By नीरज कुमार दुबे | Dec 19, 2025
जो चीन कल तक भारत को वायु प्रदूषण पर नैतिकता का पाठ पढ़ा रहा था, वही आज खुद स्मॉग के दलदल में फिसल गया। बीजिंग का AQI 216 तक पहुंचना चीन के प्रदूषण मुक्त मॉडल के दंभ पर करारा तमाचा है। हम आपको बता दें कि चीन की राजधानी बीजिंग एक बार फिर घने स्मॉग की चादर में लिपटी नजर आई है और यहां का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 216 तक पहुंच गया है जिसे “बेहद अस्वस्थ” श्रेणी में रखा जाता है। बीते कई वर्षों में अरबों डॉलर खर्च कर प्रदूषण कम करने के बाद बीजिंग में प्रदूषण का यह स्तर एक दुर्लभ घटना माना जा रहा है। हम आपको बता दें कि चीन की राष्ट्रीय मौसम वेधशाला ने बुधवार को देश के कई हिस्सों में घने कोहरे के लिए ‘येलो अलर्ट’ जारी किया था। चेतावनी में कहा गया कि हेबेई, बीजिंग, तिआनजिन, हेनान, अनहुई, जिआंगसू, हुबेई, सिचुआन बेसिन और चोंगछिंग के कई हिस्से गुरुवार को घने कोहरे की चपेट में रहेंगे।
हम आपको बता दें कि बीजिंग में आजकल प्रदूषित हवा और स्मॉग असामान्य माने जाते हैं। वर्ष 2016 से पहले यह शहर भीषण प्रदूषण के लिए कुख्यात था। इसके बाद चीनी सरकार ने भारी उद्योगों को बंद करने और शहर से बाहर स्थानांतरित करने जैसे कड़े कदम उठाए और इस पर अरबों डॉलर खर्च किए। अधिकारियों के अनुसार, सर्दियों में कोयले से चलने वाली हीटिंग व्यवस्था को हटाकर प्राकृतिक गैस और बिजली आधारित हीटिंग अपनाने पर 1 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए गए, जिससे प्रदूषण स्तर में उल्लेखनीय कमी आई। इसके अलावा, हाल के दिनों में बीजिंग के प्रदूषण नियंत्रण प्रयास चर्चा में रहे, खासकर तब जब नई दिल्ली गंभीर प्रदूषण संकट से जूझ रही है। इसने यह बहस छेड़ दी कि क्या दिल्ली को भी बीजिंग की तरह कठिन और महंगे रास्ते पर चलना चाहिए।
दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने बुधवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट कर बताया कि चीन सरकार ने 3,000 से अधिक भारी प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को बंद या स्थानांतरित किया और प्रमुख सरकारी स्टील कंपनी शौगांग को भी शहर से बाहर किया। विशेषज्ञों का कहना है कि बीजिंग और दिल्ली के प्रदूषण के कारणों में कुछ समानताएं हैं, लेकिन स्रोत, भौगोलिक परिस्थितियां और मौसमी कारण अलग-अलग हैं। बीजिंग में प्रदूषण का मुख्य कारण कोयला आधारित बिजली संयंत्र, भारी उद्योग और वाहन थे, जबकि दिल्ली में कृषि अवशेष जलाना, धूल, परिवहन और असंगठित उद्योग बड़ी भूमिका निभाते हैं।
सिंघुआ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, उद्योगों पर सख्त नियम लागू करने से चीन के बड़े शहरों में PM2.5 के स्तर में भारी कमी आई। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि एकदलीय शासन में इस तरह के सख्त फैसले संभव हैं, लेकिन बहुदलीय लोकतंत्र भारत में यह मॉडल लागू करना आसान नहीं होगा।
देखा जाये तो चीन वर्षों से यह जताने की कोशिश करता रहा है कि उसने प्रदूषण पर काबू पाने का जादुई फॉर्मूला खोज लिया है। अरबों डॉलर झोंक दिए गए, हजारों उद्योग बंद किए गए, लोगों को विस्थापित किया गया। लेकिन ताजा स्मॉग यह बता गया कि प्रकृति को आदेश नहीं दिए जा सकते और न ही पर्यावरण को स्थायी रूप से कंट्रोल किया जा सकता है। दिल्ली की दुहाई देकर चीन जिस ऊंचे नैतिक घोड़े पर सवार था, वह अब लड़खड़ा गया है। सच यह है कि बीजिंग की तथाकथित सफलता स्थायी नहीं बल्कि परिस्थितिजन्य थी। मौसम बदला, हवा रुकी और स्मॉग लौट आया। यानी अरबों डॉलर की सफाई भी प्रकृति के एक झटके के आगे बेबस दिखी।
दरअसल, चीन यह भूल जाता है कि भारत और चीन की परिस्थितियां जमीन-आसमान का फर्क रखती हैं। भारत में प्रदूषण सिर्फ सरकारी नीतियों का सवाल नहीं, बल्कि आजीविका, खेती, ऊर्जा और सामाजिक संरचना से जुड़ा मसला है। चीन ने उद्योग बंद किए तो लोगों की आवाज दबा दी गई। भारत में ऐसा करना न लोकतांत्रिक है, न व्यावहारिक। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि चीन जिस मॉडल को भारत पर थोपना चाहता है, वही मॉडल अब खुद उसके लिए बोझ बनता दिख रहा है। बीजिंग का ताजा स्मॉग इस बात का सबूत है कि प्रदूषण नियंत्रण कोई एकमुश्त परियोजना नहीं, बल्कि निरंतर संघर्ष है। यह घटना भारत के लिए चेतावनी भी है और सबक भी। चेतावनी इसलिए कि प्रदूषण को हल्के में नहीं लिया जा सकता और सबक इसलिए कि आंख मूंदकर किसी दूसरे देश के मॉडल की नकल आत्मघाती हो सकती है।
बहरहाल, चीन का उपदेश अब उसी पर उल्टा पड़ गया है। पर्यावरण के मुद्दे पर नैतिक श्रेष्ठता का दावा करने से पहले शायद उसे खुद आईने में झांकने की जरूरत है। क्योंकि स्मॉग जब लौटता है, तो वह न विचारधारा देखता है, न शासन व्यवस्था, वह सिर्फ हवा को जहरीला बनाता है।