Goa Elections। गोवा की राजनीति में ईसाइयों का अलग महत्व, Church की होती है विशेष भूमिका

By अंकित सिंह | Dec 23, 2021

गोवा मुक्ति दिवस के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोवा दौरे पर थे। उन्होंने कहा था, मैं कुछ समय पहले इटली और वैटिकन सिटी गया था, वहां मुझे पोप फ्रांसिस से मुलाकात का भी अवसर मिला। मैंने उन्हें भारत आने के लिए आमंत्रित भी किया। तब पोप फ्रांसिस ने कहा था कि ये सबसे बड़ा उपहार है जो आपने मुझे दिया, ये भारत की विविधता, वाइब्रेंट डेमोक्रेसी के प्रति उनका स्नेह है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान से इतना तो समझा जा सकता है कि गोवा की राजनीति में चर्च का क्या महत्व है? वैसे तो गोवा की राजनीति काफी उथल-पुथल वाली रहती है। जोड़-घटाव की गणित पर ही यहां की सरकारें टिकती हैं। गोवा की राजनीति में ईसाइयों का भी अपना महत्व रहता है। गोवा की आबादी में 25% ईसाई समुदाय है जबकि 66% के आसपास हिंदू समुदाय है। चुनावी नजरिए से देखें तो ईसाई समुदाय का वोट नतीजों में साफ तौर पर बड़ा फर्क ला सकता है। यही कारण है कि 2022 के चुनाव से पहले गोवा में चर्च की राजनीति खूब हो रही है। राजनीतिक दल चर्चों के जरिए ईसाई समुदाय को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं। 

 

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गोवा की 40 विधानसभाओं में से 10 पर कैथोलिक समुदाय का बोलबाला है। ऐसे में किसी भी दल के लिए यह समाज काफी अहम होता है। यही कारण है कि भाजपा के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी इस समुदाय को साधने की कोशिश शुरू कर दी है। कैथोलिक समाज को भाजपा के साथ जोड़ने में मनोहर पर्रिकर ने अहम भूमिका निभाई थी। उससे पहले यह समाज कांग्रेस के साथ था जिसकी वजह से पार्टी काफी दिनों तक राज्य में सत्ता में रही थी। हालांकि बीजेपी के उदय के साथ ही हिंदुत्ववादी आवाज यहां जोर पकड़ने शुरू कर दिए और गिरजाघर की चिंताएं बढ़ने लगी। माना जाता है कि मतदाताओं के मार्गदर्शन में चर्च की अहम भूमिका होती है। यही कारण है कि गोवा में राजनेता समय-समय पर चर्च का दौरा करते रहते हैं। 


लेकिन जानकार यह भी बताते हैं कि चर्च की ओर से लोगों को जो दिशा निर्देश दिए जाते है उसमें किसी भी प्रत्याशी या राजनीतिक पार्टी का नाम नहीं लिया जाता है बल्कि इसे लोगों की समझ पर छोड़ दिया जाता है। हालांकि कई मौके ऐसे भी आते हैं जब कई चर्चों के फादर खुले तौर पर पार्टी की बजाए प्रत्याशियों का समर्थन करते हैं। राज्य में भाजपा समय-समय पर ध्रुविकरण की राजनीति भी करती रहती है। पिछले चुनाव में देखें तो कैथोलिक समाज के वोट या तो कांग्रेस में गए थे या फिर आम आदमी पार्टी में। कांग्रेस को दक्षिणी गोवा से काफी उम्मीद है क्योंकि यहां मुस्लिम समुदाय के लोग भी रहते हैं जो उसे वोट देते रहते हैं। 

 

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ममता बनर्जी भी गोवा दौरे पर जब भी जाती हैं तो मदर टेरेसा का जिक्र करना नहीं भूलती। वह यह भी कहती हैं कि मैं चर्च हमेशा जाती है। गोवा में ममता ने TMC का नया नाम भी दे दिया है Temple, Mosque और Church। कुल मिलाकर देखें तो राजनीतिक दलों ने गोवा में अपनी चुनावी तैयारियां शुरू कर दी है। लोगों को बेरोजगारी, मंदी और विकास नहीं होने को लेकर विपक्ष अपने पाले में करने की कोशिश कर रहा है तो वही भाजपा लगातार अपने कामकाज का रिपोर्ट दे रही है। वर्तमान में देखें तो भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे को आगे करके चुनाव लड़ रही है। ऐसे में गोवा में भी इसका असर साफ तौर पर देखने को मिल सकता है। फिलहाल मनोहर पर्रिकर जैसे नेता भी भाजपा के साथ नहीं है जो ईसाइयों को उसके पक्ष में लाने में मदद कर सकें। हालांकि देखना दिलचस्प होगा कि आखिर गोवा के क्रिश्चन मतदाता इस बार किसके पक्ष में जाते हैं?

 

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