैं। उदाहरण के लिए, भारत में ईवी निर्माण में प्रयुक्त मोटरों के 12 से अधिक घटकों में रेयर अर्थ मैग्नेट्स की आवश्यकता होती है। हल्के रेयर अर्थ के निर्यात को चीन ने फिर से शुरू कर दिया है, परंतु भारी रेयर अर्थ मैग्नेट्स की आपूर्ति पर नियंत्रण अब भी जारी है। इसका सीधा असर बड़े वाहनों, बसों और इलेक्ट्रिक ट्रकों के निर्माण पर पड़ रहा है।


इसके अलावा, दो-पहिया निर्माता फिलहाल हल्के मैग्नेट या फेराइट मैग्नेट का उपयोग कर रहे हैं, परंतु इससे दक्षता घट जाती है और उत्पादन लागत बढ़ जाती है। इसलिए भारत के लिए यह स्थिति एक सख्त संदेश है कि “सप्लाई चेन की स्वतंत्रता” अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न बन चुकी है।


देखा जाये तो चीन की यह नीति केवल भारत या अमेरिका के खिलाफ नहीं, बल्कि वैश्विक व्यवस्था के पुनर्गठन का हिस्सा है। वह यह जताना चाहता है कि यदि पश्चिमी देश तकनीकी निर्यात पर रोक लगाएंगे, तो चीन अपने खनिज संसाधनों के वर्चस्व से जवाब देगा। चीन का यह कदम यह भी दिखाता है कि भविष्य की विश्व राजनीति ‘खनिज प्रभुत्व’ पर आधारित होगी। अमेरिका पहले ही इस दिशा में कदम उठा चुका है। उसने अपने घरेलू रेयर अर्थ उद्योग में $520 मिलियन का निवेश किया है और MP Materials जैसी कंपनियाँ अमेरिका के भीतर “Mine-to-Magnet” आपूर्ति श्रृंखला बनाने में जुटी हैं। लेकिन इस प्रक्रिया को पूरा होने में वर्षों लगेंगे। तब तक दुनिया को चीन की शर्तें माननी ही होंगी।


देखा जाये तो भारत को इस परिदृश्य में दो रास्तों में से एक चुनना होगा। या तो चीन पर निर्भर रहकर उसके बनाए गए नियंत्रण ढाँचे को स्वीकार करे, या अपने घरेलू रेयर अर्थ खनन और प्रसंस्करण उद्योग को सशक्त बनाकर स्वतंत्र आपूर्ति श्रृंखला तैयार करे। मोदी सरकार के पास अब यह अवसर है कि वह “क्रिटिकल मिनरल मिशन” को उसी प्राथमिकता से आगे बढ़ाए, जिस तरह “चिप मिशन” को बढ़ाया गया है। भारत के पास अंडमान, ओडिशा और अरुणाचल जैसे क्षेत्रों में रेयर अर्थ के पर्याप्त भंडार हैं, आवश्यकता केवल तकनीकी निवेश और नीति-साहस की है। कुल मिलाकर देखें तो चीन की शर्तों का वास्तविक अर्थ यही है कि जो देश संसाधन-निर्भर रहेगा, वह रणनीतिक रूप से स्वतंत्र नहीं रह सकेगा।


-नीरज कुमार दुबे

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