By दिव्यांशी भदौरिया | Nov 29, 2025
भारत में ऐसी कई धार्मिक दृष्टि से कई परंपराएं सादियों से चली आ रही हैं, जिनके बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं। देश में ऐसी कई जगहें जहां पर अनोखी परंपरा देखने को मिलती है। हर साल अगहन महीने की शुक्ल पक्ष की चंपा पष्ठी से पूर्णिमा पर सागर जिले से 65 किलोमीटर दूर देवरी नगर है। यहां पर स्थित प्राचीन श्री देव खंडेराव मंदिर में अग्नि मेला का आयोजन किया जाता है। इस मेले की खास बात यह है कि अपनी मनोकामना पूरी होने पर भक्त दहकते हुए अंगारों से भरे अग्निकुंड पर नंगे पैर चलकर अपनी आस्था और भक्ति प्रकट करते हैं। यहां पर सैकड़ों लोग अंगारे पर नंगे पैर चलते हैं। बता दें कि, इस साल एक साथ 300 श्रृद्धालु अलग-अलग अग्नि कुंड से निकले और इसे देखने के लिए यहां पर हजारों संख्यां में भक्त जरुर पहुंचते हैं।
कैसे शुरू हुई यह 400 साल पुरानी परंपरा?
माना जाता है कि, बहुत समय पहले देवरी के राजा यशवंत राव का पुत्र गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था। राजा ने हर संभव उपचार करवाया, लेकिन बच्चे की हालत में कोई सुधार नहीं आया। तभी एक रात उन्हें स्वप्न में श्री देव खंडेराव जी के दर्शन हुए। भगवान ने राजा को निर्देश दिया कि यदि वह मंदिर में जाकर हल्दी का हाथी चढ़ाएं, अपने पुत्र के स्वास्थ्य हेतु प्रार्थना करें और अग्नि कुंड से नंगे पैर होकर गुजरें, तो उनकी इच्छा अवश्य पूर्ण होगी।
प्रार्थना पूरी होने पर अग्नि पर चलते हैं भक्त
फिर राजा यशवंत राव ने भगवान के सपने में दिए गए आदेश का पालन किया। उन्होंने मंदिर में आकर पूरी श्रद्धा से पूजा की और अग्निकुंड से नंगे पैर निकले। मान्यता है कि ऐसा करने के तुरंत बाद राजा का बेटा पूरी तरह स्वस्थ हो गया। तभी से यह परंपरा चल रही है। जो भी भक्त श्रद्धा भाव से श्री देव खंडेराव जी से सच्चे मन से कोई मन्नत मांगता हैं और उनकी इच्छा पूरी हो जाती है, तो वे अपने आस्था को व्यक्त करने के लिए इस मेले में धधकती अग्नि के आंगारों पर चलते हैं। इस दौरान भक्त पीले वस्त्र पहनकर और हाथों में हल्दी लेकर जयकारे लगाते हुए अग्निकुंड में 9 कदम चलते हैं। भक्तजन मानते हैं कि भगवान खंडेराव की कृपा से उन्हें अंगारों की गर्मी महसूस नहीं होती है।
कब लगता है अग्नि मेला?
खासतौर पर यह मेला दिसंबर के महीने पर लगता है। मेले की शुरुआत अगहन मास की चंपा षष्ठी के दिन से होती है और यह पूर्णिमा तक चलता है। बता दें कि, ठीक दोपहर 12 बजे, मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर सूर्य की पहली किरण पड़ने के बाद अग्निकुंड से निकलने की रस्म शुरु होती है। फिर भक्त अग्निकुंड की पूजा करते हैं और हल्दी छिड़कते हैं। इसके बाद नंगे पैर दहकते अंगारों के ऊपर चलकर अपनी मन्नत पूरी करते हैं।