History of Iran Part-2: मौत को हराया, हाथ गंवाया, 86 साल के नेता ने कैसे अकेले अमेरिका-इजरायल को पानी पिलाया, खामनेई नाम तो सुना ही होगा?

By अभिनय आकाश | Jun 21, 2025

इजरायल और ईरान की लड़ाई शुरू हुए अभी 8 दिन गुजरे हैं। लेकिन युद्धों के इतिहास में इसका मुकाम कुछ अलग ढंग का ही लगने लगा है। अयातुल्लाह अली खामनेई ये सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि ईरान की वो ताकत है जो अमेरिका और इजरायल की आंखों में हमेशा से खटकती रही। इस्लामिक क्रांति के दो साल बाद 1981 में जिस शख्स पर हमला हुआ वो शख्स कैसे दुनिया की सबसे बड़ी शक्तियों के सामने जंग लड़ रहा है। आज आपको अयातुल्लाह अली खामनेई की जिंदगी के किस्सों के बारे में बताते हैं। 

ब्लास्ट में एक हाथ गंवाया

27 जून 1981 में खामनेई एक न्यूज कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। तभी एक व्यक्ति पत्रकार की वेश भूषा में दाखिल होकर सामने टेबल पर एक छोटा सा टेप रिकार्डर रख दिया। सभी को लगा कि कोई पत्रकार भाषण रिकार्ड करने आया है। लेकिन पत्रकार के वेश में आया शख्स किसी और मंसबे से वहां आया था। उसने जो टेप रिकॉर्डर वहां रखा था वो कोई आम टेप रिकार्डर नहीं था। उसमें एक बम फिट था। खामनेई अपना भाषण शुरू करते है। तभी उनके नजदीक रखे टेप रिकॉर्डर में ब्लास्ट हुआ। टेप रिकार्डर ब्लास्ट खामनेई को जान से मारने की साजिश के तहत रखा गया था। इसके पीछे का मकसद 1979 में आई इस्लामिक क्रांति की नींव हिलाई जा सके। इस विस्फोट में खामनेई का दाया हाथ पैरालाइज हो गया। वहीं उनके एक कान के सुनने की क्षमता भी खत्म हो गई। वो अभी भी अपनी इनकी शारिरीक कमजोरियों के साथ ईरान की सत्ता पर मजबूती से बैठे हुए हैं। ईरान को एक मजहबी तानाशाही में लाने में अयातुल्ला खामनेई और उनके गुरु कहे जाने वाले रोहिल्ला खुमैनी का बड़ा हाथ माना जाता है। 

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कैदी से राष्ट्रपति तक

खामनेई का जन्म 17 जुलाई 1939 को ईरान के नजफ में हुआ। अमेरिका समर्थित शाह के शासन में उनकी राजनीतिक सक्रियता के कारण बार-बार जेल जाना पड़ा। रुहोल्लाह खुमैनी के करीबी सहयोगी, वे क्रांति के दौरान पादरी के पद पर पहुंचे और 1980 के दशक में ईरान के राष्ट्रपति बने। खामेनेई ने लंबे समय से ईरान को अमेरिका, इजरायल और सऊदी प्रभाव के लिए एक क्षेत्रीय प्रतिपक्ष के रूप में स्थापित किया है। उन्होंने मध्य पूर्व में प्रॉक्सी बलों का एक विशाल नेटवर्क बनाने और बनाए रखने में मदद की, जिसमें लेबनान में हिजबुल्लाह, इराक में मिलिशिया, यमन में हौथी और गाजा में हमास शामिल हैं। प्रतिरोध की धुरी" के रूप में जाना जाने वाला यह गठबंधन ईरान को सीधे टकराव के बिना प्रभाव डालने की अनुमति देता है। लेकिन हाल ही में इजरायली सैन्य कार्रवाइयों ने इस नेटवर्क को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया है।

ऐसे बने खामेनेई ईरान के सुप्रीम लीडर

वाइट रिवोल्यूशन देश के दो तबकों को परेशान करने लगा था, एक वो जो ईरान में मजहबी हुकूमत चाहते थे, और उनके लीडर अयातुल्लाह खुमैनी थे। दूसरे कम्युनिस्ट थे, जिनका कहना था कि पहलवी भ्रष्ट है और अमेरिका और ब्रिटेन के इशारों पर काम करते है। इस्लामिक क्रांति के बाद शाह देश छोड़ गए। तब बागडोर खुमैनी ने संभाली थी, खामेनेई को 1981 में राष्ट्रपति चुना गया था। 4 जून 1989 में खुमैनी का इंतकाल हुआ, तो खामेनेई सुप्रीम लीडर चुन लिए गए, जो तब से लेकर आज तक सुप्रीम लीडर बने हुए है। फिलहाल देश के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान हैं। खामनेई 1989 से आज तक ईरान की बागडोर मजबूती से थामे हुए हैं। 

खामनेई को सत्ता से हटाना इतना आसान नहीं 

अयातुल्ला अली खामनेई को ईरान की सत्ता से हटाना क्या इतना आसान है, जितना इजरायल समझ रहा है। 86 वर्ष के खामनेई ईरान के केवल एक नेता नहीं हैं, बल्कि वो एक विचारधारा हैं, जिसने ईरान की व्यवस्था को अपनी मुट्ठी में जकड़ कर रखा है। आज अगर खामनेई को इजरायल ने ईरान से हटा भी दिया तो भी ईरान की व्यवस्था में खामनेई विचारधारा पूरी तरह से जड़ तक मौजूद है और वो उनके बाद भी प्रभावी रहेगी। उनकी जगह कोई नया खामनेई आ जाएगा जो ईरान को ऐसी ही विचारधारा के साथ आगे बढ़ाता रहेगा। जिससे अब तक वो ईरान की सत्ता को सींचते आए हैं। असल में इस्लाम धर्म में दो विचारधारा शिया और सुन्नी है। दोनों के बीच एक लंबा संघर्ष रहा है। पूरी दुनिया में ईरान शिया मुसलमानों का सबसे बड़ा देश है। ईरान शिया मुसलमानों का नेतृत्व करता है और यही बात अयातुल्ला खामनेई को खास बनाती है। ईरान में 90- प्रतिशत शिया हैं। यही कारण है कि खामनेई ईरान की सत्ता को धर्म के हिसाब से चलाते हैं। उन्होंने ईरान में धार्मिक कट्टरता को बढ़ा दिया है। 

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ट्रम्प ईरान में तख्तापलट का मंसूबा पाले हुए 

ट्रम्प लगातार ईरान को धमकियां दे रहे हैं। सीधे खामेनेई को जान से मारने की धमकी देना अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का सबसे बेकार बयान है। ऐसा नहीं होना चाहिए। ट्रम्प ईरान में तख्तापलट का मंसूबा पाले हुए हैं। लेकिन अभी ईरान की जनता में अपने सुप्रीम लीडर के प्रति इतनी नाराजगी नहीं है, जितनी अमेरिका के प्रति है। असल जनविरोध के बिना यदि अमेरिका किसी को भी कठपुतली के रूप में ईरान की सत्ता पर बैठाता है तो ये फॉर्मूला चलने वाला नहीं है। ईरान का मनोबल जंग के छठे दिन भी टूटा नहीं है। अमेरिका और इजराइल पूर्व पहलवी राजपरिवार को ईरान में लाना चाहते हैं, लेकिन अभी नहीं लगता है कि अमेरिका इसमें सफल हो पाएगा। ईरान की सैन्य ताकत अब भी टूटी नहीं है।

(ईरान स्पेशल सीरिज के तीसरे भाग में आपको बताएंगे कि हूती, हिजबुल्ला, हमास जैसे प्रॉक्सी को ईरान ने कैसे खड़ा किया। दुनिया के नक्शे पर ईरान की अहमियत क्या है, भारत के लिए ईरान क्यों जरूरी है?) 

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