धीरेंद्र ब्रह्मचारी का सपना अधूरा ही रह गया

By सुरेश डुग्गर | Nov 01, 2017

जिसे कभी नया सिंगापुर बनाने का सपना देखा था स्व. प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के राजनीतिक गुरु स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने, वह सपना तो पूरा नहीं हो पाया लेकिन सुंदर और आकर्षित मानतलाई का पर्यटन स्थल आज नया नर्क अवश्य बन गया है। इसका सारा ‘श्रेय’ राज्य सरकार को जाता है जिसकी नीतियों के चलते मानतलाई का पर्यटन स्थल दिन-ब-दिन उजड़ता जा रहा है और इसको उजाड़ने में अब सुरक्षा बल भी शामिल हो गए हैं।

 

9 जून 1994 को विमान हादसे में मौत का शिकार हो जाने वाले स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी के सपने, सपने ही रह गए और आज न ही वह गुफा है जिसमें वे ध्यान लगाना चाहते थे अमर होने के लिए और न ही उन भालुओं के दो बच्चों की हालत ऐसी है कि वे इस प्रकार की किसी गुफा के बाहर पहरा दे सकें। स्थिति यह है कि धीरेंद्र ब्रह्मचारी का साम्राज्य आज जीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है।

 

यह सब कुछ सरकार की अनदेखी के चलते हो रहा है। मानतलाई में नया सिंगापुर बनाने के सपने को राज्य सरकार की नीतियों ने पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया है। हालांकि स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी की मौत के बाद संपत्ति के बंटवारे को लेकर उनके शिष्यों में फैली जंग के कारण भी सरकार को कुछ कदम उठाने पड़े थे लेकिन अभी तक वह यह निर्णय नहीं कर पाई है कि वह इस संपत्ति को यूं ही बर्बाद होने दे या फिर स्वामी के सपने को पूरा करने का प्रयास करे।

 

मानतलाई अपना आकर्षण खो चुकी है अब। जिस हवाई पट्टी पर कभी ब्रह्मचारी का निजी विमान मोल एम-5-वीटी-ईईके उड़ानें भरा करता था अब वह खस्ताहाल में है। वाच टावर क्षतिग्रस्त हो चुका है क्योंकि कोई भी इन सबकी देखभाल के लिए तैनात नहीं है। कभी स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी के जीवित होने पर जिन पेड़ों से सेबों का स्वाद आने जाने वाले चखा करते थे वे अब नहीं हैं क्योंकि देखभाल करने वाले माली को और चौकीदार को ब्रह्मचारी की मृत्यु के उपरांत ही निकाल दिया गया था।

 

ब्रह्मचारी द्वारा निर्मित अपर्णा होटल बुरी दशा में है क्योंकि वह अब होटल नहीं रहा और वह सेना तथा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों की शरणस्थली बन चुका है जो आतंकवादियों की गतिविधियों को रोकने के नाम पर वहां टिके रहते हैं। क्या क्या बयान किया जाए ब्रह्मचारी की संपत्ति के बारे में।

 

हालत यह है कि स्वामी द्वारा रखे गए पालतू भालू के दो बच्चों, जिनके प्रति उनका कहना था कि वे दोनों उस 125 फुट लम्बी गुफा की रखवाली किया करेंगे जिसमें वे समाधि लेना चाहते थे, में से आज एक बुरी तरह से कमजोर हो चुका है। ब्रह्मचारी के योगाश्रम के नाम से जाने जाने वाले मानतलाई आश्रम में कार्यरत एक कर्मचारी संतोष कुमार (असली नाम नहीं) का मानना था कि भालू के बच्चों को भरपेट खाना नहीं दिया जाता है।

 

और जब स्वामी जीवित थे तो वे प्रत्येक सुबह अपने दोनों हाथों से दोनों भालू के बच्चों को नाश्ता करवाते थे लेकिन आज स्थिति यह है कि खाने के नाम पर आने जाने वाले पयर्टक ही उन्हें कुछ डाल देते हैं उस गंदे और सीलन भरे कमरे में जो बहुत ही छोटा तो है ही कमजोर लोहे का दरवाजा तथा खिड़की लगाई गई है जिसे वे कभी भी तोड़ कर कहर बरपा सकते हैं लोगों पर। दोनों बच्चे आज हिंसक हो चुके हैं।

 

ठीक इसी प्रकार की दशा आज उन जर्सी गायों की है जिनमें से अधिकतर मौत का शिकार इसलिए हो गई हैं क्योंकि उन्हें ‘भूखा’ रखा जाता है। वह घोड़ा ‘अली’ जिस पर सवार होकर ब्रह्मचारी मानतलाई के क्षेत्र में चक्कर काटा करते थे और लोगों के दुखदर्द की खबर लिया करते थे आज अपने पिचके पेट के साथ दिनों को गिन रहा है उस बैल की ही तरह जिसे जनन प्रक्रिया के लिए रखा गया था।

 

जबकि अपर्णा योगाश्रम के कर्मचारी यह भी आरोप लगाते हैं कि स्वामी के निजी चिड़ियाघर से कुछ पक्षी और जानवर लापता हो गए हैं जिनके प्रति उनका कहना है कि वहां सुरक्षा के नाम पर टिकने वाले ही उनका शिकार कर खा चुके हैं। हालांकि कोई भी इस बात को मानने को तैयार नहीं है।

 

स्वामी की मृत्यु का सबसे गहरा और बुरा प्रभाव उन कर्मचारियों पर पड़ा है जो उन्हें अपना माई-बाप समझते थे क्योंकि ब्रह्मचारी उन्हें बच्चों से अधिक प्यार करते थे। यह इसी से स्पष्ट था जब कुछ अरसा पहले यह संवाददाता सुद्धमहादेव के मेले के अवसर पर मानतलाई के दौरे पर गया था तो गऊशाला और अस्तबल की देखभाल करने वाले अशोक कुमार की आंखों में आंसू थे क्योंकि वह स्वामी को याद कर रो रहा था। उसका कहना था कि अगर आज के दिन स्वामी जीवित होते तो उन्हें कोई गम नहीं था क्योंकि प्रत्येक त्यौहार को उन्हें इनाम भी मिलता था ब्रह्मचारी की ओर से और आज मात्र झिड़कियों के कुछ भी नहीं।

 

स्वामी की मृत्यु ने मानतलाई में रहने वाले लोगों की कमर ही तोड़ दी। कारण ऐसा नहीं है कि मानतलाई की जनता ब्रह्मचारी के वेतनों पर आश्रित थी बल्कि वे भी उस सपने को साकार होते देखना चाहते थे जिसे स्वामी पूरा करना चाहते थे और वे मनातलाई को ‘नया सिंगापुर’ बनाना चाहते थे। असल में स्वामी के अनुसार वे मानतलाई की जनता को ही सारी संपत्ति का मालिक बनाना चाहते थे ताकि आने वाले पयर्टकों से होने वाली कमाई के वे भी हिस्सेदार बन सकें।

 

गौरतलब है कि स्व. प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की मृत्यु के उपरांत आठ वर्षों तक गुमनामी के अंधरे में रहने के बाद जब ब्रह्मचारी वापस मानतलाई लौटे थे तो अपने साथ वे मानतलाई को नया सिंगापुर बनाने का सपना भी लाए थे जिसमें वे जापान तथा अमेरिका सहित 6 विदेशी ताकतों से धन प्राप्त कर 2400 कनाल भूमि में अपनी सौ सूत्रीय योजना को पूरा करना चाहते थे जिसमें 5000 फुट लंबी, दो हजार फुट चौड़ी तथा 15 फुट गहरी झील, पांच हजार कारों का पार्किंग स्थल, मोनो रेल, घूमने वाला रेस्तरां, स्कूल कालेज इत्यादि का निर्माण करना चाहते थे लेकिन आज न ही वह सपना रहा और न ही साम्राज्य।

 

उनकी मृत्यु के इतने सालों के दौरान न ही स्वामी की योजना पर कार्य आरंभ हो सका है और न ही वे अधनिर्मित होटल आदि को पूरा किए जाने का प्रयास किया गया है। हालांकि स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी की गोलाई वाली कोठी को सरकार की ओर से सील कर दिया गया है। राज्य सरकार कहती है कि उसे इसलिए सील कर देना पड़ा क्योंकि उसके कई वारिस उठ खड़े हुए थे और मजेदार बात यह है कि संपत्ति की देखभाल के लिए तैनात अधिकारियों पर यह आरोप पिछले कई सालों से लग रहे हैं कि वे संपत्ति को ‘लूट’ कर अपने साथ ले जा रहे हैं।

 

चाहे कुछ भी है परंतु इस सच्चाई से मुख नहीं मोड़ा जा सकता कि स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने मानतलाई को नया सिंगापुर बनाने का जो सपना देखा था उसे राज्य सरकार ने अपने स्वार्थों के चलते चकनाचूर कर दिया। और अगर इसी प्रकार सरकारी नीतियां जारी रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पर्यटन स्थल के मानचित्र से मानतलाई का नाम मिट जाएगा और वह साम्राज्य भी पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा जिसके निर्माता स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी थे।

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