By अभिनय आकाश | Nov 21, 2025
केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि पूछताछ के लिए पैसे लेने के मामले में अभियोजन की अनुमति देने वाले लोकपाल के आदेश को महुआ मोइत्रा द्वारा दी गई चुनौती 'तुच्छ' है। इस चुनौती के बाद, इस बात पर तीखी बहस छिड़ गई कि अनुमति मिलने से पहले तृणमूल कांग्रेस सांसद को कौन से अधिकार प्राप्त थे। मोइत्रा ने अदालत से लोकपाल के 12 नवंबर के आदेश को रद्द करने की माँग की है। उनका तर्क है कि इस आदेश में उनकी दलीलों को नज़रअंदाज़ किया गया है और प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है। सांसद ने आरोप लगाया कि निगरानी संस्था ने गलत तरीके से सीबीआई को उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने की अनुमति दे दी, जिसमें उन पर संसद में प्रश्न पूछने के बदले में व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी से नकदी और उपहार स्वीकार करने का आरोप है।
सीबीआई की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने इस बात का विरोध किया कि लोकपाल ने क़ानूनी ज़रूरतों से "काफ़ी आगे" जाकर काम किया है। उन्होंने अदालत को बताया कि मोइत्रा को लोकपाल अधिनियम के तहत मौखिक सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है और उनका एकमात्र वैधानिक अधिकार टिप्पणी दर्ज कराना है। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद, उन्हें टिप्पणियाँ, हलफनामे और मौखिक प्रस्तुतियाँ देने की अनुमति दी गई, जिन सभी पर मंजूरी देने से पहले विचार किया गया। राजू ने कहा कि यह याचिका ऐसे समय में दस्तावेज़ पेश करने का एक प्रयास है जब कानून में ऐसा कोई अवसर नहीं है। राजू ने अदालत को बताया, दंड प्रक्रिया संहिता के विपरीत, लोकपाल ढाँचे में समन या व्यापक साक्ष्यों के आदान-प्रदान का कोई प्रावधान नहीं है।