26/11 आतंकी हमला: पीड़िता ने कहा- मुआवजे पर फैसले के दौरान हुआ भेदभाव

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 26, 2018

मुंबई। सुनंदा शिंदे उस वक्त महज 36 साल की थीं जब दक्षिण मुंबई के एक अस्पताल में वॉर्ड ब्वॉय का काम करने वाले उनके पति 26/11 मुंबई हमले में आतंकवादियों के हाथों मारे गये थे। इस हमले में आतंकवादियों ने 165 और लोगों को मार गिराया था। हमले के 10 साल बीत जाने के बाद आज भी सुनंदा को यही लगता है कि सरकार ने 26/11 के शहीदों के लिये मुआवजे पर फैसला करने के दौरान भेदभाव किया।

इसे भी पढ़ें: मुंबई हमले में शरीफ का बयान, 26/11 हमले में था पाकिस्तान का हाथ

सुनंदा के पति भगन शिंदे, गोकुलदास तेजपाल अस्पताल में काम करते थे। उस रात गोलियों की आवाज सुनकर वह अपनी पत्नी और बच्चों को फोन करने के लिये पास के एक टेलीफोन बूथ गये थे कि तभी अस्पताल के गेट पर उन्हें पीछे से गोली लग गयी। सुनंदा ने कहा, ‘सरकार को शहीदों के परिवार को मुआवजा देते समय भेदभाव नहीं करना चाहिए।’ सुनंदा इस वक्त उसी अस्पताल में ‘आया’ के तौर पर काम करती हैं।

उन्होंने कहा, ‘शहीद पुलिसकर्मियों के परिजन को मुआवजा, घर और नौकरियों के अलावा पेट्रोल पंप दिया गया। लेकिन सरकार ने सरकारी अस्पतालों के शहीदों के परिवार को पेट्रोल पंप आवंटित नहीं किया।’ उस रात का जिक्र करते हुए सुनंदा ने कहा, ‘मेरे पति ने मुझे फोन कर बताया कि कुछ ही देर में मैं घर पहुंचने वाला हूं। जैसे ही वह अस्पताल के गेट पर पहुंचे, उन्होंने गोलियों की तेज आवाज सुनी और देखा कि आतंकवादी गेट की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने गेट बंद करने की कोशिश की लेकिन वह ऐसा कर पाते कि तभी आतंकवादियों की गोली का वह शिकार हो गये।’

इसे भी पढ़ें: भारत में 26/11 जैसा एक और हमला छेड़ सकता है युद्ध

बीते 10 साल से पति के बगैर जीवन गुजार रही सुनंदा ने कहा कि वह अपने बच्चों की परवरिश करने में अक्षम हैं क्योंकि अब पैसा नहीं बचा है। सुनंदा को एक बेटा और एक बेटी है। उन्होंने कहा, ‘हमें सरकार से एक बड़ा घर मिला है। लेकिन मेरी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा इमारत के रख रखाव शुल्क और बिजली के बिल में चला जाता है। मुंबई जैसे महंगे शहर में कोई परिवार सिर्फ 10,000 रुपये में कैसे गुजारा कर सकता है।’

उसी रात दक्षिण मुंबई के कामा एंड अल्ब्लेस हॉस्पिटल में आतंकवादियों के हाथों मारे गये भानु नरकार के बेटे प्रवीण नरकार ने कहा कि किसी भी तरह की सरकारी मदद उनके पिता को वापस नहीं ला सकती। प्रवीण नरकार इस वक्त अस्पताल में सुरक्षा गार्ड हैं। हमले के बाद पिता की जगह प्रवीण को सुरक्षा गार्ड की नौकरी मिली। मध्य मुंबई के सायन इलाका स्थित प्रतीक्षानगर में रहने वाली करुणा ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘बीते 10 साल में मेरी जिंदगी बदल गयी है। एक ऐसा दिन नहीं गुजरता जिस रोज मैं अपने पति को याद नहीं करती।’

इसे भी पढ़ें: अपने बयान पर कायम हैं नवाज शरीफ, कहा- सच बोलता रहूंगा

उन्होंने कहा, ‘जब मुझे मुआवजे के तौर पर अस्पताल में नौकरी मिली तब लोकल ट्रेन का समय तक नहीं जानती थी। मैं नौकरी पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही थी। कभी कभी मैं अवसाद में चली जाती थी।’ 26 नवंबर, 2008 को वडी बंडर में हुए बम धमाके में घायल हुईं सबीरा खान (50) ने कहा, ‘मैंने आर्थिक मदद के लिये प्रधानमंत्री समेत कई अधिकारियों को 200 से अधिक पत्र लिखे। लेकिन मुझे पर्याप्त मदद नहीं मिली।’ धमाके में सबीरा अपना एक पैर खो चुकी हैं और उनकी सुनने की क्षमता चली गयी है। 

प्रमुख खबरें

Bengal Teacher Recruitment Case: 25 हजार शिक्षकों को बड़ी राहत, नियुक्ति रद्द करने के आदेश पर लगी सुप्रीम रोक, 16 जुलाई से SC करेगा रेगुलर सुनवाई

Freedom At Midnight: निखिल आडवाणी की आगामी राजनीतिक सीराज में पांच अंतर्राष्ट्रीय कलाकार हुए शामिल

पालघर में 15 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार, दो गिरफ्तार

Andhra Pradesh Government Scheme: महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए CM जगन ने शुरू की नई योजना, महिलाओं को मिलेगा लाभ