By नीरज कुमार दुबे | Sep 15, 2025
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज ऑपरेशन सिंदूर में अनुकरणीय भूमिका के लिए भारतीय सशस्त्र बलों की सराहना की और राष्ट्र निर्माण में उनके महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला। मोदी ने कोलकाता में विजय दुर्ग (पूर्व में फोर्ट विलियम) स्थित भारतीय सेना के पूर्वी कमान मुख्यालय में तीन दिवसीय संयुक्त कमांडर सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद ‘‘भारतीय सशस्त्र बल विजन 2047’’ दस्तावेज भी जारी किया। रक्षा विभाग के एक बयान में कहा गया है कि यह दस्तावेज भविष्य के लिए तैयार भारतीय सशस्त्र बलों का मार्ग प्रशस्त करता है। देखा जाये तो यह सम्मेलन केवल एक औपचारिक रक्षा आयोजन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य और भारत की दीर्घकालिक सामरिक रणनीति के संकेतक के रूप में देखा जाना चाहिए।
हाल ही में संपन्न ऑपरेशन सिंदूर ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय सशस्त्र बल अब सीमित जवाबी कार्रवाई तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आतंकवाद के संरचनात्मक तंत्र को उसके स्रोत तक नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। नियंत्रण रेखा पार कर आतंकी ढांचे को ध्वस्त करना केवल सैन्य दक्षता ही नहीं, बल्कि राजनीतिक-सामरिक इच्छाशक्ति का भी प्रमाण है। ऐसे समय में सम्मेलन का आयोजन तीनों सेनाओं के सामूहिक आत्मविश्वास को और गहरा करता है।
हम आपको बता दें कि सम्मेलन के दौरान जारी दस्तावेज़ “भारतीय सशस्त्र बल विजन 2047” स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष तक भारत को भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप तैयार करने की रणनीति है। यह दृष्टि पत्र पारंपरिक युद्ध से आगे बढ़कर साइबर, अंतरिक्ष और बहु-क्षेत्रीय (multi-domain) युद्धक्षेत्र की तैयारी को रेखांकित करता है। इसका संदेश स्पष्ट है— भारत अपने सुरक्षा ढांचे को केवल वर्तमान नहीं, बल्कि आने वाले तीन दशकों तक प्रासंगिक बनाए रखने की दिशा में अग्रसर है।
हम आपको बता दें कि संयुक्त कमांडर सम्मेलन का केंद्रीय विचार हमेशा ज्वॉइंटनेस और इंटीग्रेशन रहा है। आधुनिक युद्ध केवल थल, जल और वायु तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सूचना, प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष क्षेत्रों में भी निर्णायक बन चुका है। इसलिए तीनों सेनाओं का समन्वय केवल विकल्प नहीं, आवश्यकता है। इस सम्मेलन में संस्थागत सुधारों और गहन एकीकरण पर दिया गया जोर भविष्य के थिएटर कमांड ढांचे की ओर एक और ठोस कदम है।
हम आपको बता दें कि सम्मेलन में प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, प्रमुख रक्षा अध्यक्ष और तीनों सेनाओं के प्रमुख एक साथ विचार-विमर्श करते हैं। यह केवल सैन्य नहीं, बल्कि समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को मूर्त रूप देता है। इस स्तर पर संवाद यह सुनिश्चित करता है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सैन्य क्षमताओं के बीच सामंजस्य बना रहे।
हम आपको बता दें कि इस साल के सम्मेलन का विषय है- ‘सुधारों का वर्ष– भविष्य के लिए परिवर्तन’। विषय के लिहाज से इस बार के सम्मेलन का ज्यादा महत्व है क्योंकि यह सुधारों पर केंद्रित है। सेनाओं की संगठनात्मक संरचना में बदलाव, तकनीकी आधुनिकीकरण की तीव्रता, संस्थागत जवाबदेही और पारदर्शिता में सुधार तथा बहु-क्षेत्रीय युद्धों के लिए उच्च परिचालन तत्परता पर जोर दिया जा रहा है। इससे यह संदेश जाता है कि भारतीय सशस्त्र बल स्थायी संस्थागत जड़ता में नहीं फंसना चाहते, बल्कि समयानुकूल बदलाव के लिए तैयार हैं।
इसके अलावा, सम्मेलन का स्थल— कोलकाता का विजय दुर्ग (पूर्व फोर्ट विलियम), पूर्वी सीमाओं और हिंद-प्रशांत रणनीति की ओर भारत के बढ़ते ध्यान का भी प्रतीक है। यह इंगित करता है कि भारत केवल पश्चिमी सीमाओं की चुनौती तक सीमित नहीं, बल्कि पूर्व और समुद्री परिदृश्य को भी बराबर महत्व दे रहा है।
साथ ही, संयुक्त कमांडर सम्मेलन वर्तमान परिदृश्य में तीन स्तरों पर महत्व रखता है। पहला- ऑपरेशन सिंदूर के बाद सशस्त्र बलों की दक्षता और राजनीतिक-सैन्य समन्वय को और मजबूत करना। दूसरा- संयुक्तता, संस्थागत सुधार और तकनीकी आधुनिकीकरण के माध्यम से थिएटर कमांड जैसे बड़े ढांचे की नींव रखना। तीसरा- विजन 2047 के तहत भारत को बहु-क्षेत्रीय, प्रौद्योगिकी-सक्षम और आत्मनिर्भर सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित करना। इस प्रकार यह सम्मेलन भारत की सैन्य शक्ति, राजनीतिक संकल्प और रणनीतिक दृष्टि— तीनों का संगम है।
इसके अलावा, हाल के महीनों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत जिन सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है, वह पारंपरिक से कहीं आगे निकल चुकी हैं। चीन का तीव्र सैन्य आधुनिकीकरण और सीमा पर उसकी आक्रामक रणनीति, साथ ही पाकिस्तान की ओर से जारी आतंकवाद समर्थित अस्थिरता, भारत की रक्षा नीति को केवल प्रतिक्रियात्मक बनाए रखने की अनुमति नहीं देते। हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के बाद कोलकाता में आयोजित संयुक्त कमांडर सम्मेलन इस तथ्य की पुष्टि करता है कि देश अपनी रक्षा रणनीति को निर्णायक बदलाव की ओर ले जाने को तैयार है।
देखा जाये तो आज की सबसे अहम आवश्यकता है— तीनों सेनाओं का वास्तविक एकीकरण। लंबे समय से चर्चा में रहे थिएटर कमांड्स अब केवल परिकल्पना नहीं, बल्कि आवश्यकता बन चुके हैं। आधुनिक युद्ध में थल, जल और वायु सीमाओं से परे साइबर, स्पेस और सूचना-क्षेत्र भी निर्णायक बन चुके हैं। इसलिए त्वरित और संयुक्त निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए संरचनात्मक सुधार अनिवार्य हैं।
इसके अलावा, रक्षा नीति का दूसरा स्तंभ होना चाहिए— आत्मनिर्भरता। अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति-श्रृंखलाओं पर निर्भर रहना एक बड़ा जोखिम है। सरकार पहले ही पॉजिटिव इंडिजिनाइजेशन लिस्ट जारी कर चुकी है, पर आने वाले दिनों में हथियार, ड्रोन, गोला-बारूद और संचार प्रणालियों में घरेलू उत्पादन को और तेजी से बढ़ाना होगा। यह न केवल रणनीतिक स्वायत्तता देगा, बल्कि भारत को वैश्विक रक्षा बाज़ार में एक निर्यातक के रूप में भी स्थापित करेगा।
साथ ही, चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा और पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा, दोनों ही क्षेत्र भारत से अधिक मजबूत फॉरवर्ड लॉजिस्टिक्स और उच्च-स्तरीय तैयारी की मांग करते हैं। ऊँचाई वाले इलाकों में आधारभूत ढाँचा, एयरफील्ड, सड़कों और गोला-बारूद भंडारण की क्षमता बढ़ाना अब केवल सैन्य योजना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्राथमिकता है।
देखा जाये तो युद्ध का स्वरूप बदल रहा है। भविष्य में स्पेस, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध निर्णायक साबित होंगे। चीन पहले से इन क्षेत्रों में बड़ा निवेश कर चुका है। भारत को भी उपग्रह रक्षा, साइबर कमांड, और ड्रोन-आधारित निगरानी तंत्र को सुदृढ़ करना होगा। यह बदलाव हमारी सैन्य शक्ति को चौतरफा बनाएगा और किसी भी संकट में निर्णय-चक्र को छोटा करेगा।
इसके अलावा, पाकिस्तान से मिलने वाली चुनौती पारंपरिक युद्ध से अधिक आतंकवाद और प्रॉक्सी युद्ध के रूप में सामने आती है। ऑपरेशन सिंदूर ने यह दिखा दिया कि भारत सीमित और सटीक कार्रवाई के माध्यम से दुश्मन की संरचना को तहस-नहस कर सकता है। आने वाले दिनों में रक्षा नीति में इस तरह की लचीली, स्केलेबल और सटीक प्रतिक्रियाओं के लिए संस्थागत तैयारी और स्पष्ट नियम आवश्यक होंगे।
देखा जाये तो भारत की रक्षा नीति अब केवल पश्चिमी सीमा तक सीमित नहीं रह सकती। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी और समुद्री सुरक्षा पर उसकी निगाहें भारत से एक व्यापक दृष्टिकोण की मांग करती हैं। क्वाड और अन्य साझेदारियों को मजबूत कर भारत को अपने नौसैनिक आधुनिकीकरण और समुद्री डोमेन अवेयरनेस पर निवेश बढ़ाना होगा।
बहरहाल, भारत की रक्षा नीति के सामने अब दोहरी चुनौती है— एक ओर चीन जैसी पारंपरिक और तकनीकी रूप से सशक्त शक्ति और दूसरी ओर पाकिस्तान जैसा अस्थिर लेकिन आक्रामक पड़ोसी। इस दोहरे दबाव का उत्तर केवल यही हो सकता है कि भारत अपनी नीति को संरचनात्मक सुधार, आत्मनिर्भरता, सीमावर्ती तैयारी, बहु-क्षेत्रीय क्षमताओं और लचीली प्रतिक्रियाओं पर केंद्रित करे। संयुक्त कमांडर सम्मेलन और विजन 2047 दस्तावेज़ यह संदेश दे रहे हैं कि भारत अब भविष्य की लड़ाइयों को अतीत के ढर्रे पर नहीं लड़ेगा। यह केवल सेनाओं का बदलाव नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक है।
हम आपको यह भी बता दें कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में शामिल हुए। सम्मेलन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल अनिल चौहान, रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह और भारतीय सशस्त्र बलों के तीनों प्रमुखों ने भी भाग लिया। रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया है, ‘‘रणनीतिक मुद्दों की एक विस्तृत शृंखला पर विचार-विमर्श किया जा रहा है, जिसमें सेना का आधुनिकीकरण, संयुक्तता, एकीकरण और बहु-क्षेत्रीय युद्ध के लिए परिचालन तत्परता को बढ़ाना शामिल है।’’ हम आपको बता दें कि यह द्विवार्षिक सम्मेलन सशस्त्र बलों का शीर्ष विचार-मंथन मंच है, जो देश के शीर्ष नागरिक और सैन्य नेतृत्व को वैचारिक और रणनीतिक स्तर पर विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए एक साथ लाता है। साथ ही इसमें विभिन्न रैंक के अधिकारियों के साथ संवाद सत्र भी होते हैं। इस वर्ष 16वां सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है जिसमें सुधारों, परिवर्तन, बदलाव और अभियानगत तैयारियों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। आखिरी संयुक्त कमांडर सम्मेलन 2023 में भोपाल में हुआ था।